ग्राम रतनपुरा में घर वापसी के बाद हुआ हिन्दू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार

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आलीराजपुर। आलीराजपुर जिले के बोरी थाना क्षेत्र के रतनपुरा गांव के भील फलिए में जब लोभ और लालच में आकर कुछ समय पहले ईसाई धर्म अपना चुके एक परिवार ने अपनी दिवंगत बेटी के अंतिम संस्कार के लिए ग्रामवासियों और समाज के कहने पर पुनः हिंदू धर्म में वापसी की।

इस घटना ने साफ कर दिया है कि भले ही कुछ लोग क्षणिक प्रलोभनों में आकर अपना मूल धर्म छोड़ दें, लेकिन संकट की घड़ी में समाज, मोहल्ले ओर गांव के लोग ही साथ आते हैं।अगर समाज के साथ रहना है तो संस्कृति भी समाज की अपना ना पड़ेगी, यह सब कुछ रतनपुरा में देखने को मिला।

परिवार के धर्मांतरण होने से थी ग्रामीणों को नाराज़गी

रतनपुरा गांव के तडवी फलिए में जब एक ईसाई बने परिवार की 18 साल की बेटी का निधन हुआ और वे अंतिम संस्कार गांव में ही करना चाहते थे लेकिन गांव के लोगो ने इसका कड़ी आपत्ति ओर नाराजगी जताई कि परिवार के लोग आदिवासी समाज की रीतिरिवाज, संस्कृति पद्धति को छोडकर अन्य धर्म की पद्धति अपना रहा उसी बात की आपत्ति ली गई थी, सभी गांव वाले चाहते थे कि वापसी समाज की रीति पद्धति और समाज की संस्कृति के साथ जुड़ रहे इसी को लेकर सभी ने एक स्वर में कहा कि गांव में अंतिम संस्कार नहीं होगा नहीं युवति को दफनाया जाएगा ओर होगा तो सिर्फ हिंदू संस्कृति के अनुसार क्रियाकरम, लेकिन इसके लिए पूरे परिवार को समाज के सामने घर आपसे करना होगी, गांव के पटेल और तडवी के साथी पंचों और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा काफी समझाइए दी है उसके बाद परिवार से पास्टर बन चुके केसर सिंह ने घर वापसी करने का मन बनाया और सभी के सामने संकल्प लेते हुए बाबा देव में पहुंचकर पूजा घर वापसी कर समाज के बीच रहकर समाज की संस्कृति और परंपरा को अपनाने का मन बनाया।

ग्रामीणों का मत स्पष्ट था लोभ-लालच में धर्म बदला

ग्रामीणों का कहना था कि कई लोग प्रलोभनों के चलते हिंदू धर्म छोड़ देते हैं, लेकिन जब कोई बड़ी विपदा आती है, तो वे वापस समाज की ओर देखते हैं। जो व्यक्ति हिंदू धर्म की परंपराओं और रीति-रिवाजों का सम्मान नहीं करता, उसे हिंदू समाज की श्मशान भूमि पर अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह धर्म और संस्कृति की रक्षा का प्रश्न था।

बाबा देव मंदिर में हुई शुद्धि और घर वापसी

ग्रामीणों की नाराजगी के सामने मतांतरण हो चूके परिवार को झुकना पड़ा। अपनी बेटी के अंतिम संस्कार के लिए उन्होंने अंततः घर वापसी का निर्णय लिया। परिवार के सदस्य केशरसिंह सुकलिया रतनपुरा ने गांव वालों के निर्णय के सामने झुक गया ओर गांव का निर्णय सर्वमान्य करते हुई मत्तांतरित हो चुके केसर सिंह गांव वालों के साथ बाबा देव पहुंचे। जहां उन्होंने विधि-विधान से पूजा-पाठ किया और पुनः सनातन हिंदू धर्म में अपनी आस्था व्यक्त की। इस मौके पर गांव के वेस्ता पटेल, नरसिहं तडवी, धुन्दरसिहं चौकीदार, सामाजिक कार्यकर्ता गजराज अजनार, बारम सोलंकी, सुरसिंह बघेल, बाथु जमरा, नानसिंह भगडिया आदि लोग मौजूद थें।

जनजाति विकास मंच जिलाध्यक्ष भी पहुंचे

जनजाति विकास मंच जिलाध्यक्ष राजेश डुडवे ने बताया कि मुझे रतनपुरा के कार्यकर्ताओं ने जानकारी दी कि यहां पर मतांतरण हो चुके परिवार में एक युवति की बीमारी के चलते निधन हो गया, लेकिन गांव वालों का विरोध है कि जब तक मतांतरित परिवार वापसी हिंदू धर्म में नहीं आता तब तक गांव में अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाएगा, जानकारी मिलने पर मैं वहां पहुंचा ओर गांव के प्रमुखों से चर्चा की तो पता चला कि परिवार ईसाई धर्म अपनाकर अन्य लोगों को भी प्रलोभन दे रहा। जिसका विरोध पूर्व में भी हो चुके लेकिन केसर सिंह नामक व्यक्ति पास्टर बन चुका है जो आसपास के लोगों को मातांतरण करवाने का काम करता है इसका विरोध गांव वाले कर रहे थे। जब मैं केसर सिंह और उसके परिजनों से आदिवासी समाज की परंपरा और संस्कृति को लेकर चर्चा की तो वह बिल्कुल भी मानने को तैयार नहीं था इसी बीच गांव वालों ने कड़ा विरोध किया कि जिस बेटी की मौत हो गई उसे अन्यत्र इलाज नहीं करवाते हुए चंगाई सभा में उपचार करते रहे तो फिर उसकी बिमारी ठीक क्यों नहीं हुई, इसका कड़ा विरोध हुआ उसके बाद परिवार नरम हुआ और गांव के सामने सारे निर्णय को स्वीकार कर गांव साथ चरने का मन बनाकर हमेशा अपनी संस्कृति और परंपरा को अपनाने को तैयार हुए उसके बाद मृत बेटी का अंतिम संस्कार हुआ।

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