इस बीजेपी को लडना है कांतिलाल भूरिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस हे

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झाबुआ लाइव डेस्क ” special रिपोर्ट । 

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झाबुआ मे दो धड़ों मे बटी ” भाजपाई” राजनीति ; कैसे करेंगे मिशन 2018/19 फतह !
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झाबुआ जिले की बीजेपी की राजनीति गुटीय समीकरणो की भेंट चढती जा रही है विधानसभा चुनाव 2013 मे बीजेपी ठीक तरीके से सिफ॔ एक सीट जीत पायी थी वह थी ” पेटलावद” की सीट क्योकि थादंला मे निर्दलीय “उम्मीदवार ” जीता था ओर झाबुआ मे ” कलावती ” की कृपा से बीजेपी की झोली मे सीट आ गयी थी ओर लोकसभा मे बीजेपी ने कुछ नही किया था ” मोदी लहर ” ने बीजेपी की नैया पार लगा दी थी । लेकिन राज्य एंड केंद्र मे सरकार होने के बावजूद भी रतलाम लोकसभा उपचुनाव मे कांग्रेस ने बीजेपी को चारो खाने चित कर दिया था । उसके बाद झाबुआ जिले मे बीजेपी ने अपने संगठन मे बदलाव किया तो उम्मीद जगी कि पार्टी फिर से पटरी पर आयेगी लेकिन झाबुआ जिले मे बीजेपी की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही है दरअसल बीजेपी के दो समानांतर संगठन चल रहे है एक दोलत भावसार के चेहरे वाला जिसके पीछे ब्रजेंद्र शर्मा , गोरसिंह वसुनिया एंव मोटापाला” खडे दिखते है तो दूसरे मे ” तीनो विधायक ” खडे है जिनके पीछे राजगढ नाका लाबी के शैलेष दुबे & कंपनी खडी दिखाई देती है विगत दिनो ऐसे कई प्रसंग आये जब लगा कि बीजेपी मे दो संगठन समानांतर चल रहे है । दिवंगत सांसद दिलीपसिंह भूरिया की प्रतिमा अनावरण से लेकर नलजल योजना के शुभारंभ तक मे यह नजारा दिखाई दिया । बीजेपी मे यह दो धडे तब है जब बीजेपी यह दावा करती है कि

1- वह विश्व की सबसे बडी पार्टी है
2- वह कैडर बैस दल है ।
3- सबसे अनुशाशन वाला दल है ।
4- सबसे ज्यादा कार्यकर्ता दल मे है
5- संगठन की लाइन से चलते है ।

तो क्या इसका यह मतलब निकाला जाये कि प्रदेश बीजेपी ने जिन दोलत भावसार को अपना जिलाध्यक्ष बनाया उनको बीजेपी के विधायक तवज्जो ना देकर ” समानांतर संगठन ” राजगढ नाका ” को मजबूत कर रहे है ? या भावसार अभी इतने मजबूत नही है कि वे विधायकों को संगठन की फ्रेम मे लाकर रहना सिखा सके ? जो भी हो आने वाले दिनो मे बीजेपी मे जूतमपैजार बढने के आसार है तो लोकतंत्र मे थोडा इंतजार का मजा लीजिए ।

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