मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ
कर्म ही पूजा है वह जब तक नहीं होती है तब तक कि हम हमारे कर्म परमात्मा को समर्पित न कर दें। हमें पूजा करना चाहिए पूजा पांच तरह से होती है जिसमें पंचयोपचार, दशोचार, सोड़चोपचार, राजोपचार, तथा मानसिक पूजा इस तरह पूजा कार्य करना चाहिए हमें भगवान की कथा में जाना चाहिए भागवत कथा पर संशय नहीं करना है चाहिए संशय से व्यक्ति का पतन होता है।

उक्त विचार आम्बुआ में आयोजित महा शिव पुराण कथा में व्यास पीठ पर विराजित पंडित श्री शैलेंद्र शास्त्री ने कथा के तृतीय दिवस करते हुए कहा कि माता सती ने भगवान श्री राम पर संसय किया कि वह कैसे भगवान हो सकते हैं जो अपनी पत्नी के वियोग में वन में भटकते रहे हैं और इसी संसय के कारण सती को अपने पिता के घर यज्ञ कुंड में प्राणों की आहुति देना पड़ी कथा में आज महा शिव पुराण की मूल कथा का वर्णन किया गया व्यास जी ने वर्णन करते हुए कहा कि शिव वह है जिसका ना आदि है और न हीं अंत है यही कथा सूत जी ने सोनकादिक ऋषियों को त्रिवेणी संगम पर सुना रहे थे। तथा मंदराचल पर्वत पर शिवजी की कथा नंदीश्वर सनक, सनकादिक ऋषियों को सुना रहे थे।
