भगवान महावीर का जन्म कल्याण महोत्सव मनाया

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IMG_20160902_170414 IMG_20160902_165719अलीराजपुर लाईव के लिए अलीराजपुर से रिजवान खान की रिपोर्ट-
नगर का वातावरण शुक्रवार सवेरे से ही धर्ममय नजर आ रहा था, अवसर था भगवान महावीर के जन्म कल्याण महोत्सव का। पर्वाधिराज पयुर्षण पर्व के पांचवे दिन जैसे ही करीब 4 बजे वक्ताओं ने कल्पसूत्र के वाचन के दौरान भगवान महावीर के जन्म उत्सव का वाचन कर भगवान के जन्म होने की घोषणा की वैसे ही राजेंद्र उपाश्रय त्रिशला नंदन वीर की जय बोलो महावीर की के जयकारों से गूंज उठा तथा परिसर के बाहर ढोल नगाड़े बज उठे और चारों और उत्साह का वातावरण छा गया। जन्म वाचन के बाद वरघोड़े का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में समाजजनों ने सहभागिता की। वरघोड़े के समापन के पश्चात श्रीसंघ की और हेमेंद्रसुरी भवन में स्वामी वात्सल्य का आयोजन भी किया गया।
सुमेरु पर्वत पर इंद्रों और देवों ने प्रभु का जन्म कल्याणक मनाया
कल्पसूत्र के वाचन में सचिन प्रभावचंद्र जैन व सचिन अशोक कुमार जैन ने बताया कि भगवान के जन्म के पहले उनकी माता त्रिशला ने 14 स्वप देखे थे। जिनमें 14 स्वप्नों हाथी, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, फुलनी माला, चंद्रमा, सूर्या, ध्वजा, कुंभ कलश पद्म सरोवर, क्षीर समुद, देव विमान, रत्नो ढगलो, निर्धुमअग्री शामिल थे।
प्रभु की धर्मक्रांति से राजा से लेकर रंक तक प्रभावित हुए
वक्ताओं ने बताया कि भगवान महावीर का साधना काल बारह वर्ष छह महीने और पंद्रह दिन का रहा। इस अवधि में भगवान ने तपए संयम और साम्यभाव की विलक्षण साधना की। शुलपाणि, कटपुतना, संगम आदि देवों, चंडकौशिक आदि तियचों, अनार्यों तथा ग्वालों आदि मानवों ने प्रभु को लोमहर्षक उपसर्ग दिए। प्रभु के कानों मे कीले तक ठोक दिए गए। परंतु कष्ट दाताओ को भी प्रभु ने अपना हितैषी ही माना। समय मात्र के लिए भी प्रभु के ह्दय में कष्ट देने वालो के प्रति अन्यथा भाव का उदय नहीं हुआ। केवल्य प्राप्ति के पश्चात प्रभु ने तीस वर्षों तक धरा धाम पर विचरण किया। प्रभु की धर्मक्रांति से राजा से लेकर रंक तक प्रभावित हुए। श्रेणिकए चेट्क,कोणिक, उदयन, प्रधोत प्रभ्रति अनेक राजा प्रभु के उपासक बने। अभय कुमार, नंदीषेण, मेघकुमार जैसे राजकुमार एवं शालिभद्र धन्ना जैसे धनाधीशों ने अकूत वैभव को ठुकरा कर प्रभु के अपरिग्रह पथ पर चरणन्यास कर आत्मा का परा वैभव हस्तगत किया। महावीर ने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत का उत्कृष्ट उदघोष किया। पशुबलि और अस्पर्शयता का प्रबल विरोध किया। उन्होनें कहा मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान बनता हैं। स्वप्नों की बोलिया लगी। श्रीसंघ के सदस्य अनीष जैन ने बताया कि महावीर जन्म वाचन के पूर्व माता त्रिशला द्वारा भगवान के जन्म से पूर्व देखे गए 14 स्वप्नों की बोलियां लगाई गई, जिसमें समाजजनों ने उत्साह पूर्वक सहभागिता की। इसके पूर्व वक्ताओं ने भगवान के जन्म का वाचन पूर्ण कियाए वैसै ही पूरा उपाश्रय भगवान के जयकारों से गूंज उठा तथा भगवान को पालने में झूलाया गया इस दौरान समाजजनों को केसर के छापे लगाए गए। इसके बाद भगवान का भव्य वरघोड़ा निकाला गया, जिसमें उनकी माता द्वारा देख गए स्वप्रों को महिलाएं व बालिका अपने सिर पर धारण कर चल रही थी। वहीं वरघोड़े में शामिल पुरूष धर्म के जय कारे लगाते हुए चल रहे थे। यात्रा भ्रमण पश्चात स्थानीय श्वेताबंर जैन मंदिर पर पहुंचकर संपन्न हुई।

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