कुपोषण दूर करने के लिए खेतों में किसानों ने बोई पौष्टिक-कैल्शियम से भरपूर फसल राला

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कृषि विभाग के पदाधिकारियों ने किया प्रदर्शित प्लॉट का अवलोकन
झाबुआ। कैथोलिक डायसिस झाबुआ की ईकाई प्रगति संस्था द्वारा विगत वरसों से प्रयास किए जा रहे है कि इस आदिवासी अंचल से कुपोषण दूर हो। इसलिए संस्था द्वारा कुपोषण, गरीबी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा को लेकर प्रगति संस्था के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रम चलाये जा रहे है। इसी को लेकर रविवार को ग्रामीण क्षेत्र नागनवट एवं परनाली गांव का उपसंचालक कृषि एस त्रिवेदी, कृशि विज्ञान केन्द्र के जिला समन्वयक आईएस तोमर तथा प्रगति संस्था के संचालक फादर मालहिंग कटारा एवं कृषि विभाग के पदाधिकारियों द्वारा छोटे अनाज कोदरा, कुरी, बटटी, तिल्ली, भादली, उडद, बाजरा हामो आदि के प्रदर्शित प्लॉट का अवलोकन किया। छोटे अनाज के प्रदर्शित प्लॉट के अवलोकन के दौरान कई रोचक तथ्य सामने आए, प्लॉट प्रदर्शित करने वाले किसानों ने बताया कि पारंपरिक छोटे अनाज के बीच से बिना रासायनिक खास से कई गुना उत्पादन ले सकते है। उन्होंने बताया कि कोदरा, कुरी, बटटी, तिल्ली, भादली, उडद, बाजरा में दूसरे मोटे अनाजों की अपेक्षा कई गुना पौष्टिक मात्रा जैसे कार्बोहाइड्रेड, कैल्शियम, आयरन आदि की मात्रा पायी जाती है जो कुपोशण तो दूर करती है। रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति काफी मात्रा में पायी जाती है।
किसानों ने बताये अपने संस्मरण
किसान प्रभु दल्ला गरवाल छोटी नागनवट ने बताया कि उसने पूरे खेत में मक्का के साथ मिश्रित खेती की है जिसमें मक्का कोदरा, राला (भादली) अनाज की फसल ली है। राला के बारे में बताया कि इससे बनाई गई सूजी में भरपूर पोष्टिक मात्रा पायी जाती है। दूध के साथ सेवन करने से शक्तिवृद्धक के साथ कई विटामिनयुक्त होते है। रमसू निनामा छोटी नागनवट ने बताया कि उनके खेत में कुरी, राला की फसल तैयार हो गई है। नाहटिया हकरिया निनामा छोटी नागनवट ने अपने खेत में कुरी, रालो एवं भादली बोया है इस बीज का उत्पादन कर गांव के अन्य किसानों को अन्य अनाज के बदले में देंगे ताकि इन बीजों का उत्पादन अधिक मात्रा में ले सकें। परनाली गांव के षिक्षित किसान विजयसिंह पिता उंकार मेडा ने अपने खेत में राला, सोया, उडद एवं देषी मक्का की खेती की है जिसमें प्रमुखता से राला का उत्पादन लेकर अन्य किसानों को भी छोटे अनाज की खेती के लिए पे्ररणा स्त्रोत बने है।
उपसंचालक कृषि त्रिवेदी ने कहा कि वास्तव में इन छोटे अनाजों को कई वर्शो तक बिना रासायनिक प्रक्रिया से सुरक्षित रखा जा सकता है और इन छोटे बीजों के प्रचलन से किसानों में नई क्रांति आयेंगी व भविष्य में भरपूर फसल ले सकेंगे।

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