प्रशासन स्तर के राष्ट्रीय पक्षी मोर को संरक्षण के प्रयास विफल, क्षेत्र में तेजी से घट रही मोरों की संख्या

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पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
क्षेत्र में राष्ट्रीय पक्षी मोर की बाहुल्यता के लिए प्रदेश में ही नहीं वरन देश में जाना पहचाना जाता है। कुछ दशक पूर्व इस क्षेत्र में विचरण करने वाले मोरों की संख्या हजारों में थी लेकिन अब लगातार कम होती जा रही है। राष्ट्रीय पक्षी मोर के संरक्षण व संवद्र्धन के प्रति प्रशासनिक उदासीनता से पक्षी प्रेमी रहवासियों में काफी निराशा है। मोर संवेदनशील प्राणी प्रतिवर्ष गर्मी के मौसम में पीने के पानी के लिए एवं सुरक्षित ठिकाने के लिए भटकता रहता है एवं असमय का काल के गाल में समां रहा है। वही सर्दी और बरसात का मौसम भी इसके लिए कई प्रकार की कठिनाइयों से राष्ट्रीय पक्षी जूझता है। पूर्व में प्रशासन की ओर से मोरों के संरक्षण एवं सवद्र्धन के लिए प्रयास भी किए गए थे, लेकिन समय के साथ वे प्रयास भी थम गए। रेस्ट हाउस में बना पिंजरा एवं बीमार मोरों के इलाज के लिए बनाया गय, जो अब अतीत की बात बनकर रह गया है। प्रशासन द्वारा मोरों के संरक्षण के लिए समय समय पर प्रशासनिक अधिकारियों, वन विभाग के अधिकारियों एवं क्षेत्र के पक्षी प्रेमियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ बैठक आयोजित कर प्रशासन कुछ योजनाएं बनाता भी है तो वह सिर्फ कागजों तक सीमित बनकर बनाता भी है तो वह सिर्फ कागजों तक सीमित बनकर रह जाती है। यथार्थ में धरातल पर क्रियान्वित नहीं हुआ और दाना पानी के अभाव में मोरों की असमय मौत, तो कीटनाशक में छिडक़ाव की वजह से मोरों की मौत हो रही है। वनों की कमी एवं घनी झाडियों के अभाव के कारण इस राष्ट्रीय पक्षी के प्रसव में आने वाली समस्याए हो प्रशासनिक स्तर पर किए गए प्रयास नाकाफी ही रहते है। मयूर मंच सचिव जितेंद्र कटकानी कहते हैं कि पेटलावद तहसील में जहां एक कार्य योजना बनाकर मोरों के संरक्षण के लिए प्रशासन को प्रयास करने की आवश्यकता है। वहीं पंपावती नदी के किनारे जहां बहुतायत में मोर विचरण करते है मोरों के दाने पानी के लिए एक चबूतरे एवं मयूर पार्क का निर्माण अत्यंत आवश्यक है। नगर के कई पक्षी प्रेमी मोरों की सुरक्षा के लिए एवं उनके दाना पानी के लिए हमेशा प्रयास करते रहते है। वर्तमान समय में भीषण गर्मी को देखते हुए प्रशासन को इस ओर ध्यान देकर इस राष्ट्रीय पक्षी की सुरक्षा के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। नागरिकों की जागरूकता के साथ प्रशासन का मैदानी स्तर पर क्रियाशील होना ही इस क्षेत्र में मोरों की सुरक्षा कर सकता है। अन्यथा आने वाले समय में इस क्षेत्र में राष्ट्रीय पक्षी की संख्या अत्यंत सीमित होकर हजारों हजारों से सिमटकर सैकड़ों में रह जाएगी।

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