पेटलावद ब्लास्ट की तीसरी बरसी : ब्लास्ट के जख्म से आज भी सिहर उठते पीडि़त

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हरीश राठौड़, पेटलावद
पेटलावद ब्लास्ट के तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी कुछ जख्म ऐसे है जो आज भी हरे है, जिन्हें भूल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, जिसमें कई परिवारों के चिराग उजाड़े थे जिसमें शासन प्रशासन ने कुछ न कुछ देने का वादा किया था, किंतु वह वादा आज तक पूरा नहीं हो पाया है। ब्लास्ट की तीसरी बरसी पर भी पीडि़त लोग न्याय की उम्मीद में दर दर भटक रहे है।
मुख्यमंत्री तक ब्लास्ट को भूल गए 7 सितंबर को मुख्यमंत्री ने शासकीय मंच से कांग्रेस को खूब कोसा किंतु एक शब्द भी वह ब्लास्ट पीडि़तों के लिए नहीं कह सके। आखिर तीन वर्ष में ही प्रदेश की सबसे बड़ी दुर्घटना को मुख्यमंत्री भूल गए। इधर जिन माताओं ने अपने चिराग खोए, जिनका सुहाग उजड़ा और जिनके सिर से पिता का साया उठ गया उनसे पूछा जाए की यह तीन वर्ष यानी 1000 दिन किस प्रकार उन्होंने बिताए किस तकलीफ और किस परेशानी का सामना कर प्रशासन शासन के आगे आशा की किरण जाएंगे बैठे रहे, किंतु उन्हें कोई सहायता तक नहीं मिल पाई। यहां तक की मुख्यमंत्री की स्मारक बनाने की घोषणा भी अधर में ही पड़ी हुई है। मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि ब्लास्ट पीडि़तों की याद में स्मारक बनाया जाएगा, जिसे नगर परिषद ने अपनी बैठक के प्रस्ताव में भी लिया था किंतु आज तक उस दिशा में कोई कार्य नहीं हुआ। इसके साथ ही ब्लास्ट पीडि़त कई लोगों को आज भी नौकरी का इंतजार है किंतु उनका इंतजार आज तक खत्म नहीं हो पा रहा है।
इसी क्रम में रोहित गुप्ता के भाई मनीष गुप्ता को नौकरी देने का वादा किया गया था किंतु वह वादा आज तक पुरा नहीं हो पाया। मनीष गुप्ता दर दर की ठोंकरे खाने को मजबूर हैं उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है। वहीं मनीष गुप्ता का कहना है कि शिवराज सरकार ने भेदभाव किया है। मंदसौर में मृतकों के परिजनों को एक-एक करोड़ रूपए और पेटलावद में मृतकों के परिजनों को मात्र 5-5 लाख रूपए ही दिए।

कई जख्म अभी भी नहीं भरे-
ब्लास्ट के कई जख्म ऐसे है जो अभी भी नहीं भरे है जिन्हें भरने के लिए प्रशासन ने अपने स्तर से तो ग्रामीणों और नागरिकों ने अपने स्तर से प्रयास भी किए है किंतु वे आज भी दिखाई दे रहे है जिनमें कुछ घायल ऐसे है जो कि न चाहते हुए भी ब्लास्ट के जख्म के रूप में दिखाई देते है जिनमें झेंंसर का युवक सोहन खराड़ी जो की अपने भाई को रामदेवरा से लौटने पर लेने आया था, किंतु ब्लास्ट के धमाके में उसके आंखों की रोशनी चली गई थी, उसकी आंखों में बारूद घुस गया। सोहन ने प्रशासन से प्राप्त मदद और अपने स्वयं के खर्च पर भी बहुत इलाज करवाया किंतु आज भी सोहन धुंधला ही देख पाता है जिस कारण उसे जो भी देखता है उसे ब्लास्ट की याद आ जाती है. इसी प्रकार मानसिंह भाबर के पेट में घाव हुए थे और उसके पेट में से लगभग 1 किलो मटेरियल निकला था जिसके घाव आज भी उसके शरीर पर है। वह बताता है की जब भी बादल होते है तो पूरा शरीर दर्द करता है और उस असहनीय दर्द से मान सिंह परेशान हो उठता है, जिसका इलाज न हो पा रहा है न पैसा कर सकता है।

रामदेवरा से पैदल आ रहा था
वहीं ग्राम झोसर के 15 वर्षीय युवक मानसिंग भाबर जो कि रामदेवरा से पैदल आ रहा था। वह सेठिया रेस्टोरेंट पर चाय पीने के लिए रुका था। वहीं ब्लास्ट के दरमियान उसकी मृत्यु हो गई। इस दरमियान शासन प्रशासन ने मानसिंग का मां से वादा किया था कि तुम्हें या तुम्हारे दूसरे पुत्र को नौकरी देंगे किंतु आज तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। मानसिंग का भाई नउकरी का आवेदन ले कर हजारों ऑफिस के चक्कर काट चुका है किंतु कोई हल नहीं निकल पाया है।

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