गांव-गांव, फलिये-फलिये में गूंज रहा ‘जय आदिवासी का नारा’

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लेखक सुमित गाडरिया, खंडाला गमीर, उदयगढ (कनास)।
9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस को लेकर आदिवासी युवाओं में उत्साह उफान पर है। हर ओर जय आदिवासी का नारा गूंज रहा है। गांव-गांव फलिए-फलिए में आदिवासी वाघ यंत्रों को तैयार किया जा रहा है। पारंपरिक हथियारों तीर-कमान, फालियों को धार दी जा रही है और पारंपरिक वेशभूषा को नयापन दिया जा रहा है। इस वक्त प्रत्येक आदिवासी 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस को मनाने के लिए आतुर व लालायित हैं। प्रत्येक आदिवासी मे यह ललक विघमान है कि वह आदिवासी दिवस को धूमधाम अंदाज में मनाये । मौजूदा समय विधानसभा चुनाव का मौसम हैए तो दोनो ही मुख्य राजनीतिक पार्टियां इस अवसर को भुनाना चाहती है। दोनों ही राजनीतिक दल आदिवासियों में अपनी-अपनी उपस्थिति दमदारी से दर्ज करवाना चाहते हैं। लेकिन पिछले 2-3 वर्षों में आदिवासी युवाओं का मूड व मिजाज बदला है। अब आदिवासी युवा किसी राजनीतिक दल का झंडा उठाना पसंद करने की बजाय अपने अधिकारों का मुद्दा उठा रहा है। आदिवासी लोग पढ़-लिख कर संविधान में उल्लेखित अधिकारों को समझने लगे हैं। व भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को जमीन पर हकीकत में अमल करवाने के लिए संघर्षरत है। जय आदिवासी युवा संगठन (जयस) से जुड़े सामाजिक चिंतकों ने आदिवासियों मे अपने हक व अधिकारों को लेकर चेतना पैदा की। आज का आदिवासी युवा अपने अधिकारों को समझने मे समर्थ बन रहा है। और उन तमाम अधिकारों को सच में साकार करवाने के लिए संघर्षशील है। आरक्षण को लेकर भारतीय समुदाय में साढ़े 300 तरह की बहस जारी है। सैकड़ों संगोष्ठियां ेेआयोजित हो रही है। हजारों तर्क और वितर्क दिए जा रहे हैं। अरे साहब आरक्षण दिया ही कितना है जो आप छिनने की बात करते हो। अभी तो आरक्षण पाने के असल हकदार, जो गांवों में बसे आदिवासी है, उन्हें आरक्षण की परिभाषा नहीं मालूम है और आप आरक्षण खत्म करने के दमगजे भरते हो। तमाम सरकारे आदिवासियों की सामाजिक शक्लो-सूरत बदलने के हजारों दावे करती है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि आजादी के 70 वर्ष बाद भी आदिवासी की सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक हैसियत जस की तस है। आदिवासी आज भी उपेक्षित है। यह दूसरी बात है कि चुनावी साल होने के चलते, आदिवासी कल्याण दिवस मनाया जा रहा है। आदिवासियों को आरक्षण प्राप्त होने का आधार यह है कि सामाजिक व आर्थिक रूप आदिवासी समाज पिछड़ा हुआ है। लेकिन जो मुख्य आधार है वह आदिवासियों की अपनी संस्कृति है, जो कि विश्वभर में अनोखी संस्कृति है। जो गांव में बसे आदिवासी है, जो पगड़ी-धोती, लंगोटी पहनते हैं। जो राणीकाजल और बाबादेव को पूजते है। वह आदिवासी संस्कृति के सच्चे संरक्षक हैं। अगर हमारी संस्कृति खत्म हो जाएगी, तो हमारा आरक्षण भी समाप्त हो जाएगा। धर्मवालों ने आदिवासियों से कहा कि तुम्हारी प्रीति कुरीति है। इसे छोड़ दो यह क्यों नहीं बताया कि रीति रिवाज छोडऩे से आरक्षण खत्म होगा। सभी आदिवासी जनो से अपील करता हूं, अपनी जिंदगी को आदिवासी संस्कृति के अनुसार आकार दे व आदिवासी संस्कृति को जीवंत बनाए रखें। जय आदिवासी विश्व आदिवासी दिवस की हृदय से हार्दिक शुभकामनाएं।

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