भोपाल। शनिवार को भोपाल स्थित यूथ होस्टल में नई शुरुआत जनस्वास्थ्य अभियान एवं सिलिकोसिस पीडि़त संघ मध्यप्रदेश ने सिलिकोसिस प्रभावितों की स्थिति, चुनौतियां एवं नीति विषय पर एक कंसलटेटीव बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न संस्थाओं, संगठनों, पीडि़तों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं शासकीय अधिकारियों ने भागीदारी की। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए एसआर आजाद ने आयोजन के बारे में विस्तार जानकारी देते हुए बताया कि मुख्यत: सिलिकोसिस प्रभावितों के पुनर्वास के संबंध में योजना बनाने पर विचार किया जाएगा और और उनकी वर्तमान स्थिति की प्रस्तुति दी जाएगी। कार्यक्रम के शुभारंभ में प्रदेश के तीन जिलों में सिलिकोसिस प्रभावितों के लिए किए गए प्रयासो एवं चुनौतियों की विस्तृत प्रस्तुति अमूल्य निधि व सिलिकोसिस संघ के दिनेश रायसिंह ने दी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2005 में प्रदेश के धार, झाबुआ एवं अलीराजपुर जिले में सिलिकोसिस पीडि़तों पुनर्वास एवं राहत के लिए संघर्ष जारी वर्ष 2008 और 2011 में लगातार प्रकाशित की गई रिपोर्टों (डिस्टाइड टू डाई भाग 2 और 3) जिसमें सिलिकोसिस के प्रसार को दर्शाया गया और जिलों के 102 गांवों में 1701 सिलिकोसिस से पीडि़त रोगियों की पहचान की गई।
मार्च 2016 में किए गए अध्ययन की रिपोर्ट (डिस्टाईड टू डाई) भाग 4, मिडिया के साथियों के साथ साझा की गई। जिसके अनुसार 3 जिलों के14 विकासखंड के 105 गांवों में सिलिकोसिस रोगियों के पुनर्वास की स्थिति पर संख्यात्मक तथ्य इक_ा करने और अन्य सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के साथ सरकार द्वारा नीतिगत स्तर पर मुद्दे के समाधान के लिए द्वारा उठाए गए कदमों की प्रभावशीलता जानने के उद्देश्य के साथ किए गए सर्वेक्षण के आधार तैयार की गई है। अध्ययन अलीराजपुर, धार और झाबुआ जिलों में 105 गांवों के कुल 743 परिवारों के 1721 सिलिकोसिस प्रभावित रोगियों जो कि या तो मृत या जीवित हैं का सर्वेक्षण किया गया है। इस रिपोर्ट से पिछले 10 वर्षों में लगातार सिलिकोसिस से बढ रही मौतों की संख्या का पता चलता है। एकत्र आंकड़ों के अनुसार 3 जिलों अलीराजपुर-झाबुआ और धार में अभी तक 589 लोगों की मौत हो चुकी है। इन मौतों ने सैकड़ों को प्रभावित किया है जिसमें परिवारों ने एक या एक से अधिक कमाई करने वाले सदस्यों खो दिया है और उन्हे खराब आर्थिक स्थिति में छोड़कर चले गए।
इसके बाद सिलिकोसिस प्रभावितों तीनो जिलों में प्रभावितों के पुर्नवास एवं मुआवजे की स्थिति पर किए गए अध्ययन के बारे मेंअपनी बात रखते हुए शमारुख धारा ने बताया कि क्षेत्र में प्रभावितों को पेंशन नहीं के बराबर मिल रही है और मनरेगा के तहत काम भी बमुश्किल कुछ लोगों को मिला है।
यह प्रभावितों की स्थिति
कुल प्रभावित परिवारों में से मात्र 7 फीसदी प्रभावितों को मनरेगा के तहत 2011 में वहीं 2012 में मात्र 7.6 प्रतिशत प्रभावितों को ही काम मिला है, जो कि वर्ष 2013 में 3.2 प्रतिशत से लगातार घटता हुआ क्रमश: 2014 में 1.2 फीसदी और 2015 में 0.7 प्रति. तक आ गया। प्रभावित परिवारों मे से मात्र 21.2 प्रति. को इंदिरा आवास योजना के तहत आवास प्रदान किया गया हैए और उसके भी एक छोटे से हिस्से 6 प्रति. प्रभावितों को ही घर का निर्माण करने के लिए दोनों किश्तों मिली है। कुछ ही प्रभावितों को दीनदयाल उपचार कार्ड जारी किए गए थे और केवल 4.7 प्रतिशत के कार्ड पर ही सिलिकोसिस प्राथमिकता की स्टाम्प लगी थी, जबकि सरकार द्वारा जारी नीति में प्रत्येक प्रभावित के कार्ड में स्टाम्प लगाने की बात कही गई थी।
कार्यक्रम के अंतिम सत्र में आजाद डॉफ्ट पुनर्वास प्रस्तुत की जिस पर सभी प्रतिभागियों ने अपने विचार रखे। योजना में मुख्यत: प्रभावितों के आर्थिक, सामाजिक एवं चिकित्सकीय पुनर्वास से संबंधित योजनाओं पर चर्चा की गई। चर्चा में आए सुझावों को प्रस्तुत ड्राफ्ट योजना में समाहित कर सरकार को प्रस्तुत किया जाएगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता राकेश दीवान, मध्यप्रदेश चिकित्सा अधिकारी संघ के संरक्षक डॉ ललित श्रीवास्तव, सिलिकोसिस पीडि़त संघ के दिनेश रायसिंह ने मिलकर की। आभार मध्यप्रदेश चिकित्सा अधिकारी संघ के महासचिव डॉ माधव हसानी ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के अंत मे सामाजिक न्याय विभाग के कमिश्नर डॉ मनोहर अगनानी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सिलिकोसिस की रोकथामके लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध और इसके लिए मनरेगा बेहतर विकल्प है।
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