शिक्षकों की लापरवाही से ग्रामीण अंचल की स्कूलों में लग रहे ताले, विद्यार्थी स्कूल खुलने का दिनभर करते हैं इंतजार

0

हरीश राठौड़, पेटलावद
क्षेत्र में स्कूली शिक्षा भगवान भरोसे है स्कूल खुलने के दस दिन बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में पढाने के लिए शिक्षक नहीं पहुंच रहे है। जिसे लेकर प्रशासन में बैठे अफसर भी ध्यान नहीं दे रहे है उन्हें छोटे छोटे बच्चों के भविष्य की कोइ्र्र चिंता नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र में स्कूलों के ताले ही नहीं खुल रहे है। जिस कारण से ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। दस दिनों के बाद भी ताले नहीं खुलना और प्रशासन में बैठे अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करना पूरी तालाब में भांग घुली होने की ओर ईशारा करती है। वरिष्ठ अधिकारियों की सांठगांठ से ही शिक्षक स्कूल नहीं जा रहे है और मोटी तनख्वाह का लाभ उठा रहे है।
क्षेत्र की एक या दो स्कूल नहीं सैकड़ों स्कूलों के यहीं हाल है शिक्षक पहुंचते नहीं बच्चें खेला करते है पढ़ाई के नाम पर कुछ नहीं होता है महीने में एक या दो बार शिक्षक स्कूल में पहुंचकर पूरे महीने की खानापूर्ति कर के आते है। जिस पर किसी की निगाह नहीं जाती है। बच्चें पढ़ाई नहीं कर पाते है और उन्हें पास कर दिया जाता है। जिसके लिए संपूर्ण रूप से शिक्षक ही जवाबदार है। आखिर संकुल स्तर से लेकर जिला स्तर तक किस प्रकार निरीक्षण किया जा रहा है। क्या कोई बीआरसी, बीईओ या जिला अधिकारी ने क्षेत्र में जा कर एक बार भी देखा है कि स्कूल प्रारंभ होने के बाद क्षेत्र में कितनी स्कूले खुल रही है। यहां तक की स्कूलों की स्थिति यह है कि बोर्ड भी पुराने लगे हुए है। सीईओ के रूप में अनुराग चैधरी का नाम लिखा हुआ है जबकी उनको इस जिले से गए लगभग एक वर्ष से अधिक समय हो गया किंतु आज तक उस बोर्ड पर भी सफाई नहीं हो पाई। जिससे हम अंदाजा लगा सकते है कि किस प्रकार शिक्षा व्यवस्था चल रही है। शासकीय स्कूलों के इसी रवैये के चलते क्षेत्र में निजी स्कूलों का बोलबाला हो रहा है। जिस कारण से हर कोई अपने बच्चों को शासकीय स्कूल के बजाए निजी स्कूल में पढ़ाना चाहता है। इस पूरे खेल में निजी स्कूलों की चांदी हो रही है और सरकार का शिक्षा के नाम पर खर्च किया जा रहा पैसा व्यर्थ जा रहा है। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता चेनालाल गेहलोत का कहना है कि इस व्यवस्था को सुधारना होगा तभी शासकीय स्कूलों की अहमियत बढ़ेगी अन्यथा इस प्रकार ही बच्चों का भविष्य अंधकार में रहेगा। हमारी मांग है कि जो शिक्षक नियमित स्कूल नहीं जा रहे है उन पर कार्रवाई की जाए। जिसके लिए अधिकारी सतत क्षेत्र में निरीक्षण करें ताकी वास्तविक स्थिति का पता लगाया जा सके। बरबेट संकुल के कुवांझर, रूपापाडा, कालीघाटी,भाबर फलिया आदि स्कूलों में ताले ही नहीं खुले और बच्चे मवेशी चराते हुए और खेलते हुए देखे गए जब उनसे पूछा गया की आप स्कूल क्यों नहीं जाते तो उनका कहना है कि स्कूल ही नहीं खुलती है तो हम कैसे स्कूल जाए। वहीं स्कूल नहीं लगने से मध्यान्ह भोजन का निवाला जो बच्चों के लिए होता है वह भी समूह के द्वारा हजम किया जा रहा है। बच्चों की उपस्थिति पूरे माह पूरी पूरी भेजी जाती है और पैसा निकाल लिया जाता है। इस प्रकार शिक्षकों की लापरवाही से बच्चों का नुकसान और उनके हक का कोई ओर खा रहा है। इस पूरी व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए ग्रामीणों ने मांग की है कि स्कूलों की दशा सुधारने के लिए शिक्षकों को नियमिति स्कूल आना होगा अन्यथा बच्चों का भविष्य अंधकार में डूबता जाएगा। यदि शिक्षा विभाग इस ओर ध्यान नहीं देता है तो ग्राम स्तर पर भी इस का विरोध प्रारंभ किया जाएगा। विडंबना यह है कि स्कूल खुलने के दस दिनों तक अधिकारियों की नींद नहीं खुल रही है। क्षेत्र में कौन से स्कूल संचालित हो रहे है और कौन से नहीं उसकी जानकारी उन्हें नहीं है। केवल कागजों पर ही सभी स्कूलों का संचालन चल रहा है। जमीनी हकीकत जानने की किसी को फुर्सत नहीं है। केवल मिटिंग करना और कागजों पर प्रगती रिपोर्ट भेजने में ही शिक्षा विभाग लगा हुआ है किंतु जमीन हकीकत की ओर कोई ध्यान देने को तैयार नहीं है।
अधिकारी लापरवाह-
वहीं इस संबंध में बीईओ संजय हुक्कु से चर्चा की गई तो उनका कहना है कि मै मिटिंग में हूॅ शाम को आ कर देखता हूं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.