जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों की अनदेखी के चलते जर्जर भवन में पढऩे को मजबूर क्षेत्र के नौनिहाल

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भूपेंद्रसिंह नायक, पिटोल
सन् 1990 से पहले बने शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल का भवन अभी पूर्ण रूप से जर्जर हो गया है जो कभी भी किसी भी परिस्थिति में धराशायी हो सकता है, जिसमें इन अध्ययनरत छात्राओं को जनहानि हो सकती है। विडंबना यह है कि विगत 20 वर्षों से यह भवन जर्जर हो चुका है, परंतु जब भी नए भवन की मांग की जाती है उसे मरम्मत करा इतिश्री कर ली जाती है जिसकी वजह से भवन की दीवारों में लंबी दरारें पड़ गई है, तो एक दीवार दूसरी दीवार से अलग हो गई है उसमें सीमेंट-रेत से जुड़ाई कर के काम चलाया जा रहा है। छतों में इतना पानी टपकता है कि छत पर लगे पत्थर टूट कर गिर रहे हैं जहां सीमेंट का कंक्रीट का स्लैब के गिरने से लोहे की जंग लगा सरिया बाहर आ गया हैं और कभी भी इस कारण स्कूल के सभी कमरों की छत गिर सकती है। जब बरसात होती है तभी स्कूल को खाली कर बच्चों की छुट्टी करना पड़ती है जिससे बच्चों की पढ़ाई भी बाधित होती है क्योंकि जहां स्टाफ के बैठने का कक्ष है वह भी पूर्ण रूप से जर्जर हो गया है

मरम्मत की वजह से भी धराशाई हो सकता स्कूल भवन
हर वर्ष बरसात में छत टपकने के कारण स्कूल में प्रतिवर्ष छत के ऊपर सीमेंट कंक्रीट से रिपेयर की जाती है हर रिपेयरिंग की वजह से छत की मोटाई काफी बढ़ जाने का से छत के ऊपर वजन बढ़ रहा है इस वजह से भी छत में जगह-जगह दरार बन रही है और कभी भी गिर सकती है।
पढ़ाई के साथ छत पर ज्यादा ध्यान रहता है छात्रों का स्कूल में जब छात्र अध्ययनरत रहते हैं उनका ध्यान पढ़ाई के साथ साथ छत पर भी रहता है कि कहीं छत गिर जाने से कोई जनहानि ना हो जाए

नेताओं व प्रशासन से कई बार नवीन भवन की मांग कर चुके हैं
विगत15 वर्षों से सत्तारूढ़ दल या विपक्ष का कोई भी नेता स्कूल परिसर में वार्षिक उत्सव या अन्य कारणों से आए हो। स्कूल तरफ से यह मांग हमेशा उठी है कि नवीन भवन बच्चों के लिए बन जाए परंतु आज तक सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के नेताओ प्रशासनिक अधिकारी भी इसकी स्कूल की स्थिति देखकर चले गए परंतु इस स्कूल की किसी भी जिम्मेदार अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने सुध तक नहीं ली। इसी वजह से आज इतने छात्र भगवान भरोसे स्कूल भवन में पढऩे को मजबूर है।

पढ़ाई के प्रति जागरूकता तो आई पर संसाधनों एवं शिक्षकों की कमी-

विगत कई वर्षों से आदिवासी छात्र छात्राओं एवं उनके पालकों में पढ़ाई के प्रति जागरूकता आई है परंतु पिटोल की स्कूल भवन में कमरों की कमी तथा यहां केवल आर्ट एवं साइंस संकाय को ही पढ़ाया जाता है जबकि यहां एग्रीकल्चर एवं कॉमर्स विषय हो तो बच्चों को इन दो विषयों को पढऩे के लिए अन्यत्र स्कूलों में जाना नहीं पड़ता जबकि भगोर, कल्याणपुरा ,रातीतलाई आदि स्कूलों में एग्रीकल्चर और कॉमर्स संकाय स्वीकृत हो चुके हैं परंतु प्रतिवर्ष छात्रों की संख्या में काफी इजाफा हो रहा है। वही वर्षों पुरानी प्रशासनिक व्यवस्था के चलते में शिक्षकों की इसी स्कूल में नियुक्तियां नहीं हुई है जहां कक्षा नौवीं में 240 से अधिक बच्चे अध्ययनरत हैं वहां चार शिफ्ट में पढऩे को मजबूर है जबकि एक शिफ्ट में 45 बच्चों का होना चाहिए इसके विपरीत 65 बच्चे पढ़ रहे हैं इस स्थिति में बच्चों को बैठने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है कक्षा दसवीं में 120 बच्चे दो शिफ्ट में पढ़ रहे हैं। वहीं 11वीं में 99 बच्चे हैं कक्षा 12वीं में 100 अच्छे हैं और मिडिल में 360 बच्चे पढ़ रहे हैं। स्कूल भवन के अभाव में बच्चे पढऩे को मजबूर हैं। पिछले वर्षों में पिटोल हायर सेकंडरी ने अव्वल दर्जे का परिणाम दिया है और यहां के बच्चों को उच्च स्तर की पढ़ाई में भी चयन हुआ है। इन प्रतिभाओं को देखते हुए शासन प्रशासन को इन बच्चों के लिए अति शीघ्र नवीन भवन सीकर स्वीकृत करना चाहिए।

जिम्मेदार बोले-
अभी एक नवीन भवन बना है उसमें इन बालकों को अति शीघ्र शिफ्ट कर देंगे और जर्जर भवन का प्रस्ताव बनाकर भेज रखा है। – प्रशांत आर्य, शिक्षा विभाग आयुक्त झाबुआ

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