क्रांतिकारी संत के समाधि मरण महोत्सव पर दी श्रद्धांजलि

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राज सरतलिया, पारा
शनिवार गुरूमन्दिर में मुनि तरुणसागरजी के समाधि मरण महोत्सव पर श्रद्धांजलि सभा ने सर्वप्रथम नवकार मंत्र का सामूहिक जाप किया। मप्र के दमोह जिले में जन्मे देश और दुनिया में कड़वे प्रवचन के लिये प्रसिद्ध राष्ट्रसंत मुनि 1008 तरुण सागरजी पिछले 35 वर्षों से संयम धर्म का पालन कर रहे थे। श्रीसंघ अध्यक्ष प्रकाश तलेसरा ने कहा कि मात्र 13 वर्ष की उम्र में राजस्थान के बागीदोरा में दीक्षा ली। इस वर्ष दिल्ली चातुर्मास में पिछले 20 दिनों से गले की गंभीर बीमारी की वजह से उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आई। अपना अंतिम समय जान मुनिश्री ने अस्पताल में चल रहे सारे इलाज बंद कर अपने गुरु आचार्य पुष्प दंत सागरजी से संलेखना, संथारा, अंतिम समाधि की आज्ञा ली। उनके गुरु ने अपने दो शिष्यो मुनिश्री सौरभ सागरजी व अरुण सागरजी को भेजकर संलेखना की क्रिया करवाई। 30 अगस्त को अन्न, जल का त्याग कर 1 सितम्बर को मुनिश्री का संथारा, संलेखना फला ओर नवकार मंत्र की साधना करते करते 52 वर्ष की आयु में समकित भाव से समाधि मरण हुआ। श्रीसंघ के महामंत्री प्रकाश छाजेड़ ने बताया कि दिल्ली के लाल किला, लोकसभा, भोपाल विधानसभा, हरियाणा विधानसभा सीमा पर देश की रक्षा करने वाले सैनिको को अपने देश के प्रति प्रवचनों में जीवन के लिए जीवन के परिवर्तन की प्रेरणा देते रहे। संघ के परामर्शदाता सुरेश जी कोठारी ने कहा कि उनके द्वारा रचित कड़वे प्रवचन पुस्तक की 10 लाख प्रतिया प्रकाशित हुइ। मुनिश्री दिगम्बर जैन समाज ही नहीं बल्कि राष्ट्र के संत थे। परिषद अध्यक्ष दिलीप कोठारी ने कहा कि हर धर्म, जाति के लोग इनकी बिदाई से दुखी थे ऐसे विरले संत का जाना दु:खद है। तरुण परिषद के पलाश कोठारी ने कहा इस योग की भूमि में कैसा वियोग है ऐसे महान संत का जाना जैन समाज नही बल्कि देश के लिए अपूर्ण क्षति है। अहिंसा महाकुंभ के वे धर्म योद्धा थे। श्री संघ के उपस्थित महानुभावों ने एवं परिषद परिवार ने गुणानुवाद के पश्चात 13 नवकार का काऊसग्ग किया।

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