आंगनवाडियों में दक्षिणी राज्यो का पेट॔न ओर ईमानदारी की आवश्यकता 

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लेखक विकास संवाद संस्था के कुपोषण ( पोषण की सुरक्षा ) विषय के शोधार्थी है ।

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चंद्रभान सिंह भदौरिया ।।
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कुपोषण से जंग लड़ने के सरकारी प्रयास कागजों पर कितने भी शानदार दिखते हो मगर जमीन पर हकीकत कुछ ओर है भिलाला बहुल अलीराजपुर, धार, बड़वानी आदि जिलों की बात करे तो साफ दिखता है कि भोपाल के ” वातानुकूलित कमरों मे बैठकर बनाए जाने वाली योजनाए जमीन पर कामयाब नही होती अलबत्ता ” रेडी टु इट”  के नाम पर सब कुछ ठीक नही होत रहा । यु तो सरकार के कई अधिकारी अन्य प्रदेशों की योजनाओ का अध्ययन करने जाते है ओर  अच्छी योजनाए मामूली संशोधन के साथ स्वीकार भी की जाती है मगर आदिवासी अंचल मे कुपोषण के दूसरे राज्यों के फार्मूले अपनाने से सरकार डरती है ।
दक्षिण भारत मे अधिकांश राज्यों में अंडा
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14 दक्षिण भारत की अगर बात करे तो तमिलनाडू , केरल , कर्नाटक , पुडुचेरी , सीमांध्र , गोवा , तेलंगाना आदि मे आंगनबाड़ीयों मे सरकार पोषण के रुप मे ” अंडा” देती है अंडे के साथ कही दूध तो कही लोकल फुड जैसे इडली , उत्तपम आदि दिऐ जाते है जिससे इन राज्यों मे कुपोषण से लडने मे सरकार कामयाब रही है मगर भिलाला आदिवासी बहुल ” पश्चिमी मध्यप्रदेश ” में जहां इस तरह के फुड की सबसे ज्यादा आवश्कता है वहां लागू करने में ” एमपी ” सरकार डरती नजर आती है । जबकि अंडा एक कंप्लीट प्रोटीन डाइट है जो बच्चो की सेहत ओर दिमागी विकास के लिए बेहद जरुरी है ।
इसलिए डरती है प्रदेश सरकार
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दरअसल राजनीत में लोकतंत्र का मतलब वोट बैंक रह गया है मध्यप्रदेश के लाखो दलित ओर आदिवासी बच्चो को कुपोषण मुक्त करवाने में अंडा आंगनबाड़ीयों में एक सही ओर उपयोगी फुड हो सकता है मगर सरकार इस आरोप से बचना चाहती है कि प्रदेश सरकार खुद ” मांसाहार ” को बढावा दे रही है हास्यास्पद बात यह है कि जो लोग आंगनबाड़ीयों मे अंडा देने के प्रस्ताव या शुरुआती चर्चाओं का विरोध करते है उनके अपने बच्चे ना तो कुपोषित है ना ही कमजोर बल्कि उनके से कुछ के बच्चे तो अतिपोषण ( मोटापे) से जुझ रहे होते है फिर भी सरकार इन सब से डरकर कुपोषण के खिलाफ जंग मे ” अंडा” रुपी ” ब्रम्हास्त्र” का इस्तेमाल से डर रही है । भिलाला बहुल अंचल मे काम करने वाले ” मुकेश कुमार” कहते है कि यह अफसोसजनक है कि मध्यप्रदेश मे कुपोषण दूर कैसे किया जाये यह वह तय करते है जो सरकार को ” धार्मिक नैतिकता ” के नाम पर डराने मे कामयाब हो जाते है ।
दूध काम प्रयोग तो अंचल मे हुआ विफल
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pouring milk in a glass isolatedकुछ माह पूर्व प्रदेश मे चर्चा चली कि सरकार आंगनबाड़ीयों मे अंडा देने पर सहमत हो गयी है मगर खुद मुख्यमंत्री आगे आये ओर घोषणा की कि हमारी सरकार स्कूली बच्चों ओर आंगनबाड़ीयों मे दूध देगी यह प्रोटीन ओर तमाम फ्लेवर से युक्त होगा । घोषणा पर शुरुआती अमल भी दिखाई दिया मगर अब आलम यह है कि आंगनबाड़ीयों ओर प्राथमिक शालाओं से दूध गायब है ओर जो दूध इस बार सप्लाई किया गया वह एक्सपायरी निकला । मामले मे जब मीडिया मे बवाल हुआ तो एक्सपायरी दूध हटाया गया । दूध तो हटा दिया गया मगर बडा सवाल यह कि आखिर जब यह दूध आया तो इसे स्वीकार क्यो कर लिया गया ? दरअसल कोई भी योजना जो कुपोषण से लडने के लिऐ बनती है वह सरकारी इमानदारी ओर निगरानी करने वाले अफसरों की नैतिकता पर निर्भर है बेहतर पोषण का विकल्प कोई भी दे दिया जाये मगर जब तक लागू करने वालों मे ईमानदारी नही होगी तब तक योजनाए कागजों पर कामयाब ओर जमीन पर बच्चो की तरह ” कुपोषित”  ही रहेगी ।
केले ओर लोकल फूड पर जोर की जरुरत
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13अंडा सरकार देने को तैयार नही है मगर जोर दे रही है वह स्थानीय भिलाला समाज के बच्चो केरल लिऐ रुचिकर नही है अब आवश्यकता लोकल फुड जैसे ” वडे , ताये , राबड़ी , कुलथिया ओर मक्का सूप केरल साथ केले जैसे सस्ते ओर सुलभ फल देने की है जो सरकारी बजट मे भी आ सकते है ओर अच्छे पोषक भी है । भिलाला बहुल अलीराजपुर जिले का प्रशासन इस पर कार्ययोजना बना रहा है मगर आगे चलकर प्रदेश शाशन को भी इस पर सोचने की जरुरत है ।
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