रोजगार के अवसर नहीं, नोट के फेरों में पीसा आम आदमी : जिला कांग्रेस

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झाबुआ। आदिवासी बहुल जिले में क्षेत्र का आदिवासी पहले से रोजगार की तलाश में मारा-मारा भटक रहा था तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नोट सर्जिकल स्ट्राइक दुबले पे असाड़ साबित हो रहा है। बेरोजगार आदिवासियों को रोजगार मिलना तो दूर अब उन्हें अपने घर संचालन में भी तकलीफ हो रही है। मजदूरी में मिलने वाले 500-1000 रुपए के नोट जो चलन से बाहर हो चुके हैं कुछ एजेंसियों एवं बैंकों में बदलने की जो प्रक्रिया निर्धारित की गई है वो भी व्यवहारिक नही होने से आदिवासियों का जीवन जीना दूभर हो गया है। सूरज की पौ-फटने के पूर्व बैंकों में नोट बदलने तथा उनके खातों में रकम जमा करने के लिए लंबी कतारें देखी जा रही है और इस आपा-धापी में नौजवान से लेकर उम्र के अंतिम पड़ाव में खड़ा आम आदमी इन कतारों में देखे जा रहे हैं। पिछले एक सप्ताह से बैंकों में नोट बदलने की आपा-धापी में रोजगार के अवसर प्राय: समाप्त हो गए हैं। व्यापारी जहां अपना व्यापार नही कर पा रहें है। वहीं मजदूर, किसान एवं मध्यम वर्ग के लोगों को रूपयों के अभाव में आर्थिक विकास को जंग लग गया है। जिला कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल मेहता ने बताया कि केन्द्र एवं प्रदेश की भाजपा सरकार को गरीबों तथा किसानों की कोई चिंता नही है। किसान अपनी कृषि उपज को मंडी में बेचने के लिए भटक रहा है। और माफिया वर्ग उनकी इस मजबूरी का दुरूपयोग कर रहा है। सत्ता के नशे में डुबे भाजपा के जिम्मेदार नेता भी इस दिशा में कोई कदम नही उठा रहे है। किसान एवं आदिवासी वर्ग के सामने आज रूपये नही होना सबसे बडी चुनौती हैं। केन्द्र की भाजपा सरकार के इस कदम से चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल बन गया है। जिला कांग्रेस अध्यक्ष ने बताया कि जिले में आदिवासियों को नोट बदलने की प्रक्रिया में आ रही परेशानियों से बचने के लिए जिला कांग्रेस ने जिले के समस्त बैंक क्षेत्रों में सुविधा केन्द्र प्रारंभ किए है जिसमें ब्लॉक कांग्रेस, जिला कांग्रेस एवं कांग्रेस का आम कार्यकर्ता सहयोग कर रहा है। परंतु दूसरी ओर यह भी देखा गया है कि माफिया वर्ग आदिवासियों को अपना हथियार बना कर नोट बदलने के गौरख धंधे में शामिल कर रहा है। इसकी जानकारी शासन व प्रशासन को होने के बाद भी कोई कारगर कदम नही उठाए जा रहें है। अंधा बांटे रेवडी, अपने-अपने को दे की कहावत चरितार्थ होने का आरोप लगाया।

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