दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर बिना मुआवजे दिए जमीन अधिग्रहण को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन

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रितेश गुप्ता, थांदला

समीस्थ ग्राम भामल में दिल्ली -मुम्बई एक्सप्रेस -वे निर्माण में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित पीढीदर पीढी पैतृक कब्जे की शासकीय भूमि के कब्जेदार किसानों व्दारा बिना मुआवजा भूमि शासकीय कब्जे की भूमि का अधिग्रहण पर रोक लगाने उचित मुआवजा एंव जमीन के बदले जमीन देने की माॅंग को लेकर एक बार फिर ग्राम भामल में प्रदर्शन किया । प्रदर्शन में बडी संख्या में महिलाॅए व बच्चो सहीत आन्दोलनकारी उपस्थित रहे । आन्दोलनकारी किसानों व्दारा एक बार फिर मुआवजें की माॅंग को लेकर अपने स्वर मुखर किये है । आन्दोलन कारियों के समर्थन में हिन्दू जनजाति युवा संगठन के कार्यकर्ता उपस्थित रहे जिनके व्दारा अंतिम निराकरण तक किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडा रहने व उचित मुआवजा मिलनें के बाद ही जमीन छोडनें का आव्हान किया । इस अवसर पर समाजसेवी कैलाश अमलियार , रामचन्द्र कटारा , लक्ष्मण डामौर, कमल डामौर सहीत बडी संख्या में हिन्दू जनजाति युवासंगठन के कार्यकर्ता उपस्थित थे ।
पूर्व में सत्रह दिनों तक चला धरना
आन्दोलनकारी अपनी पैतृक कब्जे की ऐसी भूमि जिस पर वे पीढीदर पीढी रूप से काबिज चले आ रहे है । कब्जे की भूमि का मुआवजा दिलाने हेतू माह मार्च में सत्रह दिनों तक तहसील कार्यालय में धरने पर बैठे थे । आन्दोलनकारियों की माॅंग है कि हमें मुआवजा दिलाया जावें उसके बाद ही सडक निर्माण कार्य किया जावें । आन्दोलन कारियों में एक बार फिर कडा आक्रोश देखा जा रहा है आन्दोलनकारियों का खुले शब्दो मे कहना है की शासन हमें हमारी पैतृक भूमि का उचित मुआवजा दे या जमीन के बदले जमीन अंतिम निराकरण तक हम अपनी जमीन नही छोडेंगे ।
एक बार फिर आन्दोलन कारियों का इस तरह से धरने पर उतरना कही न कही सडक निर्माण में बाधा देखा जा रहा है जबकी दिल्ली मुम्बई भारतमाला सडक परियोजना केन्द्र सरकार की महत्वपूर्ण परियोजना है ।
मुुआवजा विसंगती की मुख्य वजह
सरदार सरोवर डेम निर्माण के दौरान धार-झाबुआ-बडवानी जिलों में पैतृक भूमि पर काबिज किसानों को जमीन के पटटे वितरण पर रोक लगी थी इसी रोक की वजह से अंचल के सैकडों किसान ऐसी भूमि जिस पर उनका पैतृक कब्जा होकर वे उस जमीन पर काबिज चले आ रहे है कृषि तौर तरिके से उपभोग उपयोग करते चले आ रहे है । स्थाई पटटों से वंचित है परिणाम स्वरूप ऐसे सभी किसान आज भी शासन की विभिन्न योजनाओं के मिलने वाले लाभ से तो वंचित है ही वही शासन की विभिन्न योजना में उक्त जमीन अधिग्रहित किये जाने की दशा में वे अतिक्रमणकर्ता के रूप में शासकीय रेकार्ड में दर्ज हो रहे है जबकी वर्षो से उक्त जमीन पर काबिज आदिवासी किसान उक्त जमीन को अपनी पैतृक जमीन मानता चला आ रहा है । परिस्थितयाॅ जो भी लेकिन वर्तमान में शासन की तरफ से ऐसे किसानों के लिये कोई उचित कदम उठता दिखाई नही दे रहा है । आशंका है भविष्य में आन्दोलन बडा रूप ले ।

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