खतरे में प्राचीन धरोहर; ऐतिहासिक फूटा मन्दिर की दीवारें हो गई खतरनाक..

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सलमान शैख़@ पेटलावद
पुरातात्विक धरोहरो को सहजने व पर्यटन स्थलों के विकास को लेकर पेटलावद क्षैत्र की हमेशा उपेक्षा हुई हैं। जबकि यहां पुरातात्विक धरोहरो को सहजकर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता हैं। किंतु प्रशासन द्वारा आज तक इस दिशा में काई ठोस कदम नही उठाए गए जिस कारण यहां की पुरातात्विक धरोहरे अपने अस्तित्व के लिए आज भी संर्घषरत हैं।
ऐसा ही एक स्थान नगर के एतिहासिक पाषाण पत्थरो से बना फूटा मंदिर जो कि पंपावती नदी के दूसरे तट पर मौजूद है। जिसका इतिहास लगभग 150 साल से भी अधिक पुराना हैं। जो अब जीर्ण-शीर्ण होता जा रहा हैं। यहां कभी भी बड़ी घटना से इनकार नहीं किया जा सकता। जिसके पिछे मान्यता हैं कि इसे किसी अन्य स्थान से लाकर यहां रखा गया हैं। जो कि पूरी तरह बड़े पत्थरो से बना हुआ हैं। जिसमें भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा हैं।
यहां कई साल पुराने स्मारक, दीवार व द्वारा खतरनाक स्थिति में हैं। जिनकी देखरेख श्रद्धालुओ द्वारा की जा रही हैं। इन्हे सहेजने के प्रयास अब तक नहीं किए गए हैं। जिले मे कई मंदिरो को धर्मस्व विभाग की ओर से पुरातात्विक महत्व के मंदिरो के जीर्णोद्धार के लिए पैसा दिया किंतु जिले के सबसे पुराने फुटा मंदिर के लिए अभी तक एक भी पैसा नही दिया गया। इसके लिए तत्कालीन एसडीएम संकेत एस भोंडवे के समय पुरातत्व विभाग को एक पत्र भी लिखा गया किंतु आज तक कुछ नही हुआ।
मंदिर के प्राचीन द्वारो, बड़े-बड़े पत्थर व पिलर कभी भी ढह सकते हैं। साथ ही मंदिर की दीवार मेें भी बड़ी-बड़ी दरारे हो रही हैं। सावन माह के दौरान हजारो की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस क्षैत्र में स्थित प्राचीन स्मारक प्रशासन की उदासीनता व पुरातत्व विभाग की देखरेख के अभाव के चलते कभी भी किसी बड़े हादसे का कारण बन सकते हैं। शासन-प्रशासन को पिछले वर्ष मंदिर में हुई घटना से सबक लेना चाहिए और अब इस दिशा में विशेष कदम उठाने की जरूरत हैं। मंदिर की दीवार भी कई जगह से क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। पिछले तीन साल पहले द्वार के किनारे पर एक बड़ा पत्थर अपनी जबह से खिसककर अवरूद्ध होकर नीचे गिर गया था। इसलिए प्राचीन धरोहरो व दीवारो की मरम्मत करने की आवश्यकता हैं। साथ ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की जरूरत हैं।
पत्थरो को बदलने की थी कवायद, लेकिन हुइ फेल-
उल्लैखनीय है कि पिछले वर्ष पुरतत्व विभाग द्वारा मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए कवायद की थी, लेकिन शुरूआत में ही सबकुछ फेल साबित हुआ। राजस्थान से आई टीम जो यहां विशालकाय पत्थरो को काटने का काम कर रही थी, वह कुछ ही दिनो बाद सबकुछ अधूरा छोडक़र चली गई। इसके पीछे का कारण अभी तक सामने नही आया है कि उन्होनें काम क्यो बंद किया। इस कार्य में होना यह था कि जो पत्थर जीर्णशीर्ण हो गए थे, हूबहू उसी पत्थर के आकृति ये टीम बनाती और उस पत्थर को वहां से हटाकर नये पत्थर को लगाया जाता, जिससे मंदिर में किसी हादसे की आशंका नही रहती, लेकिन अब दौबारा मानसून सीर पर है, यहां जो पत्थर ज्यादा डेमेज है उनके गिरने की आशंका बनी हुई है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस ओर अभी तक पुरातत्व विभाग के किसी आला अफसर ने झांककर नही देखा है, जिससे आने वाले दिनो में किसी अनहोनि घटना से मुंह नही फेरा जा सकता है।
दूसरी लिपी में कुछ लिखा हैं-
इस मंदिर में दूसरी लिपी में कुछ लिखा हुआ भी हैं जिसे आत तक पढ़ा भी नही जा सका हैं। यदि प्रशासन प्रयास कर किसी जानकार की मदद से इस पर खुदी लिपी को पढ़वाते तो हो सकता है इसके इतिहास से संबंधित कई जानकारियो से पर्दा हटा जाता। इस मंदिर के पीछे बुजुर्ग लोगो की कई कहानियां बता रखी हैं कोई कहता है इस मंदिर को एक साधु द्वारा एक स्थान पर बनाकर यहां लाया गया है कोई कहता है एक ही रात एक साधु द्वारा इसका निर्माण किया गया है। आखिर कोई भी बात हो पर यह ऐतिहासिक धरोहर सहजकर रखने लायक है प्रशासन की निष्क्रियता का लाभ कुछ लोगो ने उठाकर इस स्थान के आसपास की खाली पड़ी सरकारी भूमि पर कब्जा कर लिया।
ऐसे कई एतिहासिक मंदिर हैं क्षैत्र में-
फूटा मंदिर ही एक स्थान नही इसके साथ क्षैत्र में भद्रकाली माताजी मंदिर, खेड़ापति हनुमान मंदिर, हनुमान घाटी (बारी) आदि स्थान ऐसे है जो कि प्रशासन की निष्क्रियता के कारण अपने वास्तविक स्वरूप को खाते जा रहे हैं व आने वाले समय में यह हमारी धरोहरे मात्र इतिहास की बात बनकर रह जाएगी।

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