जो खिलाकर खाता है वही जिंदगी में खिलखिलाता है : मुक्तिप्रभाजी

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
व्यक्ति हरदम वाद विवाद में उलझा रहता हैं अनेकांत से दूर होता है और एकांत से डरता है जब की भगवान महावीर वाद विवाद से दूर एकांत में तप करते एवं अनेकांत में जीते थे। महावीर अनंत गुणवान थे इसलिए शाश्वत सुखों का वरण करते थे और भगवान के भक्त धनवान जरूर है इसलिए वे दुखों की खान है। प्रभुवितरागी थे राग द्वेष से परे थे लेकिन प्रभु के भक्त वित्तरागी बने हुए है। उक्त उदगार स्थानक भवन में विराजित महासती मुक्ति प्रभाजी ने धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि राग द्वेष से मुक्त होना ही वीतराग धर्म है, जियो और जीने दो स्वयं भी शांति से जियो और दूसरो को भी शांति से जीने दो वर्तमान भाग दौड़ की जिंदगी में व्यक्ति न चैन से जी रहा है न दूसरों को जीने दे रहा है ऐसे में भगवान द्वारा बतलाए गए मार्ग पर चलने में ही जीवन का सार है, जो खिलाकर खाता है वही जिंदगी में खिलखिलाता है, प्रवचन सुने चिंतन मनन करे तो ही जीवन में उत्थान संभव है। महासती प्रेमलताजी ने कहा कि आदेश की अपेक्षा आचरण का प्रभाव अधिक पड़ता है भावना की शुद्धता उत्तम फल देने वाली होती है। इसी के साथ कुसुमलता मसा ने भगवान के 27 भवो का वाचन किया। पर्युषण पर्व के दौरान तपस्याओं का दौर जारी है। विविध धार्मिक प्रतियोगिताओं एवं जप ध्यान प्रत्याख्यान द्वारा आराधना की जा रही है।

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