शत्रु को हजार अवसर दें: स्वामीजी

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जिंदगी  दरिया की तरह है, कुछ लोग इसमें से मोती खोज लाते है, कुछ मछलिया पकड़ते है और कुछ केवल गीली टांगे लिए लौट आते 3249

झाबुआ। अंहकार या मिथ्या ममत्व का नारा ही अनंत सत्ता का आविष्कार है। अपने व्यवहार को मधुर बनाए बिना जीवन नर्क हो जाएगा। अपने शत्रु को हजार अवसर दे कि वह आपका मित्र बन जाए, मगर अपने मित्र को एक भी अवसर न दें कि वह आपका शत्रु बने। सादा खाओं, सादा पहनों आफत न सिर पर आएगी और चार दिन की जिंदगी आराम से कट जाएगी। प्रेम दिल से करों, जुबान से नहीं और क्रोध जुबान से करों दिल से नहीं। परिपक्वता का लक्षण बड़ी बाते कहना नही है बल्कि छोटी बाते समझाना है। तर्क से परिस्थिति को जीता जा सकता है, व्यक्ति को नहीं। जिंदगी दरिया की तरह है, कुछ लोग इसमें से मोती खोज लाते है, कुछ मछलिया पकड़ते है और कुछ केवल गीली टांगे लिए लौट आते हैं। उक्त बातें श्रीमद् भागवत महाकथा में पूज्य स्वामी डाॅ. कृष्णशरण देवजी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। कथा के तीसरे दिन श्रीमद् भागवत कथा के रहस्य को बताते हुए स्वामीजी ने कहा कि आज का पूरा आनंद उठाइये, क्योंकि बीता हुआ कल लोट नहीं सकता और आने वाले कल का कोइ भरोसा नहीं। भूल करना गलत नहीं है, दुहराना गलत है। प्रतिकूल समय में हमें खत्म करने के लिए नहीं आता बल्कि हमारी छीपी हुई क्षमताओं को उजागर करने के लिए आता है। क्रोध के कारण की अपेक्षा क्रोध का परिणाम भंयकर होता है। प्रार्थना इस तरह करों मानों सब कुछ प्रभु पर निर्भर हो और कर्म इस तरह करों मानो सब कुछ स्वयं पर निर्भर हो। उन्होंने आगे कहा कि भूतकाल अनुभव है, वर्तमान प्रयोगशाला है और भविष्य स्वर्णिम स्वप्न है । अनुभवों का प्रायोगित उपयोग कीजिये ताकि आशाएं साकार हो सकें ।