पेटलावद क्षेत्र में आखिर कब सुधरेगी स्वास्थ्य व्यवस्था?

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इस तरह एक पलंग पर दो मरीज का हुआ उपचार
इस तरह एक पलंग पर दो मरीज का हुआ उपचार

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
लाखों करोड़ों रूपये खर्च करने के बावजूद आजतक स्वास्थ्य व्यवस्था सुधरने का नाम नहीं ले रही। प्रदेश सरकार हो या केन्द्र सरकार दोनो ही स्वास्थ्य को लेकर गंभीर केवल कागजो पर ही है। अगर सरकार इसको लेकर गभीर होती तो जो पेटलावद सामुदायिक स्वास्थ्य में देखने को मिलता है वह नही देखने को मिल रहा होता। करोड़ो रूपये खर्च करने के बावजूद आज भी ग्रामीण से लेकर नगरीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य की व्यवस्था सुधरने का नाम नही ले रही है। कहने को तो पेटलावद में सीवील दर्जा प्राप्त अस्पताल है लेकिन यहां सुविधा क्या है कुछ नही। हाल ही में मौसमी बीमारियों के कारण मरीजों में इजाफा हुआ है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के हाल यह है कि पैर रखने की जगह नही रहती। पुरा स्वास्थ्य केन्द्र मरीजों से भरा पड़ा है। लेकिन सवाल यह है कि यहां सुविधा क्या कुछ नही। मां अपने 2 वर्ष के बेटे को गोद में लेकर बॉटल लगावा रही है तो कोई गलियारे-बरामदे में जीमीन पर ही लेटकर बोटल लगवा रहा है। अस्पताल के बिस्तरों पर तीन-तीन मरीजों का उपचार किया जा रहा है। नर्शे बाते करने में व्यस्थ है तो झाडू लगाने वाला मरीजों को बॉटल चढ़ा रहा है। मरीजोंं से यहां जो व्यवहार होता है वह बयां भी नही किया जा सकता। यहां तक कि नगर के कुछ दानदात्ताओं ने कुछ कमरे दान कर निमार्ण करवाये थे उनका उपयोग अब केवल सामुादायिक स्वास्थ के लोग अपने उपयोग के लिये कर रहे है। जहां मरीज होना चाहिये वहां एम्बुलेंस के ड्रायवर ऐशो आराम फरमा रहे है। कुल मिलाकर सिविल अस्पताल बन जाये या ओर कुछ लेकिन जबतक स्वास्थ्य के प्रति इनके जिम्मेदार है वह अपने कर्तव्य के प्रति सजग नही होंगे तब तक सुधार होना संभव ही नही है।
उप स्वास्थ्य केन्द्र होकर भी नहीं
पेटलावद सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर जहां सारंगी, रायपुरिया, करडावद,बामनिया जैसे बड़े गांवों के सैकड़ों मरीज अपना इलाज करवा रहे है तो इन गांवों के उप स्वास्थ्य केन्द्र खाली पड़े है। कारण साफ है कि यहां उपचार के नाम पर बस ग्रामीणों को छला जाता है। जिसके कारण यहां आकर मरीजों का अपना उपचार करवाना पड़ता है। सुविधाओं की कमियों के कारण कई लोग आज भी सरकारी अस्पताल में इलाज करने से घबराते है। क्षेत्र के अधिकांश मरीज दाहोद-बड़ौदा जाकर अपना उपचार करवाते है जोकि सिधे-सिधे सरकार की स्वास्थ्य सुवीधा पर तमाचा है। करोड़ों खर्च करने के बावजूद भी लोग अगर अन्य राज्य में अपना उपचार करवाये तो करोड़ो खर्च करना सरकार के लिये व्यर्थ ही कहलाएगा।
इस तरह एक पलंग पर दो मरीज का हुआ उपचार

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