एक गांव की अजीबो-गरीब रस्म, यहां पर नवमीं को ही मनाया जाता है दशहरा पर्व, देखिए खास रिपोर्ट में

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योगेन्द्र राठौड़ ,सोंडवा

यह कहानी नही हकीकत है और यह गाँव और कही नही मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल अलीराजपुर जिले की सबसे बड़ी तहसील सोंडवा है । और इस अनोखे रिवाज का कारण अलीराजपुर लाइव आपको बतायेगा । कारण जानने के लिए हमे राजा-महाराजाओ के जमाने मे जाना होगा, उस समय के सोंडवा के राजा के वंशज शिव प्रताप ने बताया कि सोंडवा रियासत और आली रियासत के राजा आपस मे भाई -भाई थे और राजघराने कि कुल देवी का स्थान भी आली मे था। जिसका पुजन कर रियासतो कि खुशहाली के लिए दशहरे के दिन आली मे पाडे (भेषा)की बली दी जाती थी। क्योंकि यहाँ(सोण्डवा) के राजा को कुल देवी की पुजा व अपने भाई से दशहरे पर मिलने आली जाना होता था। इस कारण सोंडवा मे दशहरा एक दिन पहले यानि नवमी को ही बनाया जाता है। बताया जाता है कि सोंडवा रियासत मे 13 गाँव शामिल थे ।जिसके चलते इन गाँव के लोगो को यहाँ दशहरा मनाने आना अनिवार्य था ,और यही क्रम आज भी जारी है ।हाँ समय के साथ इसमे भी बदलाव जरुर आये है पहले आसपास के तैरह गाँव के लोग यहाँ आकर पुजा पाठ कर बकरे की बली देते थे । पर समय के साथ-साथ यहाँ शामिल होने वाले गाँवो की संख्या कम हो गई है। अब लगभग 4 या 5 गाँव के लोग ही अब यह परंपरा निभा रहे है। हाँ,पर यह जरुर है कि रावण दहन यहाँ भी पुरे भारत कि तरह ही दशमी यानि दशहरे के दिन ही होता है।

नवमी के दिन दशहरे का यह आयोजन कुछ यु होता है

इसदिन शाम के समय गाँव के वरिष्ठ लोग राजघराने के बंगले (गड़ी)पर इक्कठा होते है और यहाँ से गाँव के ठाकुर (राजाओ के वंशज)के परिवार के सदस्य उनके साथ रैली के रुप मे नगर भ्रमण पर निकलते है इसमे कुछ लोगो के हाथ मे विजय पताका भी होती है ।उसके बाद यह लोग पुराने बंगले(गड़ी) पर जाकर पुजन कर बकरे की बली देकर विजय पताका मंदिर मे लगाकर अपने अपने गाँव व घर जाकर खुशियाँ मनाते है । और पुनः सोंडवा लोटकर नवरात्रि के अंतिम गरबे का आनंद लेने के लिए इक्कठा होते है ।इसलिए इसदिन को सोंडवा मे दशहरा का मैला कहाँ जाता है । पर समय के साथ इस मैले की रंगत भी कम हो गई है।

 

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