रतलाम लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. डेढ़ साल पहले एक लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल करने वाली पार्टी 8,88,77 वोट से हार गई. उम्मीदवार से लेकर पेटलावद ब्लास्ट तक कई ऐसे कारण रहे है जो पार्टी की हार की वजह बन गए.
1. सहानुभूति वोट
भाजपा को उम्मीद थी कि दिलीप सिंह भूरिया के असामयिक निधन की वजह से जनता में उनके परिवार के प्रति सहानुभूति रहेगी. इसी बात को ध्यान में रखकर तमाम दावेदारों को दरकिनार कर उनकी विधायक बेटी निर्मला भूरिया को टिकट दिया गया. पार्टी के लिए यह दांव उल्टा पड़ गया.
2. निर्मला की नकरात्मक छवि
पेटलावद से चार बार की विधायक की निर्मला भूरिया का जनता से सीधा जुड़ाव नहीं है. कार्यकर्ता और आम लोगों को हमेशा शिकायत रहती है कि निर्मला भूरिया उनका फोन तक नहीं उठाती है. अंचल में कहा जाता है कि निर्मला के वाहन का शीशा अब अगले चुनाव में ही नीचे उतरेगा.
3. पेटलावद ब्लास्ट
पेटलावद में हुए ब्लास्ट ने बीजेपी की हवा को खराब कर दिया. राजेंद्र कासवा की गिरफ्तारी नहीं होना और फिर स्थानीय नेताओं के बड़े आयोजनों ने पेटलावद के लोगों के जख्मों को हरा कर दिया. शिवराज के आश्वासन भी उनके जख्मों पर मरहम लगाने में नाकाम रहे.
4. बीजेपी के स्थानीय नेताओं का व्यवहार
बीजेपी के स्थानीय नेता भी इस हार के लिए कम जिम्मेदार नहीं है. झाबुआ बीजेपी के कई नेताओ पर थानों पर मामले दर्ज होने के बावजूद भी पार्टी द्वारा उन्हें क्लीन चिट देने से अच्छा संदेश नहीं गया.
5. बिजली के बिल से लगा झटका
आदिवासी अंचल में बिजली के बिल से भी ग्रामीणों में सरकार को लेकर काफी नाराजगी थी. गरीब परिवारों को 8 से 10 हजार रुपए का बिल आने और फिर कहीं कोई सुनवाई नहीं होने से सरकार के खिलाफ माहौल बनने लगा था.
6. मनरेगा की विफलता
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी मनरेगा योजना का फ्लॉप होना भी बीजेपी की हार की वजह बना. यहां मनरेगा के जरिए सही तरीके से काम नहीं हुआ. आदिवासियों को उनके हक का भुगतान भी नहीं हुआ. इस वजह से राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी का भाव था. कांग्रेस उम्मीदवार ने इसी मुद्दे को सही तरीके से अपने प्रचार में शामिल किया.
7. सरकारी अफसरों की बेरूखी
सरकारी अफसरों की बेरूखी भी सरकार को भारी पड़ गई. दरअसल, आधार कार्ड या अन्य सरकारी प्रमाण पत्र के लिए जरूरी दस्तावेजों के लिए आदिवासी परिवारों को काफी परेशान होना पड़ रहा है.
अधिकारियों के दुर्व्यव्हार और फटकार की वजह से आदिवासी लोगों का दिल टूट गया. समय पर दस्तावेज जमा नहीं करने की वजह से बच्चों को स्कॉलरशिप मिलना बंद हो गई थी.
8. शहरी मतदाताओं का उदासीन रवैया
भाजपा को उम्मीद थी कि शहरी क्षेत्र से मिली बढ़त से कांतिलाल भूरिया की आदिवासी अंचल में बढ़त को पाटा जा सकता है. लेकिन शहरी मतदाताओं ने भी भाजपा को साथ नहीं दिया. भाजपा के मजबूत गढ़ में कम मतदान होना भी भाजपा के खिलाफ गया.
9. बाहरी लोगों का प्रवेश
आदिवासी अंचल में इंदौर और दूसरे शहरों से भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं का आना भी स्थानीय लोगों को रास नहीं आया. यह निर्णय भी भाजपा के खिलाफ गया.
10. शिवराज बनाम भूरिया
निर्मला भूरिया की कमजोर स्थित भांपकर शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. उन्होंने इस लड़ाई को शिवराज बनाम कांतिलाल भूरिया बना दिया. शिवराज सिंह चौहान का यह फैसला भी पार्टी के लिए गलत साबित हुआ.
कांग्रेस ने विरोधी उम्मीदवार ने इसी कमजोरी को मुद्दा बनाया. आचार संहिता लगने के पहले शिवराज की सभाओं में जुटी ‘सरकारी भीड़’ को जनसमर्थन मान लिया गया, जबकि आचार संहिता लगते ही हकीकत सामने आने लग गई.