जानिए इस पडताल मे झाबुआ विधानसभा सीट का हाल क्या है इस उपचुनाव में

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घरतलाम लोकसभा उपचुनाव मे झाबुआ विधानसभा सीट पर भाजपा के प्रदर्शन पर सबकी निगाह लगी है लेकिन इस बात को लेकर नही कि इस क्षेत्र से कितने वोटो से भाजपा जीतेगी ? बल्कि इस बात  को लेकर निगाह है कि आखिर कितने वोटो से यह झाबुआ विधानसभा सीट भाजपा हारेगी ? दरअसल विधानसभा चुनाव – 2013 से लेकर आजतक भाजपा लगातार कमजोर होती जा रही है । आइये आपको इस पडताल मे हमारे कल्याणपुरा संवाददाता ” उमेश चोहान” बतायेंगे सही तस्वीर ।

दुर्घटनावश जीती थी 2013 मे  भाजपा

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झाबुआ विधानसभा सीट की बात करे तो 2013 मे भाजपा यहां शिव लहर मे नही बल्कि दुर्घटनावश चुनाव जीत गयी थी ओर वह दुर्घटना थी कांग्रेस से बगावत कर कलावती का निर्दलीय लडना । नतीजा कलावती खुद तो हार गयी लेकिन उतने वोट भाजपा के काट गयी जो इस राजनितिक दुर्घटना मे भाजपा के शांतिलाल बिलवाल” की किस्मत चमक गई थी ओर वे विधायक बन गये ।

जल्दी उतर गया बिलवाल ओर भाजपा का जादू

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शांतिलाल बिलवाल राजनीतिक हादसे मे विधायक तो बन गये लेकिन धीरे धीरे वह भी उसी रास्ते पर चल दिए जिस पर जाने के लिऐ उनके पूर्ववति चर्चित रहे नतीजा कार्यकर्ता ओर जनता से दूरीया बढती गयी ओर कथित एक दर्जन लोगो से करीबी बढती गयी । परिवार के कुछ लोगों ने भी मोह मे फंसकर छवि को बिगाड कर रख दिया नतीजा आलम यह है कि जिस विधानसभा मे 15 हजार से जीते थे उसी विधानसभा मे मोदी लहर के बावजूद लोकसभा मे कांग्रेस ने ना सिर्फ 15 हजार को कवर किया बल्कि 7 हजार की ऊपर लीड चढा दी थी दूसरे शब्दो मे लोकसभा मे एक तरह से भाजपा 22 हजार वोटो से हारी थी खैर लोकसभा के बाद झाबुआ जनपद , अधिकांश जिला पंचायत ओर यहा तक कि विधायक के ग्रह पंचायत तक हार बैठी । अब मोदी लहर नही है ऐसे मे कांग्रेस यहां से रिकार्ड लीड लेने का मन बना रही है ।

कल्याणपुरा को खुद भाजपा ने अपने हाथो खोया

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कल्याणपुरा इलाका पुरी तरह से भाजपा का गढ माना जाता था मगर कल्याणपुरा- भगोर इलाके के ना सिर्फ नेताओ की उपेक्षा भाजपा नेता की बल्कि इस इलाके के वाजिब मुद्दो पर भी कभी गंभीरता नही दिखाई है इन प्रमुख मुद्दो मे एक मुद्दा ” इंजीनियर्स कालेज” का  घोषणा होने के बावजूद इस इलाके से चले जाना है नतीजा भाजपा की युवा ताकत इस बार भाजपा को सबक सिखाने के मूड मे है ।

राणापुर इलाका भी कमजोर हुआ

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बीते कुछ सालो पहले भाजपा ने राणापुर इलाके मे अच्छे युवा आदिवासी नेताओ को लाकर सेंध लगाई थी मगर ज्यादातर नेता ” पैसे ” कमाने के चक्कर भे पढ गये ओर जल्दी ही अपनी हैसियत गंवा बैठै ओर कुछ गंवाने की तैयारी मे हैं ऐसे मे कांग्रेस ने कलावती ओर कैलास डामोर की अच्छी छवि के जरिए ग्रामीण मे बेहतर पैठ बना ली है

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