मजदूर कर गया परिवार सिलिकोसिस की चपेट में, तीन माह में दो मौत

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हरीश राठौड़, पेटलावद

सिलिकोसिस से जूझता हीरालाल

अपने परिवार के भरण पोषण की चिंता लिए मजदूरी करने के लिए गए एक परिवार सदस्यों की जान पर बन आई है। पत्थर की फैक्टरी में काम करते हुए इन गरीब मजदूरों को कतई आभास नहीं होगा कि वे अपने परिवार की पेट भरने की चिंता में खुद को मौत के हवाले कर रहे हैं और अंजाम भी यही हुआ कि सिलोकिसिस की चपेट में आने से एक दंपति को मौत ने अपने आगोश में ले लिया जबकि परिवार का एक अन्य सदस्य मौत और जिंदगी के बीच झूल रहा है।
मामला पेटलावद तहसील मुख्यालय से 18 किमी दूर ग्राम मोर का है यहां का एक अंबाराम पिता जीवन मोरी अपनी पत्नी बंसतीबाई के साथ काम के सिलसिले में गुजरात के गोधरा शहर के गुजरात मिनरल्स में कार्य के लिये गया। माता-पिता अपने बच्चों के साथ यहां पत्थरों को तोडऩे के कार्य में लगा रहा यही नही उसने अपने काका हीरालाल मोरी को भी इसी आस से बुलवा लिया कि उनकी मेहनत का फल अपने परिजनो की मदद में सहभागी होगा। लेकिन मामला पूरा उलट गयाए अंबाराम और बंसतीबाई चार.पांच साल काम करते हुए धूल में मौजूद सिलिका के कारण अपने फेफडो को खराब करते हुए सिलोकिसिस के चपेट में आ गये। जब शरीर जबाब देने लगा तो वे भागकर घर लौट आये।
रोजगार का अभाव ले रहा जान
हर हाथ को स्थानीय स्तर पर काम मिले इसके लिये सरकार बडे बडे दावे और वायदे करती है। लाखों-करोड़ों के कार्य चलने के बाद भी पलायन का दंश झेल रहे ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर कोई सुध लेने वाला नहीं है। ग्रामो में रोजगार का अभाव जरूरतमंदों को मजबूरी में अन्य प्रांतो में धकेल रहा है। इसी के चलते ग्राम मोर के मोरी परिवार के दो सदस्य तो मौत के आगोश में चले गये तो एक अन्य सदस्य जीवन और मौत से संघर्ष करता हुआ नजर आ रहा है। उसके बाद भी इनकी सुध लेने वाला कोई भी नही है। बताया जाता है कि कर्मकार पंजीयन में अंतिम संस्कार सहायता 5 हजार रूपये तथा 2 लाख की बीमा राशि मिलने का प्रावधान भी है। लेकिन अंतिम संस्कार के लिए भी सहायता नही दी गई।
सहायता तो दूर सुध लेने वाला कोई नहीं
पीडित परिजनो से चर्चा में यह बात सामने आई कि स्थानीय स्तर पर काम का अभाव उन्हे गांव की मिट्टी को छोडऩे पर मजबूर करती है। मृतक का पुत्र पीरू परिवार पर हुए इस वज्रपात से संभलते हुए बताता है कि पत्थरो की कंटिग करते हुए सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता है। इसीके चलते उसके माता पिता इसकी चपेट में आकर बिमार हो गये। फेफडे का रोग होने के कारण उनका इलाज भी करवाया लेकिन डाक्टरो ने भी जवाब दे दिया। करीब 3 माह पूर्व उसकी मां बंसतीबाई का निधन हुआ और 17 अगस्त को उसके पिता का निधन हो चुका है। बताया जाता है कि कुशल श्रमिक में पंजीयन के बाद सहायता तो दूर किसी ने उनकी सुध नहीं ली है। मृतक के काका हीरालाल मोरी भी मौत से संघर्ष करता हुआ दिखाई दे रहा है। इनके साथ परिवार के अन्य सदस्य भी इन फैक्टरी में काम कर चुके है। इनके स्वास्थ्य की जांच की भी जरूरत है।
जिम्मेदार बोल-
मृतक परिवार को सहायता न मिलने की बात का पता चला है। वे इस मामले को दिखवा रहे है। सोमवार को सहायता राशि भी भिजवा दी जाएगी। -महेंद्र घनघोरिया, सीईओ पेटलावद

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