प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी के जन्मदिवस पर गुणानुवाद सभा का आयोजन

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वैराग्यकाल से ही आत्मा के प्रति सजग रहे प्रवर्तकदेव जिनेन्द्रमुनि

रितेश गुप्ता@थांदला

जिन शासन गौरव आध्यात्मयोगी जैनाचार्य पूज्य श्रीउमेशमुनिजी “अणु” के प्रथम शिष्य प्रवर्तक पूज्य श्रीजिनेन्द्रमुनिजी का जन्मदिवस गुरु भाई तत्वज्ञ पूज्य श्रीधर्मेन्द्रमुनिजी, पूज्य श्रीहेमन्तमुनिजी, पूज्य श्रीराविमुनिजी, पूज्य श्रीप्रशस्तमुनिजी एवं साध्वी रत्ना पूज्या श्रीनिखिलशिलाजी आदि ठाणा के सानिध्य में थांदला श्रीसंघ द्वारा तीन -तीन सामायिक के लक्ष्य के साथ ज्ञान दर्शन चारित्र तप की आराधना करते हुए उनकी गुणानुवाद सभा का आयोजन कर मनाई गई। गुणानुवाद सभा को सम्बोधित करते हुए तत्वज्ञ श्रीधर्मेन्द्रमुनिजी ने कहा कि वैराग्यकाल में भी आत्मा के प्रति वे सजग थे। घर संसार के कार्य करते हुए भी आपने अपने ज्ञानाराधना के क्रम को बढ़ाया व साधना की निरंतरता से पूज्यश्री आज धर्मदास गण नायक बने है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति आत्मलक्ष्य को पाने के लिये अप्रमत्त भाव से पुरुषार्थी होता है उसे कभी आलस्य नही आता व कभी ऐसी स्थिति बनती है तो वह उसे सजगता से दूर करने के प्रयास करता है वैसे ही प्रवर्तकश्री का जीवन है वे प्रातः 3 बजे से रात्रि 10 बजे तक धर्माराधना का, कर्म निर्जरा का निरन्तर पुरुषार्थ करते रहते है। तत्वज्ञ श्री ने कहा कि जीवन में सीखना व सिखाना दोनों कार्य कठिन है परन्तु प्रवर्तक देव की सरलता से वे स्वयं आगमज्ञाता बने व सभी को आगे बढ़ाने का पुरुषार्थ भी करते रहते है। उनके जन्मदिन पर गुरु भाई पूज्यश्री रविमुनिजी ने कहा कि दुनिया में अनेक साहित्य उपलब्ध है लेकिन आगम की तुलना किसी से नही की जा सकती व आगम के अनुरूप जीवन जीने की कला आज बमुश्किल से मिलती है। जब सद्गुरु मिल जाये व उनकी डाँट फटकार को जो सम भाव से सह जाये तो वे तिन्नाणम तारयाणम बनते है अन्यथा तो मीठी बातें व चमत्कार की बातें करने वाले अनेक है जो डुबाणं डाबयाणम होते है। उन्होंने कहा कि धर्मदास गण पर सकल संघ पर व इस डूंगर मालवा विदर्भ में लगभग सभी पर किसी ना किसी रूप में प्रवर्तक देव का उपकार है। रविमुनिजी ने कहा कि सही यह नही है कि हम गुरु के ह्रदय में बसे बल्कि सही यह होगा कि हम गुरु को अपने ह्रदय में विराजित करें। यह फर्क केवल इतना ही है जितना कि भावना व क्रिया में होता है। भावना सही हो लेकिन ज्ञानाभाव के कारण क्रिया गलत हो तो पतन हो जाता है उन्होंने आगे कहा गुरु आज्ञा मानकर नही चलने वाले नाटककार बहुत मिल जाएंगे परन्तुउनकी आज्ञा शिरोधार्य कर उनके पथ का अनुसरण प्रवर्तक श्री जैसी बिरली आत्मा ही स्व पर कल्याणकारी होती है। धर्मसभा में पूज्या श्रीनिखिलशिलाजी म.सा. ने गगन गुंजा दो भक्ति से गुरु का बोलो जयकारा, जन्मदिवस मंगलम, जय गुरूवरम स्तवन के माध्यम से धर्मसभा को भाव विभोर कर दिया। सकल संघ कि ओर से श्रीसंघ अध्यक्ष जितेंद्र घोड़ावत ने प्रवर्तक श्री के उपकारों का आभार मानते हुए उनके दीर्घायु जीवन की मंगल कामना की।

वर्षीतप आरम्भ एवं तपस्या के प्रत्याख्यान

पूज्यश्री ने बताया की नए वर्षीतप आराधक सोमवार चैत्र कृष्ण अष्टमी सेे नये वर्षीतप प्रारम्भ कर सकते है। पूज्यश्री ने कहा कि जैन धर्म तप प्रधान धर्म है लेकिन इसमें लोचता भी है अर्थात आप वर्षीतप की शुरुआत करें यदि पूर्ण होता है तो पूरा लाभ है ही लेकिन यदि किसी कारण से नही हो पाता है तो भी जितने दिन तप किया वह भी निर्जरा का हेतु ही है। आपने सभी आराधकों को विभिन्न तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण करवाये।

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