मनुष्य इतनी भक्ति करे कि उसे सत्य और असत्य के बीच अंतर पैदा समझ में आ जाए : पंडित नागरजी

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
आज कल एक उल्टी प्रथा चल गई है, भजन तो कोई नहीं करता मगर भोगों में लगे रहते है, जिस प्रकार घर में कोई मेहमान आए तो उसे पानी के पहले चाय पिला दी हो, क्या यह सही पहले पानी यानी भजन बाद में चाय पिलाई जा सकती है? मनुष्य को सारे काम भगवान के भरोसे करना चाहिए, क्योंकि वह खुद सब करना चाहेगा तो पूरा नहीं होगा केवल भगवान के भरोसे छोडऩे से वे सारे काम पूरे करेंगे। उक्त उद्गार मालव माटी के प्रसिद्ध संत पं. कमल किशोरजी नागर ने मंडी प्रांगण में चल रही सात दिवसीय भागवत के दूसरे दिन दिए। नागरजी के भजनों पर भक्त झूमते हुए भागवत कथा का आनंद ले रहे है. प्रसंगो-कीर्तनों और भजनों के माध्यम से भक्तों को भगवान का महत्व समझाते हुए सभी को भक्ति का रस पान करा रहे हैं। भारतीय संस्कृति का ज्ञान देते हुए कहा की आज कल टीवी को देखकर बच्चें में अलग अलग तरह की बाते करते है। वहीं परपंरा भी बदलती जा रही है। आडंबर और दिखावा बढ गया है, हर कोई दिखावें में आगे है, हमें हमारी परपंरा को निभाना होगा तभी हम जीवन नया के पार जा सकेंगे। मनुष्य इतनी भक्ति करे की उसे इतना ज्ञान प्राप्त हो जाए की वह सत्य और असत्य के बीच अंतर पैदा कर ले। नागरजी ने कहा की हम ऐसे काम करे जिससे भगवान को हम पर निगाह रखने में कोई परेशानी नहीं हो, ऐसे काम नहीं करे जिससे भगवान हमारी ओर देखे नहीं। मनुष्य ग्रहण तो किसी का आग्रह से कर सकता है किन्तु यदि उसे जीवन में कुछ त्यागना है तो स्वयं को ही त्यागना होगा, कोई उससे जबरदस्ती नहीं करेगा। इसलिए त्याग करना है तो बिना सोचे त्याग कर दो। इसके साथ ही बताया कि आदमी की बुरी सोच एक क्षण के लिए आती है जिसमें वह गलत फैसला कर लेता है किन्तु हम अच्छे और विद्ववान लोगों के साथ रहेगें तो हमारा वह बुरा क्षण भी निकल जाएगा। इसके लिए साथ करों तो अच्छों का करो।
विपत्ति में कोई साथ नहीं-
वही विपत्ति में कोई साथ नहीं आता है। केवल भगवान ही साथ देते है और वह किस रूप में साथ दे देंगें यह किसी को पता नहीं है। वंश के भरोसे मत रहना है किसी पिता से पूछा जाए की पुत्र क्यों चाहिए तो एक ही जवाब देगा 100 साल पूरे होने पर आग देगा। इसके अलावा कोई जवाब नहीं है. किन्तु भगवान ऐसे हैं जो हमें भव से तार देंगे। भगवान ने कहा है कि जो अच्छा लगे वह कभी मत करना। वहीं करना जो सच्चा हो सत्य की राह उबड़ खाबड़ हो सकती है किन्तु चलना उसी राह पर ोगा। इसके साथ ही पं. श्री नागर ने सृष्टि की रचना की पूरी कहानी कही। वहीं महर्षि सुखदेव के द्वारा परिक्षित को अंत समय में सुनाई गई भागवत के बारे में बताया। प्रसंगों के माध्यम से बताया की जड़ भरत की भक्ति कैसी थी,वहीं राजा अमरीश की भगवान के प्रति किस प्रकार श्रद्धा थी। इस युग में बीमारियां अधिक क्यों बढ़ रही है? इस पर नागरजी ने कहा कि लोग भगवान को भूल कर संसार की ओर भाग रहे है। भजन से दूर जा रहे है, जैसे जैसे भजन के पास आएगे वैसे वैसे बीमारियां कम होती जाएगी। पहले सुबह उठते ही माला हाथ में आती थी अब मोबाइल और टीवी हाथ में आती है। शुक्रवार की कथा के समापन पर आरती की गई,जिसमें यजमानों द्वारा आरती उतारी गई।

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