200 से नहीं बल्कि दो पकवानों से भूख मिट जाती है : कमलकिशोरजी

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ऐतिहासिक सात दिवसीय धर्म मय आयोजन का हुआ समापन
11झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
बहुत धन से पुरूषार्थ नहीं करना है कम धन से ही पुरूषार्थ करना है यानी जब आपके पास पैसा कम हो तो धार्मिक कार्य करना और ज्यादा पसारा भी मत करना, क्योंकि कम धन जो रहता है वह शुद्ध रहता है और अधिक धन आने पर उसमें अशुद्धता आ जाती है, क्योंकि मनुष्य के पास अधिक धन होगा तो बिना काम के काम होंगे, पर यदि कम धन होगा तो काम के काम होगें यह गुढ़ रहस्य की बात है जैसे किसी के यहां भोजन में दो पकवान बने और किसी के यहां भोजन में 200 पकवाने बने तो दो पकवान भी भूख मिटाते है और 200 पकवान भी भूख मिटाते है पर पैसा किसमें अधिक लगा और काम दोनों ही परिस्थितियों में एक ही हुआ भूख मिटी। इसे समझना होगा और अपनी जरूरतों को कम कर कम में ही गुजारा करे। कथा के अंतिम दिन भक्तों को जीवन का सूत्र सिखाते हुए पं. कमल किशोर नागर ने यह बात कही। उन्होंने कहा कम भोजन स्वस्थ्य रहोंगे, कम बोलों झगडे से दूर रहोंगे, कम धन रहेगा तो मस्त रहोगे।
भारत के सभी धर्मगुरू एक मत हो जाए और यह निर्णय ले कि हम उन्ही भक्तों के घर जाएंगे, जो देश भक्त हो, मां बाप की सेवा करे, गाय का पालन करे, तुलसी पूजा करे, बच्चों के नाम भगवान के नाम पर रखे, शाकाहारी रहे और शराब का सेवन नहीं करे, हरि की भक्ति करें तो इससे एक दिन में भारत की संस्कृति सुधर जाएगी। क्योंकि आज देश में अनेक धर्म गुरूओं को मानने वाले करोड़ों श्रद्धालु है। हमारी अज्ञानता ने हमें भटकाया है। हमें सही राह दिखाने वाले गुरू मिल जाते तो हम भव सागर पार कर जाते है। इस समय उन्होंने गुनगुनाया परख परख के पांव धरो रे, सों कोई नहीं रे, ऐसों कोई नहीं रे, यहां हीरों को परखयों राम कोई नहीं रे। उन्होंने कहा की समय बड़ा बलवान है समय जब करवट लेता है तो राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है। इसलिए अपना जीवन ऐसा रखो की समय की करवट के पहले ही संभल जाओ अधिक संचय की वृत्ति मत रखों, कम में गुजारों हो ऐसा काम करो। 12 माह में 1 माह कल्पवास पर भी रहना चाहिए यानी गरीब बन कर रहना चाहिए, जिसमें हम 1 माह गरीबी जैसा जीवन जीए तब भगवान 11 माह आपकों अमीरी में जीने का मौका देगा, समय करवट ले उसके पहले ही संभल जाओ।
ऐसेे प्रयोग करो, यह प्रयङ्क्षग ही योग बनते है और योग अच्छे से जोड़ता है। भगवान कृष्ण ने भी योग किया है। भगवान ने इस संसार में किसी को भी पूर्ण नहीं किया है हर किसी को कोई न कोई कमी है समस्या है हर कोई पूर्ण नहीं हुआ है, यहां हम सब एक एक विषय में फैल बैठे हुए है. किसा का तन अच्छा है तो धन नहीं है धन खूब है तो तन अच्छा नहीं है और दोनों ही दे दिए तो मन अच्छा नहीं है. यह स्थित हर एक के साथ है इस स्थिति से बाहर निकलने ने का एक ही तरीका है सभी में सम रहो और भगवान से प्रार्थना करना की हमें हर परिस्थिति में सम रखना।
स्पर्श करों ऐसी वस्तुओं का जो की जड़ से चेतन बना दे, आजकल टच स्क्रीन के मोबाइल आ गए है मोबाइल तो जड़ है किन्तु उसे स्पर्श करते है ही वह अपना काम शुरू कर देता है चेतन हो जाता है। इसी प्रकार अच्छी वस्तुओं के स्पर्श में रहो गाय, तुलसी, गंगा, पीपल, नर्मदा इनका स्पर्श हङ्क्षते रहना चाहिए यह हमारी चेतना कङ्क्ष जगाएंगे। इस समय बताया की भगवान कृष्ण भी वृदावंन में रहते थे वृदा यानी तुलसी और वन यानी जंगल मतलब तुलसी के जंगल में रहते थे। इसलिए पंडितजी नेे कहा कि चलो रे मन वृंदावन फिरी आवा रें,श्याम सुंदर की बलया लई आवा रे। हमारी संस्कृति में जो तिलक लगाने और मांग भरने की प्रथा है वह केवल दिखावा नहीं उसका धार्मिक महत्व भी है। मांग क्यो भरते है नारी भगवान से मांग करती है कि हमारा सुहाग सुरक्षित रखना। हमें हमारी संस्कृति को जीवित रखना होगा।
गरीबी के दर्शन करो-
सुदामा कृष्ण मिलन का प्रसंग सुना कर बताया की भगवान कृष्ण अपने मित्र सुदामा की मदद घर बैठे कर सकते थे, किन्तु उन्होंने सुदामा को द्वारका इसलिए बुलाया की उनके महल में रहने वाले गरीबी के दर्शन कर ले। इसी प्रकार हमें हमारे द्वार पर आने वाले भिबुक के दर्शन करना चाहिए, उसे कुछ देना या न देना दूसरी बात है किन्तु उसका अपमान मत करो, उसके दर्शन कर लो और भगवान से प्रार्थना करना की गरीब हमारे घर में नहीं आए बाहर से ही चली जाए.
व्यास गादी के कर्तव्य है-
गुरूदेव ने व्यास गादी के कर्तव्य भी बताए, उन्होंने कहा कि व्यास गादी को सामूहिक हित ध्यान रखना है, यदि यजमान या श्रद्धालु भजन नहीं करे तो व्यास गादी पर बैठने वाले का कर्तव्य है कि वह उसकी पूर्ति करें, सभी को सही राह दिखानी होगी। भोजन शालाएं तो बहुत बनी पर भजन शालाएं नहीं बनी हम भजन शालाएं बनाना चाहते है। अपने पर लगे आरोपों का खंडन करते हुए कहा िकि गुरूजी ने बहुत पैसा इकटठा कर लिया है इसलिए वह पैसे नहीं लेते है तो दिल्ली में जो बैठे है उनके पास क्या है? क्या वह धर्म के लिए खर्च कर रहे है, हम तो सब कुछ समेटना चाहते है। हम कम से कम में करना चाहते है। आप लोग हमारा साथ देना हम बिना पांडाल और बिना व्यवस्था के एक पेड के नीचे बैठ कर कथा कर लेंगे। हम व्यास गादी को दूषित नहीं होने देंगे। अंत में कथा की पूर्णाहुति इस भजन के साथ हुई।
आंकडा पहुंचा 60 हजार पर।
पेटलावद में हुए इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में श्रद्धालुओं की संख्या अंतिम दिन 60 हजार के पार हो गई। पेटलावद नगर वासी इस कार्यक्रम को अपने आप में प्रथम इतना बडा कार्यक्रम मान रहे है। कथा के दरमियान मृतआत्माओं की शांति और उनके मोक्ष के लिए बांधे गए नारियल और बांस फटने लगे। जिसे देखकर हर कोई अभिभूत हो गया। इसे माना गया की इस आयोजन को प्रभु स्वीकार कर लिया है और इसलिए पितृों की मुक्ति का संकेत मिला। गुरूदेव ने सभी पितृ को मोक्ष मिलने की बात कहते हुए ब्रम्हलीन होना बताया।

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