अलीराजपुर Live के लिए ” वालपुर” से ” अजय मोदी ” की शिक्षक दिवस पर EXCLUSIVE रिपोर्ट
एक ऐसी ” स्कूल ” जहां फीस है सिफ॔ ” क्विंटल ” अनाज ।
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अजय मोदी – वालपुर संवाददाता
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आज के दोर मे जहां शिक्षा एक कारोबार बन गयी है उस दोर मे पश्चिम मध्यप्रदेश के ” आदिवासी ” बहुल अलीराजपुर जिले का 2340 की आबादी का जनजातिय बहुल गांव ” ककराना” गांव का एक ” सामाजिक स्कूल ” शिक्षा एक मिशन भी हो सकती है यह साबित कर रहा है ” स्थानीय आदिवासी समाज के युवको ने आज से 16 साल पहले ” रानी काजल जीवन शाला” नाम की यह आवासीय स्कूल 41 बच्चो के साथ अपने हाथो से मजदूरी कर बनाये गये 2 कमरो के साथ शुरु की थी जो अब एक बडे कैंपस के रुप मे परिवर्तित हो चुकी है जिसमे अब 213 बच्चे है जिन्हें 10 शिक्षक पढाते है । जबकि 5 लोगो का अतिरिक्त स्टाफ है जो भोजनशाला से लेकर साफ सफाई का काम संभालते है । ” ककराना” वह गांव है जहां ” नम॔दा” का मध्यप्रदेश मे सफर समाप्त होता है ओर वह गुजरात मे प्रवेश कर जाती है इसी गांव से गुजरात ओर महाराष्ट्र की सीमा भी ” टच ” होती है ।
यह विशेषता है ” रानी काजल जीवन शाला ” की
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रानी काजल जीवन शाला अब 16 साल पूरे कर चुकी है इसके संस्थापक एवं अध्यक्ष ” कैमथ गवले” कहते है कि” ककराना ” गांव सरदार सरोवर परियोजना का डूब प्रभावित गांव है ओर जब उन्होंने अपने साथियो के साथ इसकी शुरुआत की तो उस समय ” ककराना” सहित आसपास के एक दज॔न गांवो के आदिवासीयो की जमीने परियोजना मे चली गयी थी रोजगार के अवसर समाप्त हो चले थे ओर सरकार से संघर्ष के चलते ” बच्चो ” का भविष्य अंधेरे मे इसलिए अपने कुछ करीबी दोस्तो के साथ उनहोंने ककराना मे इस ” स्कूल ” की शुरुआत की थी ओर इसे आवासीय स्कूल ” का रुप दिया था ताकी गरीब आदिवासीयो के बच्चे यहां रहकर पढाई कर सके । इस स्कूल का नाम ” रानी काजल जीवन शाला” इसलिए रखा गया क्योकि ” रानी काजल” इस इलाके की क्षैत्रीय देवी है जो ” नम॔दा” किनारे विराजित है ओर स्थानीय आदिवासी समाज मे खूब पूजी जाती है ओर पढाई से जीवन बनता है इसलिए इसे जीवनशाला नाम दिया गया । यहां के इस आवासीय स्कूल मे विद्यार्थी को सालाना एडमिशन के लिए महज ” एक क्विंटल अनाज देना होता है फिर वह चाहे बाजरा , मक्का या गेंहू ” कुछ भी हो । चुंकि इलाके मे बाजरा बहुतायत मे होता है ओर इलाके का रुचिकर खाद्य है इसलिए ज्यादातर पालक ” बाजरा” देते है । दरअसल इस इलाके मे अधिकतम लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते है ओर ज्यादातर मजदूरी करने गुजरात चले जाते है उनके लिए यह स्कूल किसी वरदान से कम नही है । संस्था मे पढने वाले छात्र ” हितेष ” कहते है कि यहां दो समय भोजन मिलता है ओर नाश्ता भी समय पर उपलब्ध करवाया जाता है साथ मे सभी बैठकर खाना खाते है तो अच्छा लगता है । यहां दिलचस्प बात यह है कि आवासीय विद्यालय परिसर मे ही पढाने वाले शिक्षक भी रहते है ओर चतुथ॔ श्रेणी कम॔चारी भी यही रहते है । यहां के युवाओ की तरह यहां के शिक्षको की भावना भी अपने इलाके के बच्चो को ” विद्यादान” देने की है । यहां पढाने वाले शिक्षको मे से कुछ शिक्षक ऐसे भी है जो पहले यही रहकर 8 वी क्लास तक पढे है ओर कालेज की पढाई करने अलीराजपुर चले गये थे ओर ग्रेजुएशन करने के बाद वापिस इसी स्कूल मे बच्चो को पढाने के लिए लोट आये है ओर अब बिना वेतन यहां रहकर पढा रहे है संस्था के प्रंबधन कभी कभी इनको भत्ता दे देता है अपनी सुविधा से लेकिन इन शिक्षको को अपेक्षा नही है । ऐसे ही शिक्षक ” कांतिलाल ससतिया” ओर मानसिंह सोलंकी” कहते है कि उन्होंने 8 वी तक पढाई ” रानी काजल जीवन शाला” मे रहकर की है ओर फिर अलीराजपुर महाविद्यालय मे जाकर ” Bsc ” किया । दोस्तो का दबाव आगे जाकर या बडे शहरो मे जाकर कुछ बडी नोकरी या कारोबार करने का था लेकिन उन्होंने तय किया कि वे उसी स्कूल मे आकर पढायेंगे जहां उन्होंने खुद पढाई की थी ।
अपनी वण॔माला खुद ही ” गढ ” ली
ककराना की इस” रानी काजल जीवन शाला” स्कूल ” की एक खासियत ओर है वह यह कि यह भारत का पहला ऐसा स्कूल है जिसने अपने आदिवासी समाज के बच्चो को पढाने के लिए खुद की ” भिलाली” भाषा की ” वण॔माला ” तैयार कर ली ओर बच्चो को प्रारभिंक अक्षर ज्ञान उपकी ही भाषा मे करवाया जाता है ताकी उनको अच्छी तरह से सब समझ मे आ जाये ओर उसके बाद हिंदी मे पढाया जाता है । इसी भाषा मे इलाके की कहानिया , कविताऐ आदि भी पढाये ओर सिखाये जाते है तथा भिलाली संस्कृति भी पढाई जाती है । बच्चे भी बेहद खुश है इस स्कूल की छात्रा ” मनीषा ” कहती है कि अपनी भाषा मे पढना बेहद सुखद होता है अच्छी तरह से सब समझ मे आता है ओर अपनापन का अहसास होता है । वही अलीराजपुर कलेक्टर ” शेखर वर्मा” का कहना है कि मुझे इस स्कूल के बारे मे काफी कुछ सुनने को मिला है मै यहां जरुर जाऊंगा ओर प्रशाशनिक मदद की जरुरतो को देखकर सकारात्मक सहयोग दिया जायेगा ।