मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ
ऐसे अनेक आदेश शासन प्रशासन की ओर से समय समय पर निकाले जाते हैं जिसमें प्रतिबंध लगाने की बात होती है। मगर इन आदेशों को कितना और कब तथा कौन लागू कराऐ इसका कोई अता-पता नहीं होता है। लिहाजा प्रतिबंध को कोरा कागज का टुकड़ा बनकर रह जाता है ।ऐसे ही आदेश प्रति वर्ष शासन शासन की ओर से 15 जून से लेकर 15 अगस्त तक मत्सयाखेट का निकाला तो जाता है ।मगर इसका पालन कभी भी नहीं होता होगा यह संदेहास्पद लगता है इसका खुला उल्लंघन इन तारीखों में देखा जा सकता है।
इस वर्ष भी जिला कलेक्टरों द्वारा जिलों में 15 जून से 15 अगस्त तक जलाशयों में मछली का शिकार करना तथा बेचना प्रतिबंधित किया गया है। आदेश के समाचार समाचार पत्रों टी.वी चैनलों पर प्रकाशित तथा प्रदर्शित भी किए गए । यह प्रतिबंध इसलिए लगाया जाता है । क्योंकि 15 जून से 15 अगस्त का समय मछलियों का प्रजनन समय रहता है। अंडे देने तथा अंडों की देखभाल करने के लिए मछलियां एक स्थान पर सुस्ती के साथ पड़ी रहती है, जिस कारण उनका शिकार आसानी से किया जा सकता है। ऐसे समय शिकार होने से उनकी वंश वृद्धि पर भी असर पड़ता है यही कारण है कि शासन-प्रशासन प्रतिवर्ष आदेश जारी करता तो है मगर आदेश का कडाई से पालन कोई कराने वाला नजर नहीं आता है । आज तक कहीं कोई कार्यवाही हुई हो तथा दोषियों पर कार्यवाही की गई । ऐसा देखने सुनने मैं भी शायद ही आया हो। यही कारण है हाट बाजारों में जिंदा तथा मृत मछलियों का विक्रय धड़ल्ले से होता रहता है ।आंबुआ में भी हाट बाजार के दिन तथा अन्य दिनों ग्रामीणों के द्वारा मछलियां बेची जा रही है। आंबुआ के बाहरी ग्रामीण क्षेत्रों जिनमें झोरा,आगोनी, जुवारी, बड़ा ईटारा, देकालकुआ, बावड़ी, रामपुरा आदि अनेक जलाशयों (तालाबों) से मछली शिकार वदस्तर जारी है । हालांकि इस वर्ष कई तालाब सूखे पड़े हैं। मगर जहां पानी है वहां मछलियों का शिकार होता है ।इसके अलावा जोबट बड़वानी कुक्षी आदि क्षेत्रों से मछली विक्रेता हाट बाजार में मछली बेचने आते हैं तथा प्रतिबंध का खुला उल्लंघन करते नजर आते हैं।
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