शीतला माता मंदिर पर उमड़ी भक्तों की भीड़, दिनभर रहा उत्साह

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अलीराजपुर लाइव के लिए खट्टाली से विजय मालवी की रिपोर्ट-
ग्राम में पूर्व से चली आ रही सांस्कृतिक धरोहर को नई पीडी ने वैसे ही उतारा हे जो पूर्व से चलती आई है। सप्तमी के दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और त्योहार हमारे जीवन को हर्ष और उल्लास से भर देते हैं। अभी हमारा देश परंपरओं का देश है। हमारे देश के हर क्षेत्र की अलग-अलग परंपराएं है उन्हीं में से एक परंपरा है फाल्गुन के महीने में होली के बाद आने वाली सप्तमी को शीतला सप्तमी या शील सप्तमी या अष्टमी के रूप में मनाने की। यह त्योहार हमारे देश की अधिकांश क्षेत्रों विशेषकर मनाया जाता है। इस दिन ठंडा भोजन खाए जाने का रिवाज है इसका धार्मिक कारण तो यह है कि शीतला मतलब जिन्हे ठंडा अतिप्रिय है। इसीलिए शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें ठंडी चीजों का भोग लगाया जाता है। दरअसल शीतला माता के रूप में पंथवारी माता को पूजा जाता है। पथवारी यानी रास्ते के पत्थर को देवी मानकर उसकी पूजा करना।
उनकी पूजा से तात्पर्य यह है कि रास्ता जिससे हम कही भी जाते है उसकी देवी। वह देवी हमेशा रास्ते में हमें सुरक्षित रखे और हम कभी अपने रास्ते से न भटके इस भावना से शीतला के रूप में पथवारी का पूजन किया जाता है। अष्टमी के दिन ठंडे पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस व्रत को करने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रत करने वाले के कुल में दाह ज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिन्ह तथा शीतला जनित दोष दूर हो जाते है। शीतला की उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है। इसीलिए शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन माता शीतला को चढ़ाया जाता है और ठंडा ही भोजन ग्रहण किया जाता है। ग्राम में इस त्योहार को सभी हिन्दू समाज के लोगो द्वारा मनाया गया, जिसमे माहेश्वरी, ब्राह्मण, जैन, राठौड़ तथा कर्मचारी वर्ग के समस्त परिवारों द्वारा शीतला माता की उपासना कर सभी की सुख समृद्धिका कामना की गई।

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