सलमान शेख, पेटलावद
विभिन्न रूपो में सामने आने वाली भूख हमेशा से लोगो के आचार-विचार, व्यवहार और किरदार बदलने का कारनामा करती आई है। 28 नवंबर को संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में यही भूख एक बार फिर से निष्ठाओं को छिन्न-भिन्न करते हुए तमाम नेताओ कार्यकर्ताओ के ईमानो को दांव पर लगाने का कारण बनी, जिसका परिणाम जनता के सामने प्रत्यक्ष रूप से तो आगामी 11 दिसंबर को मतगणना के बाद ही आयेगा, लेकिन नेताओ और उनसे जुड़े कार्यकर्ताओ सहित राजनीति में रूचि रखने वाले नागरिकों को भली-भांती मालूम है। यहां प्रसंग में है विधानसभा चुनाव जिसके अंतर्गत गत 28 नवंबर को विधानसभा क्षैत्र पेटलावद के लिए मतदान का कार्य संपन्न हुआ। तब से अब तक खासी गहमा-गहमी बनी हुई है। परिणाम को लेकर अपनी जीत की दावेदारियां करने के बाद अपनी नाकामी को उबाल पर आते महसूस कर रही है, जिससे निपटने के बाद निपटाने वाले फाॅर्मूले पर अमल की आशंकाओ को हवा दे दिया है। टिकटों को पाने और कटवाने को लेकर मैदान में क्रियाशील रहे नेताओं व कार्यकर्ताओ सेलेकर पर्दानशीन खिलाड़ियो तक की कोशिशें जहां पहले से दलों, वरिष्ठ नेताओ और प्रत्याशियों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई थी वहीं सबसे बड़ी मुसीबत उन नेताओं व कार्यकर्ताओ की भूमिका को लेकर है जो अरसे से अपने-अपने नेताओं की शान में पलक-पांवड़े बिछाते हुए सर्वस्व समर्पण की मुद्रा में बने रहे थे तथा मतदान के दौरान अपने असंतुष्ट नेताओ के ईशारों पर जिन्होनें आक्रामक तेवर अपना लिए थे।
उल्लेखनीय है कि चंद दिनो पहले तक टिकट को लेकर जायज व स्वाभाविक तौर पर मच रहे घमासान के दौरान मनमुटावों ने जहां नेताओं से लेकर उनके पिछलग्गू कार्यकर्ताओ के ईमानों को प्रभावित करने वाली पूरी परिस्थितियां वर्ष 2008 से अब तक हुए चुनावो के दौरान उत्पन्न परिस्थितियों ने बनाए रखी है। वहीं दूसरी ओर कमल पंजा-हाथी जैसे चिर-परिचित प्रतीकों को अपना ईष्ट मानने वालो के घालमेल की आशंकाएं पहले से तय था, हुआ भी वही। जिनके प्रमाण इन दिनो जगह-जगह जुट रहे गुटों और गुप्त वार्तालापो के रूप में भी मिल रहे है।
फूल छांप ईकाई‘ पंजा छाप भाजपाई…?
चुनावी दौर में अपनी पहचान को रहस्यमयी तरीके से बदलते हुए फूल छाप इंकाई और पंजा छाप भाजपाई की भूमिका निभाने के लिए चर्चित हो चुके तमाम चेहरों ने एक बार फिर से अपी कारगुजारियों को अंजाम दिया तथा यही वो जमात है जो हमेशा से दोनो प्रमुख दलों के लिए मुसीबत का पर्याय बनी हुई है। इन दिनो अब जबकि मतदान संपन्न हो चुका है और मतगणना की तारीख नजदीक है पर फिर भी घमासान थमने के बाद शंति के प्याले में पलते हुए तूफान जैसे हालात समूचे क्षैत्र में बने हुए है। भितरघातियों द्वारा की गई कोशिशों को लेकर कयासों और अटकलों का दौर जोरो पर बना हुआ है। सुबह-सवेरें घरो से निकलने और आधी रात तक यत्र-तत्र नजर आने वाले उक्त श्रेणी के नेता व कार्यकर्ता हर दिन एक नए समीकरण को जन्म देने व पालने-पोसने के मंसूबो में सहयोगियों के साथ तप्पर नजर आ रहे है।
कांग्रेसी नेताओ की सरगोशियों व कानाफूसियों में शरीक भाजपाई तथा भाजपाईयो के चूल्हों की राख कुरदते कांग्रेसियों के दीदार चुनावी दिनो में वीरानो से लेकर खुले मैदानो तक में आसानी से किए जा सकते थे और उनकी तमन्ना के अनुसार वो इस बात का संकेत भी दे रहे है कि मतगणना वाले दिन ऊंट किस करवट बैठ सकता है। ऐसे में छुटपुट दलों के टिकट के आधार पर जातिगत समीकरणों के साथ मैदान में उतरे या थोपे गए उम्मीदवारों पर भी मतदाताओ की निगरानी जरूरी है जिनकी उम्मीदवारी अपनी जीत की बुनियाद पर नहीं बल्कि निहित स्वार्थो की प्रतिपूर्ति के लिए औरों की हार पर टिकी हुई है, ताकि भविष्य में होने वाले किसी भी चुनाव में इस तरक के प्रत्याशियों पर बेशकीमती मतों को कुर्बान कर अपने मत को अपनी बड़ी भूल न बनाये।
दोनो प्रमुख दल सबसे ज्यादा प्रभावितः
यहां खास बात यह है कि ऊपरी या अंदरूनी तौर पर यह स्थिति भाजपा और कांग्रेस दोनो प्रमुख दलों में मौजूद हैं जो पेटलावद विधानसभा क्षैत्र में अत्यधिक प्रभावी बनी हुई है तथा डेमेज कंट्रोल के प्रभावी प्रयासों के अभाव में पांचवी बार सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने का ख्वाब देख रही भाजपा तथा डेढ. दशक बाद सत्ता में वापसी की बाट जोह रही कांग्रेस दोनो के अरमानों पर पाला पटक सकती है। विधानसभा जैसे बड़े चुनाव में क्षैत्रीय आधार और स्थानीय मुद्दो पर निर्भर मतदाताओं की स्थिति भले की तटस्थ या मामूली सी ऊंची-नीची बनी रही हो, लेकिन विभिन्न पार्टियों के नेता व कार्यकर्ता पार्टीगत मान्यताओं और अपने सियासी उसूलों को ऊपरी या अंदरूनी तौर पर बलाए-ताक रखते हुए जातिगत तथा वैयक्तिक समीकरणों के अनुसार आगामी परिणाम दीगर दलों या गुटों द्वारा उतारे जाने वाले प्रत्याशियों को तरजीह व इम्दाद देते हुए दलीय प्रत्याशियों की मुसीबत साबित हो सकते है।
दिन उगने से रात तक जारी है चकल्लसः
चुनावी माहौल से जुड़ी तमाम तरह की चर्चाओ में राजनैतिक कार्यकर्ताओं और समर्थको के साथ-साथ वह आम नागरिक समुदायक भी बराबरी के साथ शरीक बना हुआ है जो मतदान से अब तक अपनी मतदान संबंधी चुप्पी तोड़ने को तैयार नही है। अब जबकि मतगणना की तिथि नजदीक आती जा रही है तथा जनमत का वोटिंग मशीनों से जल्द बाहर निकलना तय हो गया है, आम मतदाता दबी जुबान से अपने मत का इजहार जरूर करते दिखाई दे रहे है, लेकिन उनके रूझानों में बदलाव और असंतुलन की स्थिति अभी भी बनी हुई है।
पेटलावद और रामा के प्रत्येक गांव से लेकर शहरी इलाकों तक में ऐसे मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है जो हवा के रूख के साथ-साथ अपना विचार बदल रहे है तथा जिधर दम-उधर हम वाली पंक्ति को चरितार्थ कर रहे है। कुल मिलकार 28 नवंबर को संपन्न हुए मतदान को लेकर चुनावी चकल्लस का माहौल दिन निकलने से लेकर रात ढलने तक जनमानस पर हावी नजर आ रहा है, जो 11 दिसंबर को ईवीएम से जनादेश बाहर आने के बाद ही थम पायेगा।
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