पेटलावद ब्लास्ट की दूसरी बरसी : पीडि़तों के परिजनों की नहीं हो रही सुनवाई

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
ब्लास्ट की दूसरी बरसी पर भी ब्लास्ट पीडि़तों के दर्द अभी भी बरकरार है। ब्लास्ट में मृत लोगों के परिजन आज भी समस्याओं से जूझ रहे है। किंतु प्रशासन मौन है। प्रशासन से लेकर शासन में बैठे नुमाइंदे भी इन पीडितों का दर्द सुनने को तैयार नहीं है। लोकसभा उप चुनाव की हार के बाद मुख्यमंत्री ने भी पेटलावद की ओर से मुख मोड़ लिया था। किंतु नगर परिषद चुनाव में एक माह पूर्व मुख्यमंत्री पेटलावद आए, ब्लास्ट पीडितों ने उनसे मिलने का प्रयास किया किंतु पीडितों को मुख्यमंत्री से मिलने नहीं दिया गया और जल्दबाजी में पीडितों का दर्द बिना सुने ही चले गए। पीडि़तों की मुख्य समस्या है स्थाई नौकरी, अधिकांश पीडि़तों को मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि स्थाई नौकरी दी जाएगी। किंतु आज तक एक भी पीडि़त परिवार को स्थाई नौकरी नहीं मिली है, जिस कारण से पीडि़त आज भी परेशान है। सभी पीडि़तों को कांटीजेंसी पर भृत्य, नौकरी, चौकीदार और रसोइयन बना दिया गया है जिसमें नौकरी का कोई भरोसा नहीं है। नतीजा पीडि़त लोग आज भी भटक रहे हैं। ब्लास्ट पीडि़त सुनील परमार के बच्चे नौकरी के लिए भटक रहे है। रवि परमार को 11वीं के बाद पढ़ाई बंद करके अपने घर को चलाने के लिए फोटोग्राफी का काम चालू करना पड़ा। आज भी रवि अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए फोटोग्राफी कर रहा है। और सरकार की मदद का इंतजार कर रहा है। हम्माल नानुराम सोलंकी भी ब्लास्ट में मारे गए,उनका पुत्र आज भी मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद से ऋण मिलने का इंतजार कर रहा है। परिवार के ऊपर 5 लाख का कर्ज है। परिवार में उनकी पत्नी खेती में मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रही है। राकेश गुप्ता के भाई भी नौकरी के इंतजार में आज भी मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र लिख कर गुहार लगा रहे है किंतु उनकी भी सुनवाई कहीं नहीं हो रही है। इनके भाई मनीष गुप्ता का कहना है कि मंदसौर में किसान आंदोलन में मरे किसानों की कीमत मुख्यमंत्री ने 1 करोड रूपए लगाई जबकि पेटलावद हादसे में मारे गए लोगों की कीमत मात्र 5 लाख रूपए लगाई। आखिर जो मंदसौर में मरे वो कौन थे और जो पेटलावद में मरे वो कौन थे। सीता राठौड़ ने ब्लास्ट में अपने पति को खोया तो मुख्यमंत्री ने शिक्षक की नौकरी देने का वादा किया था। उसके इंतजार में कुछ समय रसोइयन की नौकरी कि किंतु पिछले एक माह से नौकरी छोड दी है क्योंकि नौकरी करते है तो बच्चों का ध्यान कौन रखे। इस कारण सीता देवी का कहना है कि रसोईयन की नौकरी में सुबह से रात हो जाती है। इसलिए घर पर बच्चों का ध्यान कौन रखे। इसके लिए नौकरी नहीं कर सकते है।

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