करवाचौथ आपसी में मुहब्बत बढ़ाने का पर्व : मुनिश्री पृथ्वीराज जसोल

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
पर्व सामाजिक समरसता के प्रतीक होते है तथा परिवार को सुकून देने तथा राष्ट्र में सद्भाव को बढ़ा देते है। इन सामाजिक पर्वों को जब अध्यात्म की पुट मिल जाती है तो इन पर्वों से पर्वों की सार्थकता सिद्ध हो जाती है। आज के वातावरण के पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र और मां-बेटी सभी प्रकार के संबंधों में मिठास की जगह कड़वाहट बढ़ रही है जबकि करवाचौथ का पर्व आपसी प्यार और मुहब्बत बढ़ाने का पर्व है। वहीं परिवार फलता फूलता है जिसमें एक दूसरे के प्रति विश्वास हो तथा पारिवारिक हित में व्यक्ति अपने हित को गौण कर दे। ये विचार आचार्य महाश्रमण के सुशिष्य मुनिश्री पृथ्वीराज जसोल ने करवाचौथ के प्रसंग पर धर्मसभा में व्यक्त किए।
मुनिश्री चैतन्य कुमार अमन ने कहा- जिस समाज की नारी जागृत है वह समाज जागृत है तथा जिस घर की नारी संस्कारशीला है वह घर नारी का आभारी है। एक संस्कारी बालिका दो कूलों को रोशन करने वाली होती है अपने पति के लम्बी आयु के लिए करवाचौथ पर व्रत करने वाली नारी अपने सिंदूर की रक्षा करना चाहती है, लेकिन उसे चाहिए की वह माता सीता की तरह अपने पति के प्रति समर्पणशीला बने क्योंकि भारतीय परंपरा मं पति को परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। पति को भी चाहिए पत्नी को अपने हक का जीवन जीने दे पत्नी का उचित सम्मान होना चाहिए। मुनि अतुल कुमार ने कहा- पर्व और त्योहारों में भारतीय संस्कृति की छवि देखी जा सकती है। सम्मानपूर्वक हर त्योहार को मनाया चाहिए, पर्व को मनाने के साथ रिश्तों में मजबूती आनी चाहिए, बाहरी मधुरता के साथ आंतरिक संवेदनशीलता जरूरी है। इस अवसर पर समाज के गणमान्य नागरिक और महिलाएं भी उपस्थित थे।

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