झाबुआ । श्रीकृष्ण के अवतार को लेकर बताया जाता है कि वे भगवान विष्णु के अवतार है, किन्तु शास्त्रोक्त दृष्टि से देखे तो श्रीकृष्ण विष्णु नही स्वयं गौलोकवासी भगवान परमब्रह्म के अवतार है । पृथ्वी पर द्वापर युग में जब कंस का अत्याचार बढ गया तो देवर्षि नारद माता पृथ्वी को लेकर ब्रह्माजी के पास गये और कंस से छूटकारा दिलाने का आग्रह किया तब ब्रह्माजी ने नारद एवं पृथ्वी से कहा कि कंस का वध कर ही नही सकते इसके लिये भगवान शिवजी के पास जाना होगा। तीनों कैलाश पर्वत पर बिराजित भगवान भोलेनाथ के पास पहुंचे, ध्यान साधना से निवृत हो ही ब्रह्माजी, नारद एवं पृथ्वी ने कंस के आतंक से मुक्ति के लिए उसके विनाश क अनुरोध किया तो शिवजी ने भी मना कर दिया कि वे इसे नही कर सकते है और सब मिल कर भगवान विष्णु के पास पहुंचे शेष शैया पर बिराजित भगवान विष्णु से भी जाकर कंस के विनास के लिये अनुनय विनय की गई तो उन्होने भी मना कर दिया कि वे अवतार लेकर भी कंस क विनास नही कर सकते है । फलत: ब्रह्मा विष्णु और महेश गौलोक धाम पहुंचे जहां प्रतिहारियों ने उन्हे अन्दर जाने से रोका उनेने अपना परिचय ब्रह विष्णु एवं शिवजी के रूप में दिया तो उन्हे 14 लोक होने की बात बताते हुए एक आकाश दिखाया जिसमें ऐसे करोडो ब्रह्मांड तैर रहे थे। अन्तत: आदर पूर्वक अंदर ले जाया गया और दीव्य सिंहासन पर विराजित श्रीकृष्ण से अनुरोध किया कि वे अवतार लेकर पापी कंस का विनास करे। कृष्ण ने बताया कि कंस उनका द्वारपाल था औा उसके उद्धार के लिये वे स्वयं अवतार लेकर आयेगे । सभी शास्त्रो मे परब्रह्म के अवतार का उल्लेख आया है । ज्ञान की परिणीती ओम् जो एकाक्षर परब्रह्म को माना गया है । औंकार धनुष है , आत्मा बाण है और इसका लक्ष्य ब्रह्म है । इस तरह आंकार से अलग परब्रह्म है । उक्त सरगर्भित उदबोधन श्रीकृष्ण प्रणामी समाज द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा के चैथे दिन श्रीकृष्ण चरित्र. का वर्णन करते हुए परमपूज्य पीठाधीश्वर महंत टहल किशोरजी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं के जनसैलाब को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के प्रसंग सुनाते हुए कही। टहल किशोरजी ने आगे बताया कि ओंकार ही एकाक्षर ब्रह्म होता है । गौलोक से भी 50 करोड योजन उपर वह परमधाम है। कृष्ण के प्राकट्य होने का अर्थ स्वयं परब्रह्म परमात्मा का अवतरित होना है। कृष्ण के जन्म के समय पूरे ब्रज में आल्हाद छा गया। चौथे दिन भागवत कथा के दौरान सांसद कांतिलाल भूरिया, डा. विक्रांत भूरिया भी विशेष रूप से कथा श्रण हेतु आये जिनका स्वामीजी ने शाल ओढ़ा कर स्वागत किया। संासद कांतिलाल भूरिया ने इस अवसर पर कहा कि ज्ञान गंगा की इस निर्झरिणी का रसास्वादन करने के लिए श्रद्धालुजन आये यह नगर के गौरव की बात है। स्वामीजी ज्ञान के भंडार है और पहाड़ से जिस प्रकार झरना प्रवाहित होकर सभी को तृप्त करता है, स्वामीजी ने इसी प्रकार सब पर कृपा की है। साधु संतो का दर्शन एवं आशीर्वाद फलता है। इस अवसर पर स्वामीजी ने भूरिया को राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिये अपनी सार्थक भूमिका निर्वाह का सन्देश दिया।
दे रहे नशामुक्ति का सन्देश
श्रीमद भागवत कथा आयोजन समिति द्वारा 6 दिवसीय भागवत कथा के लिये पधार भागवत मर्मज्ञ परमहंस पीठाधिश्वर श्री 108 टहल किशोरजी महाराज द्वारा प्रतिदिन रात्री 8 बजे से भागवत कथा अपनी अनूठी शैली मे प्रस्तुत की जा रही है। स्वामीजी इस अवधि में प्रतिदिन गा्रमीण अंचलों में भी जाकर आदिवासी लोगों से संपर्क कर उनसे भेंट करके सदमार्ग एवं धर्म की बाते बता रहे है। गुरूवार को पूज्य टहलकिशोर महाराज ने दुरस्थ ग्रामीण अंचल रजला, खडकुई में भ्रमण किया तथा सरपंच के आवास पर पहुंचे जहां उनका परम्परागत तरिके से भव्य कया। उपस्थित गा्रमीणों को शास्त्रोक्त बाते बताकर उन्हे धर्मोपदेश देते हुए प्रणामी संप्रदाय के ग्रंथ और श्रीमद भागवत कथा के बारे मे धर्मोपदेश दिया। स्वामीजी ने शराब,एवं नशे के बारे में बताते हुए उसे मानव जीवन के लिये हानिकारक बताया तथा सभी से सात्विक जीवन व्यतित करने का आव्हान किय। स्वामीजी का गा्रमीण अंचलों में पूरी श्रद्धा के साथ गा्रमीा जनता द्वारा स्वागत किया गया ।
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