मतदान के प्रतिशत में हुई वृद्धि हुई, चुनिंदा पत्रकारों का एसडीएम पंचोली ने किया सम्मान ,ग्रामीण पत्रकारों की उपेक्षा से पत्रकारों में गुस्सा

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झाबुआ लाइव के लिए रायपुरिया से लवेश स्वर्णकार,बामनिया से लोकेंद्र चाणोदिया,अलस्याखेड़ी से पन्नालाल पाटीदार, बनी से अनिल भटेवरा,जामली से राहुल राठौड़,बरवेट से प्रहलाद प्रजापत की रिपोर्ट

विधानसभा चुनाव में प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक ओर वेब मीडिया के प्रयासों से मतदान के प्रतिशत में वृद्धि हुई है इसे नकारा नही जा सकता है । लेकिन इस प्रयास के लिए केवल पेटलावद नगर के ही पत्रकारों का एसडीएम हर्षल पंचोली द्वारा सम्मान करना कहि न कही ग्रामीण पत्रकारों के लिए चिंतन मनन का विषय बन रहा है । आज हर ग्रामीण पत्रकार जिसने कहि न कही मतदान के प्रतिशत में सहयोग किया है । उसके मन को ठेस पंहुची है और आज उनके मन मे यह सवाल उठ रहे है की क्या हम सब पत्रकार ही नही है ? ओर अगर हम सब पत्रकार है भी तो जिले ओर तहसील में बैठे पत्रकारों ने ग्रामीण पत्रकारों की इस तरह की उपेक्षा होने ही क्यो दी की उनका सम्मान क्यो नही हुवा ? क्या पत्रकार संगठनों में ग्रामीण पत्रकार केवल उनके द्वारा करवाए जाने वाले कार्यक्रमो की भीड़ के हिस्से तक ही सीमित रखा जा रहा है ? जिले और तहसील के बड़े पत्रकार,ब्यूरो तहसील ब्युरो या जिले का ओर तहसील पत्रकार संघठन जब जब ग्रामीण पत्रकारों को बुलाता है तब तब ग्रामीण पत्रकार दौड़ कर चला जाता है लेकिन जब किसी सम्मान या कोई और बात आती है तो ग्रामीण पत्रकार उपेक्षा का शिकार होता है। कल प्रशासन द्वारा पत्रकारों का सम्मान किया गया है निश्चित ही पत्रकारों के लिए यह गौरव का क्षण था पर इन पत्रकारों की एक आवाज पर पहुचने वाले ग्रामीण पत्रकार भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनते तो इस सम्मान को उपेक्षा की नही अपेक्षा और सम्मान भारी नजरों से देखा जाता।
पेटलावद एसडीएम हर्षल पंचोली साहब को हम ग्रामीण पत्रकार बतांना भी चाहेंगे ओर उनसे कुछ सवाल भी करेंगे की क्या साहब केवल पेटलावद नगर में ही मतदान का प्रतिशत बढ़ा है ? ग्रामीण इलाकों ने नही बढ़ा है ?यदि ऐसा नही तो फ़िर ग्रामीण पत्रकारों को नजरअंदाज कर उनकी उपेक्षा का क्या कारण रहा ? हर ग्रामीण क्षेत्र चाहे रायपुरिया,बामनिया करवड़,सारंगी,बरवेट,जामली,बनी,झकनावदा,अलस्याखेड़ी,मोहनकोट इन सभी ग्राम में ग्रामीण पत्रकार है इन सभी ग्राम में सीधे प्रेस से एजेंसी है यानी यहा के ग्रामीण पत्रकार भी किसी न किसी बड़े और छोटे अखबार या वेबसाइट का प्रतिनिधित्व करते है । इसका उदाहरण चुनाव के पूर्व इन ग्रामीण इलाकों में मतदान करने को लेकर प्रशासन की ओर से जो भी कवायद की गई थी उसका कवरेज इन ग्रामीण पत्रकारों ने करके खबरो का प्रकाशन करवाया था । चुनाव के पूर्व राजनीतिक पार्टीयो की गतिविधि तथा उनके द्वारा शासकीय भवनों पर ओर निजी मकानों पर बिना सहमति से लगे झंडे बैनर पोस्टर पर भी खबर छापकर प्रशासन का ध्यान आकर्षित करवाया था । तो क्या ग्रामीण पत्रकारो ने प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग नही किया था ? तो फ़िर साहब इन ग्रामीण पत्रकारों की उपेक्षा क्यो हुई ? ग्रामीण पत्रकारों के साथ हुई इस तरह उपेक्षा पर ग्रामीण पत्रकारों ने इसका विरोध भी पत्रकार संगठन के व्हाट्सअप ग्रुपो में किये है।
आज जिले के भीष्म पितामह स्व.आदरणीय दादा यशवंत घोड़ावत जी की याद आती है अगर वो होते तो हम ग्रामीण पत्रकारों की इस तरह की उपेक्षा नही होने देते और इस तरह की उपेक्षा होती तो उसका जवाब वो अपनी तीखी लेखनी से जरूर देते ?

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