होली का आध्यात्मिक रंग बिखरा

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झकनावदा से जितेंद्र राठौड़ की रिपोर्ट :-

महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी कीर्तिलताजी ठाणा4 व् साध्वी प्रबलयशाजी ठाणा 3 के पावन सानिध्य में होली पावस का कार्यक्रम आयोजित किया हुआ। जिसमे आसपास के क्षेत्रो के श्रावको की उपस्थिति रही।
प्रथम चरण में साध्वी श्री कीर्तिलताजी ने हाजरी का वाचन करते हुए तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादा को लक्षमण रेखा बताया। आपने होली पर अपने प्रेरणादायी प्रवचन में फ़रमाया की होली रंगो का त्यौहार है। भारतीय संस्कृति में होली अनोखा और निराला पर्व है। इस पर्व में इतनी मिठास होती है की कोई गाली भी देता है उसे वह गीत बना देता है। इसलिए इस पर्व को प्रेम का पर्व माना गया है। जहाँ प्रेम है वहीँ आनन्द है और जहां आनन्द है व्ही शक्ति है।
साध्वी श्री प्रबलयशाजी ने अपने ओजस्वी स्वरों में कहा यह पर्व बसन्त के आगमन का पर्व है। खुशियों के संचार का पर्व है। हमारा सम्पूर्ण जीवन रंगीन है। रंगो के माध्यम से चिकित्सा भी होती है। आपने कहा सृष्टी में दो ही रंग है माया और प्रभु भक्ति का रंग। संसारी प्राणी इन दो रंगो में रंग जाते है। कोई माया के रंग में तो कोई प्रभु के रंग में।साध्वी शांतिलताजी साध्वी पूणमप्रभाजी साध्वी सौरभयशाजी साध्वी श्रेष्ठप्रभाजी एवम् साध्वी सुयशप्रभाजी ने गीत के माध्यम से होली के महत्व को प्रस्तुत किया। साध्वी श्रेष्ठप्रभाजी ने पंचपरमेष्ठी से रंगो के आधार पर सबको आध्यात्मिक होली खेलाइ।
कार्यक्रम का शुभारम्भ सादवीवृंद के नमस्कार महामन्त्र से हुआ। झकनावदा महिला मण्डल ने सुमधुर गीतिका का संगान कर परिषद को हर्षित कर दिया। उक्त जानकारी मुकेश कोठारी ने दी।

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