निजी स्कूलों में किताबें भी निजी प्रकाशको की, पालकों में नाराजी स्कूलों और प्रकाशकों की मिली भगत स्कूल संचालक को मिलता है कमीशन

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पन्नालाल पाटीदार, रायपुरिया

बच्चों को पढ़ाना बच्चों का खेल कतई नहीं है। बहुत कम ऐसे माता-पिता होंगे जिन्हें अपने बच्चे की स्कूल फीस को लेकर चिंता न होती हो। दूसरी तरफ स्कूल हैं कि हर बढ़ती क्लास के साथ फीस में 10 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी कर देते हैं। इतना ही नहीं साल भर किसी न किसी नाम पर स्कूल माता-पिता की जेब काटते ही रहते हैं। आखिर क्यों स्कूल अब शिक्षा केंद्रों की जगह किसी दुकान का सा रूप लेते जा रह हैं।स्कूलों की ज्यादा फीस अभिभावको की मुसीबत बन रही है। स्कूलों द्वारा नर्सरी में प्राइमरी से ज्यादा फीस वसूली जा रही है। बच्चों के बढ़ते क्लास के साथ स्कूल फीस में भी बढ़ोतरी करते है। डोनेशन के नाम पर तो कभी बैग, जूतों, कपड़ों के मनमाने दाम लगा कर स्कूलों बच्चों के अभिभावकों से ज्यादा फीस वसूल रहे है। अधिकतर स्कूल किताबों के लिए दुकान तय करते हैं। इतना ही स्कूल इवेंट्स के नाम पर बार-बार वसूली की जाती है।

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