पेलेट गन पर हल्ला लेकिन उससे ज्यादा पत्थर से घायल हुऐ है जवान

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चंद्रभानसिंह भदोरिया @ Tv Journalist ( लेख इनकी फैसबुक वाल से लिया गया है )Screenshot_2016-07-28-09-05-06-1

कश्मीर में पत्थरबाजी काबू करने के लिए इस्तेमाल हो रहीं पैलेट गन के इस्तेमाल पर लगातार बहस जारी है। सीआरपीएफ इसका विकल्प खोजने में लगी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पैलेट गन से 317 लोग जख्मी हैं और 50 फीसदी आंख की चोट से पीड़ित हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कानून-व्यवस्था के लिए तैनात CRPF के जवानों में से कितने जख्मी हैं? इनकी तादाद 1300 से ज्यादा है, पुलिस के 2228 जवान जख्मी हैं। कश्मीर में लोगों को पत्थरबाजों का गुनाह नहीं दिखाई पड़ता जबकि उन्हें काबू करने के लिए इस्तेमाल होने वाली पैलेट गन को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया है। कश्मीर में सेना के बेस अस्पताल में जाने पर पता चलता है कि पत्थर की चोट कितनी गंभीर और जानलेवा है।

हजारों लोगों की भीड़ के बीच खुद को बचाने की कोशिश करते सीआरपीएफ और पुलिस के जवानों के बहुत से वीडियो सामने आ चुके हैं। ये वीडियो दिखाते हैं कि कश्मीर में हिंसा पर काबू पाना कितनी मुश्किल है। पाकिस्तान की शह पर अलगाववादियों ने कश्मीर में पत्थरबाजी की जो साजिश रची है उसके सीधे निशाने पर हैं

सीआरपीएफ के जवान। हालात इतने खराब हैं कि पत्थरबाजों की आड़ में आतंकी ग्रेनेड हमले करने से भी नहीं चूकते। फिर भी अफसोस की बात है कि पत्थरबाजों को ही पीड़ित की तरह पेश किया जा रहा है, पत्थरबाजी का शिकार बनने वाले जवान कोई मुद्दा ही नहीं हैं।

कश्मीर में पत्थरबाजी ने सुरक्षाबलों के लिए खासी मुश्किल पैदा कर दी है। गोली चलाते हुए आतंकी को गोली से जवाब देना आसान है, लेकिन जब अपने ही लोगों के हाथ में पत्थर हो तो उन्हें रोकना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। बेशक पत्थर का जख्म गोली जैसा नहीं होता लेकिन चोट गोली से ज्यादा गहरी लगती है। सीआरपीएफ के जवानों का कहना है कि पत्थर की मार गोली से ज्यादा लगती है। जब पत्थर लगता है तो शरीर झनझना जाता है। वो कहते हैं पत्थर गोली से कम नहीं होता। हम खुद को बचाने की जितनी भी कोशिश करें। शरीर का कोई हिस्सा बाहर रह जाता है। कई बार तो पत्थर इतना तेजी से आता है कि वो कंसील को तोड़कर जवानों को लगता है।

पत्थर की मार किसी भी तरह से सुरक्षाबलों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली पैलेट गन से कम नहीं होती। पैलेट गन की तरह ही पत्थर की चोट भी मुख्य रूप से आंखों को ही निशाना बनाती है। एक जवान ने बताया कि नदी के किनारे पत्थरबाजों का मुकाबला करते हुए एक जवान ने अपनी आंख गंवा दी।

अगर, कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन हो रहा होता तो 8 जुलाई के बाद हुई हिंसा में मरने वालों की तादाद कई गुना होती, लेकिन सलाम करना होगा सीआरपीएफ के जवानों की हिम्मत और संयम को कि हाथों में हथियार होते हुए भी जवान फायर नहीं करते। खुद पर काबू रखना आसान नहीं होता। ऐसे मौके पर ट्रेनिंग से ज्यादा जवानों की ये समझ काम आती है कि पत्थर फेंकने वाले दुश्मन नहीं हैं, जवानों को ये अच्छी तरह से अहसास होता है कि पत्थरबाज भी उनके अपने ही लोग हैं, इस देश के नागरिक हैं।

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