नर्मदा पर बने ” सरदार सरोवर बांध ” ने दिया भिलाला समाज को विस्थापन ओर कुपोषण का दंश

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 झाबुआ / अलीराजपुर लाइव के लिऐ ” चंद्रभान सिंह भदौरिया ” शोधार्थी – कुपोषण एंव खाद्यान्न सुरक्षा विषय ( विकास संवाद “

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इतिहास इस बात की गवाही देता है कि सभ्यताऐं हमेशा से ” नदियों” के किनारो ओर कछारों मे विकसीत होती आई है प्राचीनकाल मे जो जनजातिया थी वह भी कमोवेश बढी एंव उनसे जुडी सहायक नदियों के किनारो एंव जंगलो मे ही पल्लवित होती आई है भिलाला जनजाति भी इसमे शामिल है पश्चिम मध्यप्रदेश की मुख्य नदी ” नर्मदा ” एंव उससे जुडी छोटी सहायक नदियों हथनी , सुक्कड , रानी काजल ( सभी अलीराजपुर जिले की नदिया )  , गोई नदी ( बड़वानी ) बाग नदी , सापन नदी  ( धार ) आदि शामिल रही है ओर सदियो तक इन्ही नदियों ओर उनके कछारो ने उन्हें जीवन ओर पोषण युक्त भोजन दिया है लेकिन ” विकास ” के नाम पर नदियों मे बंधे बांधो एंव सहायक नदियों मे बने स्टाप डेमो ने भिलाला आदिवासी समाज के जीवन ओर उनके बच्चो के पोषण को खत्म कर दिया , बची हुई कसर जंगली इलाको ओर सहायक नदियों एंव नालो मे तेजी से हो रहे रेत उत्खनन ने पूरी कर दी है जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है ।

नर्मदा पर सरदार सरोवर से उपजा विस्थापन ओर कुपोषण

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नर्मदा पर बने सरदार सरोवर ने अन्य आदिवासी समुदाय के साथ साथ ” भिलाला आदिवासी ” समुदाय को ना सिर्फ विस्थापन का दंश दिया बल्कि उनकी संस्कृति ओर खानपान पर भी असर डाला है आज आलम यह है कि नर्मदा पर बने सरदार सरोवर परियोजना के प्रभावित गांवो ” अंजनवाडा , ककराना , खुंदी , सकरजा , सिरखेडी छोटी , आकडिया , चिकलदा, जलसिंधी , झंडाना, सुगट , आंबा बडा , आंबा छोटा , काकडसेला , डूबखड्डा , भिताडा , बोरवाला, खांबा , कोठडा , पिछोडी , खापरखेडा, आदि गांवो के आदिवासियो को जिनमे भिलाला भी शामिल है वे अब भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं । तत्कालीन मुख्यमंत्री ” दिग्विजय सिंह ” को सरदार सरोवर डूब क्षेत्र के गांव ” जलसिंधी के ” बाबा महरिया” का लिखा पत्र इस बात की गवाही देता है कि नर्मदा ओर उसके कछारों से किस प्रकार उनका समाज भरपुर जीवन बेहतर ” पोषण” के साथ जीता था जो विस्थापन से कुपोषण की गत॔ मे चला गया है बाबा महरिया के पत्र का एक थोडा सा हिस्सा इस लेख मे प्रस्तुत कर रहा हुं जो मैने साभार ” श्री चिन्मय मिश्र ” की ” प्रलय से टकराते समाज ओर संस्कृति ” से लिया है यह है उस पत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा “” आप सोचते हैं हम गरीब हैं। हम गरीब नहीं हैं। मिल-जुलकर अपने खेतों को बाँधकर हम यहाँ बसे हैं। हम किसान हैं। हमारे यहाँ अच्छी फसलें पकती हैं। धरती माता पर हल चलाकर हम फसल पकाते हैं। बरसात में मेघ पानी देते हैं। उससे हम कमाई करके जीते हैं। कन्हर (जुआर या ज्वार) माता पकती है। हमारी कुछ ज़मीन पट्टे की भी है और बाकी नेवाड़ (विवादित जंगल जमीन) हैं। इन जमीनों में हम बाजरा, जुआर, मक्का, भादी, भट्टी, सौवी, कूद्री, चना, मोठ, उड़द, तुअर, तिल, मूंगफली आदि पकाते हैं। हमारे यहाँ तरह-तरह की फसलें हैं। इन्हें हम बदल-बदलकर खाते हैं। इससे हमारा भोजन स्वादिष्ट भी लगता है और इसके दूसरे फायदे भी हैं। बरसात आते-आते हमारा अन्न खत्म हो जाता है। खाने की बहुत कठिनाई होती है। तब भादी-भट्टी सरीखी फसल हम दो महीने में ही पका लेते हैं, इससे हमें खाने को मिल जाता है। बाकी फसलें तीन-चार महीनों में पकें तो भी हमारी गुजर हो जाती है। गुजरात में क्या पकता है? गेहूँ और दादरा जुआर (जाड़े की ज्वार), तुअर और थोड़ा बहुत कपास। ये फसलें खाने की कम बेचने की ज्यादा होती हैं। हम तो खाने के लिए ही उगाते हैं। यदि उससे अधिक मिल जाता है तो ही कपड़े-लत्ते खरीदने के लिए बेचते हैं। बाजार मे कीमतें कम हो या ज्यादा, हमें तो खाने को मिल ही जाता हैं “”  तो अब सरकार को समझ मे आ जाना चाहिऐ कि आखिर स्थानीय आदिवासी समाज की प्राचीनतम जीवन शैली से छेडछाड का परिणाम भयानक कुपोषण के रुप मे सामने आया है ।

” बकवास है डूब क्षेत्र मे पीडीएस के जरिए खाद्यान्न सुरक्षा के दावे ”

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सरकारे किस तरह काम करती है इसका अनुभव सरदार सरोवर डूब क्षेत्र के पीडिता एंव उनके लिऐ लडने वालो से बेहतर कौन जान सकता है सरकारे झूठ भी बोलती है ओर सफाई भी देती है इसकी बानगी भी शोध के दोरान देखने को मिली है एक तरफ सरकारें कहती है कि डूब क्षेत्र के सभी परिवारो कोन मुआवजा दिया गया है ओर उनका पुनर्वास कर दिया गया है मगर हकीकत जमीन पर उलट है पुनर्वास के नाम पर मजाक किया जा रहा है जमीन के बदले जमीन देने का दावा करने वाली सरकार दरअसल खेती लायक जमीन के बदले खेती लायक जमीन की बजाय ” उन्हें बंजर ओर अतिक्रमण का शिकार जमीन दे रही है जहां रहने के लिए मकान दिया गया है उससे कई किलोमीटर दूर जमीन देने की बात कही जा रही है नतीजा यह कि दो दशक से अधिक की लडाई के बाद भी विस्थापितों का दर्द ओर भूख बरकरार है सरकार खुद कहती है कि डूब क्षेत्र खाली है मगर कागज पर अलीराजपुर जिले के भिलाला बहुल डूब इलाके के 18 गांवो के 1504 परिवारो के 9255 लोगो को पीडीएस के जरिए 1 रुपये किलो खाद्यान्न देने के दावे भी करती है करीब तीन साल पहले जब डूब क्षेत्र मे खाद्यान्न सुरक्षा की हकीकत देखने जब सर्वोच्च न्यायालय की ओर से श्री सचिन जैन ” को भेजा गया था तो जमीनी हकीकत सामने आ गयी थी । अभी भी अलीराजपुर जिले मे 25 श्रेणीयो के 1 लाख 5 हजार 924 परिवार है जिन्हें खाद्यान्न सुरक्षा के अंतर्गत 1 रुपये प्रति किलो मे खाद्यान्न देने का सरकारी दावा है जिनमे से 77 % भिलाला आदिवासी परिवार शामिल है हालांकि यह सरकारी दावे है हकीकत कुछ ओर है डूब इलाके के भिलाला आदिवासी इस सरकारी दावे को खारिज करते है ।

 

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