श्रीमद भागवत भागवत ज्ञान कथा में स्वामी प्रणवानंद ने कहा, किसी कार्य को करने के लिए मन का एकाग्र होना जरुरी

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राज सरतलिया, पारा
विगत चार दिनों अंचल में ग्राम रोटला मे चल रही संगीतमयी श्रीमद भागवत ज्ञान कथा मे 1008 महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवांनदजी ने आज कथा के पांचवे दिन बताया कि आप का मन यथावत हे या नही कथा में या अन्य काम करते हे तो आपका मन एकाग्रह होना चाहिए। दूसरा यादो का संकलन होना चाहिए। अगर आप कही बैठ कर कथा सुनाते तो कथा का याद रहना जरूरी है। नहीं तो आप किसी काम के नही हो यादो का सबसे बड़ा हिसा दो हे वह आंख-कान है। हमारे सनातन धर्म में ही धर्म का ही बड़ा महत्व है। भारत एक ऐसा देश है जहां हर रोज उत्सव ही उत्सव मनाए जाते हैं। भगवान के जन्म का बडे शहरो से बड़ा उत्सव मनाया जाता हे। गांव में हर भक्त बालक बालिका चखने के लिए माखन लाए। भगवान सुदामा के गांव का नाम था आनन्दी। आनन्दी मां इंदिरा गांधी की गुरु थी,वह जन्म के समय रोय नही तब लोगों ने पूछा की आप रोय नही तो उन्हाने बोला की में झोपड़ी में पैदा हुई हूं, भगवान पैदा होते ही भगवान लगने लगते है। भगवान राम को भगवान हाने का बोध तो बड़े होने पर तप करने से पता चला है। हमें दूसरे की चीज नही हड़पना चाहिए। भगावन ने कहा कि हम लेते है पर हम देते नही है। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्व की लीला रची और एक ऊंगली पर गोवरधन पर्वत को उठाया व भारी वर्षा से वृन्दावन वासियों की रक्षा की। कथा के समापन पर आरती व महा प्रसादी का वितरण किया गया। इस अवसर पर धर्म रक्षक के प्रमुख वालसिह मसानिया व उनके सहयोगी सदस्य समेत बडी संख्या में श्रद्धालु महिला पुरुष उपस्थित थे। प्रतिदिन की तरह कथा समाप्ति के पश्चात भंडारे का आयोजन भी किया गया था जिसमे उपस्थित श्रद्धालुओं भोजन प्रसादी ग्रहण की।
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