मवेशियों का आतंक, चार वर्षीय बालक को उठाकर फेंका, गंभीर घायल

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सलमान शैख़,पेटलावद

शहर में आवारा पशुओं की समस्या लाइलाज होती जा रही है। यहां आवारा गायों, सांड़ों का काफिला कहीं भी चलता-फिरता मिल जाएगा। आवारा पशुओं के कारण शहरवासी परेशान हो रहे है। शहर की गलियों में रोज आपस में भिड़ते देखे जा सकते है। आवारा पशुओं की समस्या और नपा की लापरवाही उजागर होने से नागरिकों में आक्रोश है। आए दिन कोई न कोई नागरिक, बुजुर्ग-बच्चे इन आवारा पशुओं के हमले के शिकार हो रहे है। बावजूद इसके न तो इन आवारा पशुओं को पकड़ा गया है और न ही इनके मालिको पर कोई ठोस कार्यवाही करने की जहमत उठाई। अब पशु समस्या जानलेवा हो चुकी है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण बुधवार देर शाम नगर के वार्ड क्रमांक 6 के भगतसिंह मार्ग पर देखने को मिला। जहां एक आवारा सांड ने घर के बाहर खेल रहे 4 वर्षीय प्रज्ञांस राठौड़ को अपने सींग से उठाकर फेंक दिया। वह तो गनीमत यह रही कि उस समय कोई बाइक सवार या अन्य वाहन नही निकले, नही तो एक बड़ी घटना घट सकती थी। बच्चे की चीख पुकार सुनकर आस-पास के लोगों ने बमुश्किल सांड़ों को वहां से भगाया। घटना में प्रज्ञांस के आंख के नीचे गंभीर चोट लगी, परिजनो द्वारा उसे तत्काल हास्पीटल ले जाया गया, जहां डॉक्टरो को चार टांके लेना पड़े।

नगरवासीयो में भारी आक्रोश:
इस घटना से क्षेत्रीय रहवासियों में नपा के प्रति आक्रोश है। नगरवासी नरेंद्र कुमार राठौड़, पंकज राठौड़, कपिल राठौड़, निलेश राठौड़, झमक पटवा, सौरभ पटवा, धनराज राठौड़ और बद्री राठौड़ ने बताया कि ये कई आवारा सांड पूरे शहर में घूमते रहते है और आए दिन राहगीरों पर इसी तरह हमले करने के लिए लपकते है। उनका कहना है कि यदि समय रहते नपा ने पशु समस्या का निदान किया होता तो आज बालक उसका शिकार नही होता।
आपको बता दे कि शहर में यह पहली घटना नहीं है इससे पूर्व भी नगर के बड़े-बुजुर्ग और बच्चो सहित महिलाएं आवारा पशुओं की चपेट में आकर या तो अपने अंग टुटवा बैठे हैं या फिर बूरी तरह चोटिल होकर हजारों रुपए इलाज पर खर्च कर चुके हैं। ऐसा नही है कि इन घटनाओं की नपं को खबर नही है, बल्कि सबकुछ पता होने के बाद भी जनप्रतिनिधि और अधिकारीयो का रवैया उदासीन बना हुआ है। इन घटनाओं और आवारा जानवरों की शिकायत कई बार नगर परिषद को की गई लेकिन नगर परिषद द्वारा आज तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई जिसके कारण नगरवासियों को लगातार जान का खतरा बना हुआ है।

खानापूर्ति कर भूले अभियान:
यातायात व्यवस्था बनाने के लिए कई मर्तबा नगर परिषद द्वारा आवारा मवेशियों को पकडऩे की कार्रवाई की गई, लेकिन हमेशा की तरह दो चार दिन ही पालन किया, जिसमें दर्जन भर ही मवेशियों को पकड़ा गया। इसके बाद आवारा मवेशियों को पकडऩे की मुहिम दम तोड़ गई।

कोर्ट में जाएं, लापरवाह अफसरों को हो सकती है जेल, लगेगा जुर्माना:
अभिभाषक निलेशचंद्रसिंह कुशवाह व बलदेवसिंह राठोर ने बताया कि शहर से आवारा पशुओं को हटाने की जिम्मेदारी नगर परिषद के अधिकारियों की है। वहीं, मॉनिटरिंग का काम प्रशासनिक अधिकारियों का है। कर्मचारियों-अधिकारियों को जो जिम्मेदारी सौंपी जाती है, अगर वे निर्वहन नहीं करते हैं तो आईपीसी की धारा-166 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। शहरवासी कोर्ट में इस्तगासे के जरिए शिकायत कर सकते हैं। अधिकारी कर्मचारी दोषी पाए जाते है तो एक साल की जेल और जुर्माना हो सकता है। आवारा मवेशियों की वजह से हादसे का शिकार होने वाले पीडि़त उनके परिजन नगर परिषद- राज्य सरकार के खिलाफ क्षतिपूर्ति के लिए क्लेम कर सकते हैं।

यहां इन आवारा पशुओ की संख्या ज्यादा:
शहर में आवारा पशुओ का झुंड कहीं भी विचरता हुआ मिल जाएगा। इस कारण न केवल लोगों को आने-जाने में दिक्कत होती है बल्कि सडक़ों पर गंदगी फैलती है। इन पशुओं से मार्ग-दुर्घटनाओं में इजाफा हो रहा है। रात में मोहल्ले और सडक़ें इन आवारा सांडो से भरी रहती हैं। गायों तथा सांड़ों के बड़े झुंड, बाजारों, गलियों, मुख्य सडक़ों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर सरेआम टहलते हुए राहगीरों के लिए खतरा बने हुए हैं।
झंडा बाजार, भगतसिंह मार्ग, गांधी चौक, महावीर कालोनी, माधव कालोनी, सीरवी मोहल्ले भोई मोहल्ले, सुभाष मार्ग, अम्बिका चौक, गणपति चौक, पुराना बस स्टैंड सहित व डिवाइडर पर जगह-जगह सडक़ के बीचों-बीच मवेशी एकत्र रहते हैं। ऐसे में ये कई बार सडक़ दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। मवेशियों के अचानक सामने आ जाने के कारण वाहन चालक अपना नियंत्रण खो बैठते हैं और फिर दुर्घटना होते देर नहीं लगती।

बाजार में दुकानदारो को होता है नुकसान:
बाजार क्षेत्र में दुकानदारों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। पशुओं के आपस में लडऩे-भिडऩे से अक्सर बाजारों में भगदड़ मच जाती है। कई बार तो ये जानवर किसी भी दिशा में दौड़ लगा देते हैं, जिससे अक्सर ठेले, दुकानों के सामान या राहगीर उनकी चपेट में आते हैं। बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे अक्सर इनके शिकार होते रहते हैं। शहर का झंडा बाजार और भगतसिंह मार्ग तो लगता है कि जानवरों के लिए ही जैसे आबाद हुई हों। वे कहीं भी अपना मुंह मारते रहते हैं। मवेशियों का जमघट शहरी जीवन के लिए बड़ी समस्या बन गया है। अगर वास्तव में इस बारे में स्थानीय निकाय ने कोई रोडमैप तैयार नहीं किया तो सचमुच स्थिति भयावह हो जाएगी। कई बार तो स्थिति ऐसी बन जाती है कि लोगों को वाहन रोक कर इन्हें हटाना पड़ता है।

अब तक नपा के दावे व कार्रवाई:
– 25 कर्मचारी और संसाधन के जरिए पशु पकड़ो अभियान।
– 50 से अधिक पशुओं को शहर से दूर गोशालाओं में भिजवाया गया।
– पशु के साथ पालकों पर भी कार्रवाई का दावा।
– पुलिस के साथ प्रशासन से सहयोग लेने की बात सामने आई।
बाधाएं:
– पशुपालक विरोध करते हैं। पशुओं को गोशाला से दोबारा ले आते हैं।
– अधिकांश पशुपालक प्रभावशाली लोगों से जुड़े हैं। कार्रवाई में बाधा डालते हैं।
– पशु पकड़ो अभियान और पशुपालकों पर कार्रवाई सिर्फ कागजों तक सीमित है।
पशुपालक द्वारा छुट्टा छोडऩा एक बड़ा कारण:
पशुपालक जब तक गायें-भैंसें दूध देती है, उनका दूध निकालते हैं और उसके बाद उन्हें खुला छोड़ देते हैं। अगर वे फिर गर्भधारण कर लेती हैं और दूध देने के लायक हो जाती हैं तो पकड़ कर फिर से बांध लेते हैं, नहीं तो छुट्टा छोड़ देते हैं। तमाम पशुपालक ऐसे हैं जो केवल दूध दुहने के लिए पशुओं को अपने अड्डे पर लाते हैं बाकी समय उन्हें खुल्ला छोड़े रहते हैं। विडंबना यह है कि स्थानीय प्रशासन की तरफ से पशुपालकों की न तो गणना कराई जाती है और न ही यह देखा जाता है कि शहर में कितने पशु हैं और उनका मालिक कौन है। समस्या तब विकराल हो जाती है जब कोई आवारा पशु किसी वाहन से टकरा कर या आपसी लड़ाई में या किसी हारी-बीमारी से मर जाता है तो कई-कई दिन तक वह वहीं सड़ता रहता है। स्थानीय प्रशासन को खबर होने में ही कई रोज लग जाते हैं और खबर हो भी गई तो वे हटाने में टालमटोल करते रहते हैं। इससे आसपास का इलाका बदबू से भर जाता है। जब कोई घटना घट जाती है तो इस तरह की लीपापोती करना आम बात है। सवाल है कि जब तक योजनाबद्ध ढंग से पशुओं की गिनती नहीं की जाती और उनके मालिकों को चिह्नित नहीं किया जाता तब तक यह समस्या टलने वाली नहीं है। नपं के सामने मुश्किल यह है कि अगर वे उन पशुओं को पकड़ भी लें तो रखें कहां। क्योंकि उन्हें खिलाने-पिलाने और उनकी दवा-दारू कराने की भी जरूरत पड़ेगी।
आवारा पशुओं से शहर को मुक्त कैसे किया जाए, यह तय करना आसान नहीं है। शहर के लोगों को दूध भी चाहिए और पशुओं से मुक्ति भी। अब या तो शहरी क्षेत्र में इन आवारा गायो, भैसों या सांडो आदि के पालन पर पाबंदी लगाई जाए या उनके लिए अलग से शालाएं बनाई जाएं। शहर को पशुओं से मुक्त करने टेढ़ी खीर तो है, लेकिन आज के दौर में यह जरूरी भी होता जा रहा है।

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