झगड़े की जड़ है वाणी का असंयम – मुनिश्री पृथ्वीराज जसोल

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
तलवार के घाव भर जाते है पर वचन के नही, अत: व्यक्ति को अपनी जुबान पर नियमंत्रण नही रखने के कारण झगड़े खड़े होते है। झगड़े की जड़ वाणी का असंयम होता है। सत्य, प्रिय, मधुर और हितकर वचन का और कायिक चंचलता के कारण व्यक्ति स्वयं अशांत बना देते है जो लोग कोयल की तरह मधुर बोलते है उनके वचन ह्रदय को आत्मतोष देने वाले होते है। ये विचार पयुर्षण के चतुर्थ दिन वाणी संयम दिवस पर जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अनुाशास्ता आचार्य महाश्रमणजी के सुशिष्य तपोमूर्ति मुनिश्री पृथ्वीराज जसोल ने व्यक्त किए। मुनिश्री चेतन्य कुमार अमन ने कहा यह दुनिया संबंद्धो की है जिसमें भाषा के माध्यम से व्यक्ति अपने आन्तरिक विचारो को व्यक्त करता है किंतु अनावश्यक नहीं बोलना बिना पूछे नही बोलना चाहिए। जहां वाणी का सम्यक प्रयोग, वाणी संयम है वही मौन ही जो समंय से अनुप्राणित हो। शिष्ट समाज की पहचान है वाणी संयम। यद्यपि सम्पर्क का शक्तिशाली माध्यम है भाषा। बोलने की अपेक्षा व्यवहार जगत में अनिवार्य है किंतु उसके साथ विवेक प्रशस्त होना चाहिए।
मुनिश्री अतुल कुमार ने कहा जो व्यक्ति अपनी इंद्रियो पर नियंत्रण कर लेता है वही पूज्य है। कांटो के तीक्ष्ण वचनो को सहन करना आसान नही होता। प्रतिक्रिया के भावो से बचना भी आसान नही है। जहां आन्तरिक विचारो का संयम होता है वहां बाह्यजगत में भी संतुलन रहता है। अन्यथा बात-बात में झगड़े-फसाद को निमंत्रण मिलते रहते है। गुुरूवार को वाद-विवाद प्रतियोगिता हुई। वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय टीवी-मोबाइल कितने उपयोगी अथवा कितने अनुपयोगी है जिसमें जुनियार वर्ग से पीयूष कोठारी प्रथम, पुनीत निमजा द्वितीय व प्रेक्षा कोटडिय़ा तृतीय रही। सीनियर वर्ग से प्रथम स्थान अंजली मूणत, द्वितीय सचिन मूणत व तृतीय स्थान पर पुष्पेंद्र कांसवा रहे। साहित्य एवं ज्ञानचक्र प्रतियोगिता में अंजली मूणत प्रथम, ललिता भंडारी द्वितीय तथा रानी कोटडिय़ा (रायपुरिया) ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। सभी प्रतियोगियो में उत्साहवर्धन करने के लिए उन्हें पुरस्कृत किया गया।

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