काम की तलाश में जिले से अंचलवासियों का पलायन हुआ शुरू

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
क्षेत्र से पलायन का दौर एक बार पुन: प्रारंभ हो गया है यहां से गुजरात की ओर पलायन कर सैकड़ों मजदूर प्रतिदिन जा रहे है। पलायन करने के पीछे मजदूरों ने मुख्य कारण बताया कि इस बार हमारी स्थिति काफी खराब है क्योंकि एक तो सोयाबीन ने कमर तोड़ दी वहीं गांवों में कोई काम नहीं है जिस कारण से हमें गुजरात और राजस्थान की ओर पलायन कर अपनी जीविका चलाना पड़ती है। गेहूं की बुवाई के पूर्व ही कुछ लोग तो पलायन कर गए है। ग्रामीणों का कहना है कि हमारे पास खेत में गेहूं बोवनी के लिए भी आवश्यक धन राशि नहीं है क्योंकि इस बार सोयाबीन ने धोखा दे दिया, इसमें जो खर्चा किया था वह निकल जाए वहीं बहुत है। पलायन के पीछे कोई परंपरा या शौक नहीं है। यह आदिवासियों की मजबूरी बन चुका है। क्योंकि झाबुआ जिले में कङ्क्षई कार्य नहीं मिलता है शासकीय योजनाओं में सीमित काम मिलता है और मजदूरी भी कम मिलती है जिस कारण से अधिक मजदूरी और लगातार काम की तलाश में इस क्षेत्र के आदिवासी मजदूर गुजरात की ओर पलायन करते है। पलायन करने के बाद घरों में केवल वृद्व जन और छोटे बच्चे रह जाते है जो मवेशी की देखभाल करने के लिए छोड़ कर जाते है। मजदूरों ने बताया कि गुजरात में हमें 300 रूपए प्रतिदिन मिलते है जबकि घर पर रह कर हम निश्चित मजदूरी भी नहीं पा सकते है और पैसे भी कम मिलते है। आने वाली फसल की तैयारी और अपने परिवार के पालन पोषण के लिए मजदूर पलायन करते है यहां तक की स्थितियां अब यह बन चुकी है कि कई आदिवासी युवक तो साल के 9 महीने गुजरात व अन्य प्रदेशों में मजदूरी करते हुए ही बिताते है केवल त्योहार दीपावली, होली, राखी और बोवनी के समय अपने घर आते है बाकी समय वे मजदूरी की तलाश में ही अन्य प्रदेशों में बिता देते है। इस बार भी लगातार देखा जा रहा है कि ट्रेन, बस और अन्य साधनों से दीपावली पश्चात ही मजदूरों का पलायन प्रारंभ हो गया है। नगर के नया बस स्टैंड क्षेत्र में प्रतिदिन एक या दो बस मजदूरों को गुजरात की ओर ले जाती हुई देखी जा रही है। एक निश्चित स्थान पर मजदूर जा कर बैठ जाते है जिसके बाद आने वाली बसों के माध्यम से वे गुजरात की ओर पलायन कर जाते है। सरकार की मनरेगा योजना और अन्य कई योजनाएं धरी के धरी रह गई और मजदूरों का पलायन उनकी नियति बन गया।

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