‘देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलो’: शारदा समूह ने अपनाया शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का ध्येय

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झाबुआ। कहते हैं विद्यालय में देश के भविष्य का निर्माण होता हैं, क्योंकि अपने विद्यार्थी जीवन में अध्ययन करते हुए विद्यालय की विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से जो संस्कार विद्यार्थी ग्रहण करता हैं वे उसके भावी जीवन में उसके द्वारा किए जाने वाले समस्त कामों में परिलक्षित होते हैं। शिक्षा और शिक्षक हमारे देश में प्रारंभ से ही सर्वोच्च सम्मानित रहे हैं यहां तक कि सनातन संस्कृति में तो गुरु को ईश्वर के समान माना गया हैं। हालांकि विगत कुछ दशकों में कुछ अंतरराष्ट्रीय ताकतों ने षडयंत्र पूर्वक हमारी शिक्षा के मानकों को ध्वस्त करने का कार्य किया जिसके परिणामस्वरूप समाज का होने वाला चारित्रिक पतन सर्वविदित है।

इन विषम परिस्थितियों में शारदा समूह विगत 35 वर्षों से विद्यार्थियों में सनातन संस्कृति के अनुरूप विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से संस्कारों के बीजारोपण के लिए प्रयासरत हैं। समूह के संचालक ओम शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि इन्हीं प्रयासों में इस समूह को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का साथ मिला, जो ‘देश को बदलना है, तो शिक्षा को बदलो’ ध्येय वाक्य के साथ शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन कर राष्ट्र को विश्व गुरु के स्थान पर पुनर्स्थापित करने के लिए कार्य कर रहा हैं। न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी जी के साथ चर्चा मैं वर्तमान विद्यार्थियों की समस्याओं के बारे में यह बात ध्यान में आई कि विद्यार्थियों में एकाग्रता की कमी के कारण वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाते। इसके हल के लिए कक्षा में ॐ के उच्चारण के साथ अध्ययन प्रारंभ करने की योजना बनाई, जिसके आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हुए। एक और सामान्य समस्या ध्यान में आई कि विद्यार्थी एवं शिक्षक के बीच परस्पर विश्वास की कमी हैं। न्यास की कार्यपद्धति हमेशा समस्या के स्थान पर उसके समाधान का प्रयास करने की रहती हैं, अतः विभिन्न कार्यशालाओं में विद्यार्थी एवं शिक्षक के परस्पर विश्वास को बढ़ाने के प्रयोगों पर चर्चा हुई और नवाचार के रूप में एक विचार सामने आया कि यदि विद्यार्थी को बिना किसी परीक्षक कि उपस्थिति के परीक्षा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो निश्चित ही विद्यार्थी का स्वयं के प्रति आत्मविश्वास एवं शिक्षक के प्रति विश्वास सुदृढ़ होगा। 

शारदा समूह द्वारा संचालित संस्थाओं को यह कार्य करने के लिए मॉडल संस्थाओं के रूप में चुना गया। सन् 2012 में प्रत्येक परीक्षा में एक दिन एक कक्षा को परीक्षक विहीन कक्षा के लिए चुना गया। हालांकि मन मे संशय था कि आखिर बिना परीक्षक के विद्यार्थियों का व्यवहार कैसा होगा। लेकिन तब से यह क्रम अनवरत चला आ रहा है और इसके सुखद परिणाम भी सामने आ रहे हैं। संस्था प्राचार्य शालु जैन ने इस बारे में बताया कि यह प्रयोग विद्यार्थियों में आत्मविश्वास की वृद्धि करने के साथ ही उनके अपने आत्म नियंत्रण के बारे में जानकारी देता हैं। शिक्षा का जो मूल ध्येय है चरित्रवान नागरिक का निर्माण करना उस दिशा में यह प्रयोग एक महत्वपूर्ण कदम है।

संस्था में अध्ययनरत चाहत रूनवाल एवं हर्ष विश्वकर्मा ने बताया कि जब पहली बार पता लगा था कि एक पेपर बिना परीक्षक के होगा तो ऐसा लगा था कि उस पेपर के लिए कुछ पढ़ने की जरूरत ही नहीं हैं सब मिल कर, कर लेंगे। फिर हमारे डायरेक्टर ओम  जी ने प्रार्थना में संबोधित करते हुए पूछा कि आप में से कौन कौन बिना परीक्षक के परीक्षा देना चाहता हैं तो लगभग सभी विद्यार्थियों ने उत्साहित होकर हॉ की थी, तब उन्होंने कहा कि बिना परीक्षक के परीक्षा देने के लिए उन्हीं छात्रों को तैयार होना चाहिए जिन्हें लगता है कि उनका अपने आप पर इतना नियंत्रण है कि बिना परीक्षक के भी वे पूर्ण ईमानदारी से अपने उत्तर लिख सकते हैं, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह सिर्फ आपके विषय विशेष की परीक्षा न होकर आपके चरित्र की भी परीक्षा है। और तभी हमने यह तय लिया था कि हम बिना परीक्षक कि परीक्षा देकर अपने आप को चरित्रवान सिद्ध करेंगे। तब से हम ऐसी हर परीक्षा में सम्मिलित होते आए हैं।अभिभावक अजय रूनवाल ने कहा कि जब संस्था के इस प्रयोग के बारे में बताया कि आज के समय में सीसीटीवी कैमरे पर विश्वास ज़्यादा हो गया , व्यक्ति पर नहीं , ऐसे समय में वीक्षक विहीन परीक्षा का महत्व  ज़्यादा समझ में आता है ।

छात्रा रिषिका ने कहा कि हमारी संस्था में मूल्यांकन का यह तरीका मुझे बहुत भाता है और अपने आप पर गर्व होता है । प्राचार्य शालू जैन ने कहा कि वर्ष में चार बार परीक्षा आयोजित की जाती है, पत्रकार , गणमान्य नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता आमंत्रित है।

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