फिरोज खान @ अलीराजपुर
कहते है अगर अफसरों मे वंचित ओर संघर्षशील तबके के लिए संवेदनाऐ हो तो राह समस्याओ की राह जरुर निकलती है आज आपको इस कहानी मे हम बता रहे है कि कैसै एक IAS की किसान हितैषी जिद ने देश की सबसे बडी बीमा क्षैत्र की सरकारी कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम यानी LIC को झुकने को मजबूर कर दिया ।
ऐसे उठा था विवाद ; कोट॔ चले गये थे IAS अफसर
दरअसल IAS अफसर शेखर वर्मा उन दिनो यानी सन 2014/15 मे आदिवासी बहुल अलीराजपुर के कलेक्टर थे इसी दोरान उनकी जनसुनवाई मे कुछ किसान परिवार यह शिकायत लेकर आये कि सहकारी संस्थाओं मे उनके अभिभावक किसानो का कृषक समूह बीमा था लेकिन उनकी मोत होने के बाद उन्हें ₹ 50 हजार का क्लेम नही दिया जा रहा है इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुऐ तत्कालीन कलेक्टर शेखर वर्मा ने जब बारीकी से खुद जांच की तो पाया कि जिले की 26 आदिम जाति सहकारी संस्थाओ के द्वारा प्रति किसान 214 रुपये प्रीमियम मय दस्तावेज के भारतीय जीवन बीमा निगम को जमा करवाया गया है मगर भारतीय जीवन बीमा निगम क्लेम भुगतान को यह कहते हुऐ गंभीर नही है कि उन्हे सहकारी संस्थाओ ने दस्तावेज ठीक से उपलब्ध नहीं करवाये है जबकि सहकारी संस्थाओ का कहना था कि उनके पास सारे प्रमाण है कि उन्होंने सारी प्रक्रिया पूर्ण की है 2010 से 2013 के बीच ऐसे 531 किसान थे जिनकी मोत का क्लेम प्रति 50 हजार के मान से भारतीय जीवन बीमा निगम को 2 करोड 65 लाख 50 हजार रुपये देना था । लेकिन एलआईसी ने यह क्लेम जब शेखर वर्मा के पत्राचार के बावजूद नही दिया तो फिर वर्मा ने जिला उपभोक्ता फोरम का रुख किया लेकिन जब वहां तकनीकी आधार पर केस खारिज हुआ तो मामला वे राज्य उपभोक्ता फोरम मे ले गये ।
लंबी लडाई के बाद मिला किसान परिवारों को न्याय
राज्य उपभोक्ता फोरम मे मामला चलने के दोरान ओर अलीराजपुर कलेक्टर पद से मुक्त हो जाने के बाद भी IAS अफसर शेखर वर्मा ने अपनी लडाई ओर प्रयास जारी रखे ओर अंततः उनके विजन की जीत हुई ओर राज्य उपभोक्ता फोरम के आदेश के बाद भारतीय जीवन बीमा निगम को किसान परिवारों को कुल 1 करोड 91 लाख रुपये का क्लेम देना पडा है अभी तक 531मृत किसानो मे से 444 मृत किसानो के परिजनों को क्लेम मिल चुका है जबकि 31 मामलो मे कुछ दस्तावेज फिर से बुलवाये गये है जबकि 56 मामले उम्र संबंधी ओर अन्य तकनीकी दिक्कतों के चलते निरस्त किये गये है ।
संवेदनशीलता से लड़े ; जुनून से जीते शेखर वर्मा
किसानो ओर वंचितों को लेकर IAS अफसर शेखर वर्मा मे बेहद संवेदनशीलता थी तभी किसानो की लडाई को उन्होंने अपनी लडाई माना ओर LIC जैसी सरकारी संस्था से कानूनी लडाई लडी .. आपको बता दे कि शेखर वर्मा ने हर मोर्चे पर पहले LIC के जिम्मेदार अफसरों को समझाने का प्रयास किया था मगर इन प्रयासों को जब अफसरों ने गंभीरता से नहीं लिया तो शेखर वर्मा कानूनी लडाई को मजबूर हुऐ ।
आदिवासी अंचल अलीराजपुर मे इन कामों के लिए अभी भी याद किये जाते है शेखर वर्मा
भारतीय प्रशाशनिक सेवा के अधिकारी शेखर वर्मा करीब ढाई साल तक अलीराजपुर कलेक्टर रहे है इस दोरान उन्होंने जिले मे नैत्रदान की परंपरा डलवाई .. जोबट कस्बे की गायत्री शक्तिपीठ मे उन्होंने नैत्रदान कलेक्शन सेंटर मय संसाधनो के साथ खुलवाया .. आज अभी तक 80 से ज्यादा नैत्रदान हो चुके है ओर अब समाज खुद जुडकर नैत्रदान को जन अभियान बना चुका है । इसी तरह शेखर वर्मा के अलीराजपुर कलेक्टर बनने के पहले रक्तदान का आलम यह था कोई रक्त देने को तैयार नही था वजह स्थानीय कुप्रथाऐ थे लेकिन IAS शेखर वर्मा ने पहले अलग अलग विभागों के विभागो के अधिकारियो को रक्तदान के लिए प्रेरित किया फिर सामाजिक संगठनों को ..कुछ ही साल मे अलीराजपुर जिले मे रक्तदान एक महादान अभियान बन गया ओर जब वे यहां से विदा हुऐ तो पर्याप्त यूनिट रक्त हर महीने एकत्रित होने लगा था । आज भी पूरे देश मे गरीब ओर जरुरतमंद बेईलाज की व्यवस्था करने मे अपने श्रेष्ठ प्रयास करने मे शेखर वर्मा कभी पीछे नही रहते ।
अगर आप आपने गांव-शहर में झाबुआ-अलीराजपुर लाइव की खबरें वाट्सएप पर चाहते हैं तो हमारे इस नंबर 9669487490 को अपने-अपने दोस्तों, परिजनों एवं विभिन्न समूहों के वाट्सएप ग्रुपों में एड कर लें।
)