थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
अंचल में आंवला ग्यारह के अवसर पर उत्साह रहा। इस अवसर शकर की बनी माजक मिठाई की जमकर बिक्री हुई ग्रामीण अंचल के बच्चो से लेकर युवाओं तक ने एकाशी व्रत का पालन किया तथा निराहार रहकर देर सायं काम आंवला वृक्ष की पूजा कर परिक्रमा की। आदिवासी कुंवारे युवक युवतियों व्दारा उक्त त्योहार अपने मन पसंद वर वधू मिलने की कामना के साथ परिवार के खुशहाली के लिए किया जाता है। प्रत्येक ग्रामों सायं युवाओं की टोलियों व्दारा गीत गाए जाते है इसे अंचल का फाग उत्सव भी कहा जाता है जिसे ग्रामीण अपनी प्रचलित रीति अनुसार मनाते है। माजम के थोक व्यावसायी भरत नागर ने बताया कि वे दो पीढ़ी से माजम का व्यवसाय कर रहे है प्रतिवर्ष इसकी मांग बढ़ती जा रही है यह शुद्ध रूप से शंकर की मिठाई जिसे चासनी के रूप में जामाया जाता है आदिवासियों में आवंला ग्यारस के दिन इसका बड़ा महत्व होता है। बड़े-बुजुर्ग जब बाजार से देर सायं घर जाते है तो इस मिठाई व्रतधारियों में वितरित करते है। क्योंकि अधिकांश किशोर उम्र के होते है इस वर्ष करीब दस क्विंटल माजम की बिक्री की गई है। पिछले दो पीढिय़ों से ग्रामीण क्षेत्र में यजमानी कर रहे पं भूषण भटट ने बताया की आंवली ग्यारस का आदिवासी समाज में विशेष महत्व है। इस दिन किशोर तरूण युवक युवतिया निराहार रहकर व्रत खोलते समय माजम का उपयोग करते है वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वंसत ऋतु समाप्ति के उपरांत ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है ऐसे शकर की बनी माजक शरीर को शीतलता प्रदान करती है।