खुले में शौच को ठेंगा दिखा रहे झोपडपट्टी व स्थानीय परिवार

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 मयंक विश्वकर्मा@आम्बुआ

केंद्र शासन कितनी भी शक्ति दिखाएं आदेश जारी करें । मगर कुछ लोगों पर इसका कोई असर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है । खुले में शौच मुक्त पंचायतों पर बोर्ड तो लगा दिए ऊपर तक रिपोर्ट चली गई कि क्षेत्र आडीएफ हो गया। मगर स्थिति कितनी खराब है यह देखने वाला कोई नहीं।जैसा की विदित है कि वर्ष 2019 में स्वच्छता अभियान के तहत घर-घर शौचालय का निर्माण कराया गया। निर्माण के बाद उनका उपयोग हो लोग घरों से बाहर खुले में शौच ना करें उसके लिए ग्राम पंचायत स्तर पर टीमों का गठन किया गया। आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, और ना जाने कितने विभागों को इस अभियान से जोड़ा गया। सुबह 5 बजे पूर्व से दिन के 8 बजे तक टीमें गांव गांव खेत खलियानों नालों आदि में निगरानी करती रही कहीं ढोल बजाकर तो कहीं सीटी घंटी बजाकर खुले में शौच करने वालों को शौचालयों में जाने की हिदायतें समझाइश दी गई तथा उसके बाद गांवों को खुले में शौच मुक्त मानकर पंचायतों को ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त पंचायत) का प्रमाण पत्र दे दिया गया। कई पंचायतों में जश्न भी मनाया गया ढोल मांदल के साथ नत्य किया गया।

इतना सब करने के बाद प्रशासन ने शासन को ओ.के रिपोर्ट भेज दी इसके बाद ना तो स्थानीय प्रशासन ने कोई ध्यान दिया और ना ही जिला विकासखंड जनपदों ने ध्यान दिया अभियान के समय आम्बुआ में लगभग 100 परिवार झोपड़पट्टी बनाकर रह रहे थे जिसमें से कुछ भाग गए तो कुछ ने कस्बे में किराए से मकान ले लिए मगर अभी वे किराए के मकान छोड़कर पुनः झोपड़पट्टी बनाकर रहने लगे हैं तथा खुलेआम सुबह शाम या दिन में खुले में शौच कर रहे हैं जिन्हें पुराना पत्थर कारखाना क्षेत्र में सुबह देखा जा सकता है इधर कस्बे के कई परिवार जिनके घरों में पक्के शौचालय हैं। मगर बाहर खुले में जाने के आदि स्त्री पुरुष बच्चे नदी किनारे तथा खेतों नालों आदि में शौच करते जा रहे हैं जिन्हें रोकने वाला कोई नहीं स्थिति वही पुरानी वाली हो रही है और गंदगी नदी नालों खेतों में पसर रही है यदि यही हालत रही तो 2019 या उसके पूर्व की जो स्थिति थी वह 2020 में भी बनी रह सकती है और प्रधानमंत्री के सफाई अभियान की अपील की धज्जियां उड़ती नजर आएगी।

 

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