गुरुओं ने नहीं,  श्रावक ने बांटा गुरुओं को : हितेश चंद्र विजय ने  समाज को दी नई प्रेरणा व ऊर्जा

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अलीराजपुर लाइव के लीये जोबट से सुनील खेड़े की रिपोर्ट
 जोबट में राष्ट्रीय संत जैन आचार्य श्री जयंतसेन सूरीश्वरजी प्रथम पुण्यतिथि पर जैन समाज द्वारा राष्ट्रीय संत के श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें नगर में गच्छादिपती आचार्य ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी महाराज साहब के आज्ञानुवर्ती मालव  केसरी श्री हितेश चंद्र के  विजय जी मुनि श्री दिव्य चंद्र विजयजी मुनि जीतचंद्र विजय जी का आगमन हुआ सुबह 8 बजे नगर में प्रवेश करता जैन आचार्य की अगवानी करें। नगर के प्रमुख मार्गो से होता हुआ। मंदिर तक जुलूस निकाला गया जहां पर नगर के प्रभुत्व समाज जनों के द्वारा जैन आचार्य जयंतसेन सूरीश्वरजी को श्रद्धांजलि दी गई।नगर के गायत्री मंदिर के संस्थापक डॉक्टर शिव नारायण सक्सेना द्वारा अपनी पुरानी स्मृति ताजा करते हुए जैन आचार्य के साथ बिताए हुए लम्हों को याद करते हुए कहां,की गायत्री स्कूल संस्था द्वारा छात्रों के बनाए हुए कमरे का नाम जैन आचार्य के नाम पर रखना चाहते हैं ताकि आने वाली पीढ़ी जान सकेगी। इस संस्था के निर्माण के समय ऐसे देवत्व वाले व्यक्ति का आगमन हमारी संस्था में हुआ था । वही रामचंद्र उपाध्याय ने अपने व गुरुदेव के साथ पुरानी मुलाकात की स्मृति को याद करते हुए भजन स्तुति की गई है समाज के वरिष्ठ कैलाश जी डूंगरवाल मांगीलाल जी पवार अशोकजी पवार ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

*सच्चा साधु बांटता नही जोडता है*

 समाज को मालवा केसरी मुनिराज हितेश  जी महाराज साहब ने आज समाज पर हो रही विसंगतियों पर कुठाराघात किया और कहां की आज के दौर में  श्रावक ही समाज को बांटते हैं । साधु तो जोड़ने का काम करता है तोडने का काम नही करता है और सभी साधु एक माला के मोती के समान है जो आपस में जुड़ा हुआ है तो माला है बिखर गए तो मोती है हम आपस में सभी साधु एक माला में पर श्रावकों का निजी अहंकार पद प्रतिष्ठा के लालच में हम लोगों को अलग अलग संप्रदाय में अलग-अलग बांट दिया है, जिसके कारण आज समाज में विकृति एवं वैमनस्यता बढ़ती ही जा रही है।आपसी एकता भाईचारा पूरी तरह खत्म होने की कगार में आ रहा है सही मायने में सच्चा श्रावक वह है कि जो सभी आचार्यों का सम्मान व आदर करें अगर कोई आचार्य बांटने की बात करता है तो वह आचार्य सच्चा आचार्य नहीं होता और नहीं समाज के लिए हितेश  होगा उक्त विचारों से पूरा पंडाल धर्ममय हो गया  उक्त कार्यक्रम में समाज जन उपस्थित थे।

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