भूपेंद्र नायक, पिटोल
एक तरफ़ सरकार शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने और बेटियों को पढ़ाने के लिए बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही है। करोड़ों की लागत से बने शिक्षण संस्थानों में भी जब बेटियों को मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़े, तो सरकारी दावों पर सवाल उठना लाज़मी है। ऐसा ही एक मामला पिटोल के पास बावड़ी छोटी में स्थित कन्या परिसर का है, जहाँ 27 करोड़ 46 लाख रुपये ख़र्च करने के बाद भी छात्राओं को बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है।
हालत के साथ समझौता से पढ़ाई करने को मजबूर हैं छात्राएँ
आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित इस कन्या परिसर की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। पिछले साल भी इसकी समस्याओं को समाचार पत्रों में उजागर किया गया था, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। 9वीं से 12वीं तक की छात्राएँ आज भी ज़मीन पर ग्रीन मेट बिछाकर पढ़ने को मजबूर हैं, क्योंकि विभाग ने पर्याप्त फर्नीचर उपलब्ध नहीं कराया है। पिछले साल जहाँ 341 छात्राएँ थीं, वहीं इस साल यह संख्या बढ़कर 416 हो गई है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर उन्हें कुछ नहीं मिला। कुछ फर्नीचर मिला है एक बेंच पर तीन छात्राएं बैठती हैं जिससे पढ़ाई में परेशानी होती है।
