औपचारिकता बन कर रह गया त्योहारी हाट, व्यापारी लौटे निराश

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

 त्यौहार के पूर्व लगने वाला साप्ताहिक हाट बाजार को क्षेत्रीय भाषा में लोग त्योहारिया हाट कहते हैं जिसमें आगामी त्योहार हेतु उपयोग में लाई जाने वाले सामान का क्रय विक्रय होता है। क्षेत्र में आदिवासी समुदाय का भगोरिया तथा अन्य सभी समाजों का होली त्यौहार आ रहा है जिसके पूर्व का त्यौहारिया हाट आम्बुआ में मंगलवार को लगा मगर धंदा व्यवसाय मंदा ही रहा है केवल इक्का-दुक्का कपड़ा व्यवसायियों का धंधा ही चल सका। आदिवासी बाहुल्य अलीराजपुर जिले में इस समाज का भगोरा पूर्व जो कि इस समाज का सांस्कृतिक पर्व कहा जाता है यह साप्ताहिक हाट बाजार के दिन संपन्न होता है इस पर्व के 1 सप्ताह पूर्व त्योहारिया हाट बाजार लगने लगता है जिसमें त्यौहार के प्रमुख प्रयुक्त होने वाली खाद्य सामग्री कपड़े तथा श्रंगार के सामान की खरीदी बिक्री होती है । आम्बुआ यह त्योहारिया हाट बाजार मंगलवार को संपन्न हुआ जिसमें भीड़ तो अधिक थी मगर ग्राहकी नदारद थी । इसका प्रमुख कारण बताते हैं कि गुजरात मजदूरी करने गए परिवार वापस नहीं आए हैं साथ ही क्षेत्र में कोई मजदूरी लायक कार्य नहीं चल रहे हैं।  फसलें भी अभी खेत खलिहान में है । आर्थिक तंगी तथा महंगाई अधिक होने के कारण ग्राहकों की क्षमता घटी है बाजार में दिनभर व्यापारी ग्राहकों का इंतजार करते रहे । कुछ रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर भीड़ जरूर दिखी। मगर इनका भी उम्मीद के मुताबिक धन्धा नहीं हुआ अगले दिनों में मंगलवार 19 मार्च को आम्बुआ में भगोरिया मेला लगना है पर त्यौहारिया हाट के सन्नाटे ने व्यापारियों को सन्नाटे मे ला दिया है कि कहीं भगोरिया औपचारिकता बन कर ना रह जाए और दुकानों में त्यौहार के मद्देनजर भरी गई सामग्री धरी ना जाए।

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