हमारा जल हमारा जीवन विषय पर कार्यशाला संपन्न

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झाबुआ, हमारे प्रतिनिधिः वन वि़द्यालय ईको सेंटर के सभाकक्ष में शनिवार को जिला स्तरीय हमारा जल हमारा जीवन विषय पर कार्यशाला संपन्न हुई। कार्यशाला को कलेक्टर श्री बी.चन्द्रशेखर ने संबोधित करते हुए कहा कि जल संरक्षण के लिए शासन द्वारा कई योजनाए संचालित है। जल संरक्षण के लिए जल के उचित उपयोग की आवश्यकता है। अगली पीढी के लिए भी जल बचा रहे इसके लिए जल का प्रबंधन एवं सदउपयोग अति आवश्यक है।

कार्यशाला को श्री सोलंकी, श्री के के त्रिवेदी अन्य उपस्थित अतिथियो एवं उपस्थित विद्यार्थियों ने भी संबोधित किया। कार्यशाला मे प्रभारी ईई जल संसाधन श्री अग्रवाल सहित विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली द्वारा ‘हमारा जल हमारा जीवन’ पर भारत जल सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। इसी के तहत 13 से 17 जनवरी तक देश के प्रत्येक जिले में जल के संरक्षण एवं संवर्धन के संबंध में विस्तृत कार्यशाला आयोजित की जा रहीं है। इसी क्रम में वन विभाग के इक्को सेंटर में जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन शनिवार को किया गया। जिसमें जिले में जल की उपलब्धता, संरक्षण, तकनीकी उपयोग एवं जल की मात्रा आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।

ब्रोशर किए गए वितरित:

कार्यशाला में उपस्थितजनों को कार्यशाला की जानकारी एवं जिले में जल की भौगोलिक स्थिति के संबंध में ब्रोशर वितरित किए गए। जिसमें जिले का नक्शा भी प्रस्तुत किया गया। ब्रोशर के माध्यम से अतिथियों द्वारा बताया गया कि यह जिला लगभग 10 नदियों के आसपास विकसित हुआ है। जिसमें मुख्यतः माही, अनास, गुलाबी, नैगड़ी, पद्मावती, पाट, लाड़की, मोद, सापन एवं सुनार नदियां है। 75 प्रतिशत निर्भरता पर इन नदियों में लगभग 814 मिली घनमीटर जल प्रतिवर्ष उपलब्ध करता है। जिले का कुल भूगर्भी क्षेत्रफल 3 हजार 96 वर्ग किमी है। जिसके तहत वर्तमान अनुमानों एवं भू-जल रिचार्ज के आॅकड़ों के आधार पर उपलब्ध भूगर्भीय जल की मात्रा 202 मिली घनमीटर है।

पानी की विविधता पर दी गई जानकारी:

कार्यशाला में पानी की विविधता पर जानकारी देते हुए बताया कि जिले में लगभग 815 मिली घनमीटर की उपलब्ध अपार जल राशि में से 300 मिली घनमीटर जल का संग्रहण एवं उपयोग किया जा रहा है, जो कि जल मात्रा का लगभग 37 प्रतिशत एवं शेष 67 प्रतिशत बिना उपयोग के ही बह जाता है। इसका कारण बताया गया कि जिले की भौगोलिक स्थिति में भिन्नता है, लगभग 85 प्रतिषत भू-भाग ढ़लान युक्त है। इस स्थिति के चलते जिले की भौगोलिक स्थिति की कमी के कारण एक ओर जल जैसे नैसर्गिक एवं अति महत्वपूर्ण स्त्रोतों का पूर्ण दोहन नहीं हो पा रहा है वहीं दूसरी ओर जिले की उपजाउ मिट्टी पानी के साथ बह जाती है।

जिले में 20 हजार 20 कुएं एवं 14 हजार 378 ट्यूबवेल है:

कार्यशाला में आगे बताया गया कि जिले में उपलब्ध अभिलेख के आधार पर खनन किए गए कुओं की कुल संख्या 20 हजार 20 है एवं ट्यूबवेल की संख्या 14 हजार 378 है। जिससे लगभग 17 हजार 500 हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है। जिले में अब निर्मित माही परियोजना सहित 209 छोटी-बड़ी योजनाओं से लगभग 300 मिली घनमीटर जीवन जल क्षमता का जल संग्रहण किया जाकर 46 हजार 872 हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। इस प्रकार सतही जल एवं भू-जल मिलाकर लगभग 64 हजार 672 हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जा रहीं है।

भविष्य की योजनाओं पर डाला गया प्रकाश:

कार्यशाला में भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए बताया गया कि सतही जल जिले में माही परियोजना से 9 हजार 900 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में जल छिड़काव पद्धति से सिंचाई किए जाने का कार्य प्रगति पर है एवं 14 चिन्हीत सिंचाई योजनाएं प्रस्तावित है, जिनमें लगभग 22 मिली घनमीटर जीवित जल संग्रहित किया जाकर लगभग 6 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जा सकेगी। कार्यशाला में भूजल का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए जिले में अतिरिक्त रूप से 10 हजार कुएं एवं 5 हजार ट्यूब वेल खनन किए जाने का भी सुझाव दिया गया।

माही परियोजना से 10 लाख 95 हजार लीटर पानी उपलब्ध करवाया जाएगा:

कार्यशाला में विशेष रूप से यह चर्चा की गई कि जिले की गत वर्ष 2001 की जनसंख्या लगभग 30 हजार 577 थी। वर्ष 2011 की जनसंख्या लगभग 46 हजार थी। इस प्रकार वर्ष 2014 की अनुमानित जनसंख्या 1 लाख 60 हजार के आसपास होगी। 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मान से कुल 23 लाख 67 हजार लीटर पानी की प्रतिदिन आवश्यकता होगी। जिसके लिए नगरपालिका झाबुआ द्वारा पेयजल हेतु बैराज निर्माण किया जाना प्रस्तावित है। जिले के फ्लोराईड प्रभावित 74 ग्रामों के लिए माही परियोजना से प्रतिदिन 10 लाख 95 हजार लीटर पानी दिए जाने का कार्य पूर्णता की ओर है।

जल की बचत के लिए दिए गए सुझाव:

कार्यशाला में जल की बचत किस तरह की जाए, इसके बारे में सुझाव भी दिए गए। बताया गया कि इसके लिए नियमित रूप से जल संरक्षण एवं संवर्धन से संबंधित कार्यक्रमों के आयोजन जन सामान्य के सहयोग से उनके बीच किए जाए, ताकि उनमें जल संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति जागरूकता आ सके। आय एवं उपयोग की मात्रा के अनुसार जल की दरे निर्धारित कर दी जाए, जल के बाहरी उपयोग लाॅन में सिंचाई, वाहनों का धोना आदि कार्यों में जल के दुरपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाए, मीटर लगाकर, उपभोग अनुसार राशि वसूली जाए, आदि सुझाव दिए गए। कार्यषाला में जल बचत तकनीकी घरेलु उपयोग, वाणिज्यिक उपयोग एवं कृषि उपयोग के बारे में जानकारी दी गई। कार्यशाला का संचालन बीएसएनएल के शरत शास्त्री ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।